मनरेगा के आर्किटेक्ट, गांव-गांव में पक्की सड़कों की नींव रखने वाले, समाजवादी विचारधारा के कद्दावर नेता और वैचारिक राजनीति की अंतिम कड़ी रघुवंश प्रसाद सिंह के पुत्र सत्य प्रकाश आज जदयू में शामिल हो गए। प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह और कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने उन्हें जदयू की सदस्य्ता दिलाई।
सत्यप्रकाश के जदयू में शामिल होने के मौके पर वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि सत्य प्रकाश हमारी पार्टी में शामिल हुए हैं और उनसे उम्मीद है कि वे अपने पिता के विरासत को संभाल कर रखेंगे। जिस क्षेत्र में रघुवंश बाबू रहे उस क्षेत्र में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। जिस ढंग से सदन में वो बोलते थे लगता था कि समाजवादी स्वरूप इनके शब्दों में झलकते थे। राजनीति और जीवन के अंतिम दिनों में भी यहां तक कि मृत्यु के समय भी आम आदमी उनकी प्राथमिकता थी इसलिए उन्होंने माननीय मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखा था।
वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा कि रघुवंश बाबू जी के साथ कई बार रहने का मौका मिला, समाजवाद उनके शब्दों में ही नहीं उनके जीवन में भी देखने को मिलता था। उनके पुत्र उनकी विरासत को आगे बढ़ाते हुए असहाय, गरीब,पीड़ितों को सहायता देने का काम करेंगे व हर वर्ग को पार्टी से जोड़ने का काम करेंगे।
वहीं रघुवंश बाबू के पुत्र ने कहा कि मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीति की रही है, लेकिन एक परिवार से एक ही व्यक्ति राजनीति में होना चाहिए यही समाजवाद है। पिताजी श्रद्धेय कर्पूरी ठाकुर जी के आदर्शों को मानते थे। पिताजी ने मरते समय जो पत्र लिखा, उसमें उन्होंने इशारा किया कि मैं राजनीति में आऊं।
उन्होंने आगे कहा कि लोकसभा चुनाव 2019 में उनकी पार्टी राजद के मेनिफेस्टो में गरीब सवर्ण को 15 प्रतिशत आरक्षण की बात थी लेकिन बिना उनसे किसी विचार विमर्श के उसको बदल दिया गया। बाद में लालू जी से बात करने के बाद एक प्रेस कांफ्रेंस के द्वारा अपनी गलती बताई और कहा कि गरीब सवर्ण आरक्षण के पक्ष में हैं, लेकिन राजद के कुछ नेताओं ने और उनके परिवार वालों ने बार बार इसका विरोध किया। इस बात से वे आहत थे और उनको लगने लगा था कि पार्टी अब मेरी अनदेखी करने लगी है।
मेरी कोशिश रहेगी कि उनके जो बचे हुए कार्य हैं वो मैं जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल होकर अपने तन-मन-धन से पूर्ण करूँगा। राजद और लालू यादव जी के परिवार के लोगों ने उनकी बातों को नही सुना, इससे उनको पीढ़ा हुई। जिसके कारण उन्होंने अस्पताल से इस्तीफा दिया क्योंकि पार्टी के सिद्धांतों को दांव पर लगा कर टिकट की खरीदी हो रही है व अपराधियों को जगह दी जा रही है।