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पुण्यतिथि विशेष: आज भी प्रासंगिक है राष्ट्रकवि दिनकर की कविताएं

पटना : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की आज जयंती है।उनकी जयंती के मौके पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है। दिनकर एक ऐसे कवि थे जो हमेशा जनता के दिलों में रहे। देश की हार जीत और हर कठिन परिस्थिति को दिनकर ने अपनी कविताओं में उतारा है। देश की आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को दिनकर ने अपनी कविताओं द्वारा व्यक्त किया है।

DKGS/Dinkar Gram Simaria Station - 14 Train Departures ECR/East ...रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार राज्य में पड़ने वाले बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में हुआ था। रामधारी सिंह दिनकर के पिता एक साधारण किसान थे। दिनकर दो वर्ष के थे, जब उनके पिता का देहावसान हो गया था। दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालन-पोषण उनकी माता ने किया। साल 1928 में मैट्रिक के बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया। वह मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे। भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर भी कार्य किया। उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बने।

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

2 Hindi Kavita / रामधारी सिंह दिनकर ...राष्ट्रवादी कवि रामधारी सिंह दिनकर की कविताऐं आज भी प्रासंगिक हैं।उन्होंने न केवल वीर रस की कविताओं से हिंदी साहित्य जगत को समृद्ध किया बल्कि देश में राष्ट्रवादी चेतना को मुखरित किया। इनकी राष्ट्रवादी कविताओं ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में बल्कि 1962 के भारत चीन युद्ध में राष्ट्रहित में असीम सहयोग प्रदान किया । लोकनायक जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में इनकी पद्य रचना ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ‘ जन जन की आवाज बन गयी और सत्ता परिवर्तन मे महत्वपूर्ण योगदान किया।

1999 में इनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी

Rashtrakavi Ramdhari Sinha 'Dinkar'अल्लामा एकबाल और गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर इनके प्रेरणा श्रोत रहे। भारत सरकार ने समय-समय पर विभिन्न सर्वोच्च पुरस्कारों से सम्मानित किया जिनमें 1959 में पद्मभूषण और साहित्य अकादमी पुरस्कार /1972 में भार तीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रमुख हैं। 1999 में इनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया । दिनकर पर हरिवंश राय बच्चन का कहना था, ‘दिनकर जी को एक नहीं बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिंदी के सेवा के लिए अलग-अलग चार ज्ञानपीठ मिलने चाहिए थे’ । इनकी प्रमुख रचनाएँ परशुराम की प्रतीक्षा, कामायनी, कुरुक्षेत्र हुंकार, उर्वरशि कालजयी साबित हुई है। इनकी रचनाएँ भातीय सांस्कृतिक जगत की धरोहर हैं । दिनकर लोगों में राष्ट्रवादी चेतना और राष्ट्रप्रेम को जागृत कर भारतीय ईतिहास में 24 अप्रैल 1974 को अमर हो गये।

समीर कुमार