प्रशांत किशोर के नंबर दो बनते ही जदयू नेताओं के पेट में क्यों होने लगा मरोड़?
पटना : प्रशांत किशोर को राजनीति में आए हुए अभी महज एक माह ही हुए, कि तभी उन्होंने पॉलिटिकल मैदान की रैंकिंग में जबर्दस्त छलांग लगा दी। उनकी टीआरपी देखिए, वे जदयू में नीतीश कुमार के बाद नंबर दो की हैसियत में आ गए हैं। प्रशांत किशोर यानी पीके को जनता दल युनाइटेड का राष्ट्रीय उपाध्य्क्ष बना दिया गया है। उनकी इस नियुक्ति के साथ ही पार्टी अध्यक्ष और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि पार्टी में उनकी हैसियत अब नंबर दो की ही होगी। उधर पीके की नियुक्ति के साथ ही जदयू के भीतर ही कई वरीष्ठ और नीतीश के अभी तक करीबी रहे लोगों के पेट में मरोड़ भी उठनी शुरू हो गयी है। पार्टी का एक खेमा नीतीश के इस कदम से सहमत नहीं, लेकिन अभी वह खुलेआम कुछ भी कहने से परहेज कर रहा है।
पटना में नीतीश पर चप्पल फेंके जाने वाले कार्यक्रम में भी प्रशांत किशोर मौजूद थे। युवा जदयू के इस कार्यक्रम में उन्हें नीतीश की तरफ से मिल रही तवज्जों ने दल के इस खेमे के कई नेताओं को चौंकाया था। खासकर आरसीपी, संजय सिंह और श्रवण कुमार के करीबी नेता नीतीश के इस मूव से काफी अचंभित थे। वे खुलकर तो कुछ नहीं बोले लेकिन कुछ—कुछ वे इसी कार्यक्रम के दौरान भांपने लगे थे। उन्होंने पीके की क्षमता पर आशंका जतानी शुरू कर दी। वे आपस में चर्चा करने लगे कि 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस की तरफ से यूपी के मैदान में उतरे इस मैनेजमेंट गुरु को नरेंद्र मोदी की टीम ने वहां जबरदस्त पटखनी दी थी।
फर्श से अर्श तक का सफर
राजनीति से दूर, एक चुनावी रणनीतिकार की ख्याति रखने वाले प्रशांत किशोर अब 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू की भावी राजनीति और प्रचार की रणनीति तैयार करेंगे। पीके 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के करीब आए थे। तब उन्होंने बिहार में बहार है…, झांसे में न आएंगे जैसे स्लोगन देकर महागठबंधन के पक्ष में हवा बनाने में मदद की थी।
सरकार बनाने के बाद नीतीश ने उन्हें बिहार विकास मिशन का चेयरमैन बनाया। हालांकि एक साल में ही पीके का नीतीश सरकार से मोह भंग हो गया और वे कांग्रेस की गोद में चले गए। हालांकि यूपी की नाकामी के बाद भी वे नीतीश के टच में बने रहे। तबतक जदयू के पीके विरोधी खेमे को कोई खास खतरा नजर नहीं आ रहा था। हालांकि वे उनको लेकर नीतीश की सोच के मद्देनजर सशंकित अवश्य थे।
इधर यूपी की नाकामी के बाद पीके ने पहले तो भाजपा में घुसपैठ करने की कोशिश की, लेकिन वहां फेल होने के बाद वे फिर नीतीश से मिले। पटना में मई में एक मुलाकात के दौरान नीतीश ने पीके को पार्टी ज्वाइन करने की सलाह दी। गिरती कानून व्यवस्था, मुजफ्फरपुर महापाप, सृजन घोटाला, राजद के हमलों आदि ने नीतीश को भी बैकफुट पर ला दिया था। उधर पीके भी जॉबलेस थे और भाजपा ने उन्हें कोई महत्व नहीं दिया। ऐसे में दोनों की जरूरत ने पीके को जदयू ज्वाइन करवा दिया।
घनिष्टता देख वर्षों पुराने साथी भी पड़े असमंजस में
बिहार की कामयाबी के बाद पीके पटना में सीएम आवास में ही रहने लगे। नीतीश के करीबी कुछ नेता बताते हैं कि प्रशांत किशोर का कुछ सामान उनके पार्टी ज्वाइन करने से पहले तक सीएम आवास में ही था और वे कभी-कभी नीतीश से मिलने वहां आते रहते थे। और अब नीतीश ने पीके को पार्टी ज्वाइन कराने के बाद अपने बाद नंबर दो का दर्जा भी दे दिया। अभी तक जदयू में इस नंबर दो की हैसियत आरसीपी सिंह की मानी जाती रही थी। अब स्वाभाविक है कि आरसीपी और उनको पसंद करने वाले कभी नहीं चाहेंगे कि नीतीश कुमार के करीब कोई और ही प्रभावी शक्ति केंद्र विकसित हो। वे पीके को जदयू में ‘पालिटिकल सौतन’ के रूप में ही देख रहे हैंं। फिलहाल तो वे चुप हैं और तेल तथा तेल की धार को समझने में लगे हैं। जैसे ही उन्हें तेल दूसरे बरतन में गिरता दिखने लगेगा, वे निश्चित ही तब अपना दांव खेलेंगे। उधर पीके को नंबर दो बनाकर जदयू क्या तीर मारता है यह भी वक्त ही बताएगा। अभी तो ऊपर से सब शांत ही प्रतीत हो रहा है।