बिहार में जातिगत जनगणना (Caste Census) पर राजनीति गरमा गई। दरअसल, बिहार में अधिकतर राजनीतिक पार्टियों का इस मुद्दे पर अपना-अपना स्पष्ट विचार है राजद समेत सभी विपक्षी दल जातीय जनगणना के पक्ष में है जबकि भाजपा इसके विरोध में है। सबसे विकट स्थिति जदयू की है जिसके आधे लोग इसके समर्थन में हैं और आधे लोग इसके विरोध में। विरोध वाले तो स्पष्ट बयान दे रहे हैं लेकिन समर्थन वाले अभी मौन साधे हुए हैं।
राष्ट्रीय जनता दल इसके प्रबल समर्थन में इसको मुद्दा बनाने के प्रयास में है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में प्रतिदिन विधानमंडल में, मीडिया में तथा अन्य तरीकों से इस मुद्दे को लगातार उठा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए तेजस्वी यादव लगातार उन्हें पिछड़ा विरोधी घोषित करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक साथ मिलने के लिए समय मांगने की भी मांग की है। नीतीश कुमार इस मामले पर स्पष्ट कर चुके हैं कि वह भी जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं। लेकिन इसके लिए उन्होंने कोई विशेष प्रयास अभी तक नहीं किया है।
सीएम नीतीश कुमार पर इस मुद्दे को लेकर ढुलमुल रवैया अख्तियार करने का आरोप लगाकर विपक्ष एक बड़ा मुद्दा तलाशने के प्रयास में है। मानसून सत्र के शुरुआत होते ही संसद में केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि 2021 में जातीय जनगणना नहीं होगी। इसे भाजपा का रुख इस मामले पर साफ हो गया।
जदयू में दो फाड़ की आशंका
इस बीच जदयू के 8 सांसदों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जातीय जनगणना कराने की मांग की है। पत्र में उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना नहीं कराने के फैसले से हुए अत्यंत दुखी हैं। ये आठों सांसद पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्ग से आते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जिन जेडीयू सांसदों ने चिट्ठी लिखी है उनमें सीतामढ़ी सांसद सुनील कुमार पिंटू, झंझारपुर सांसद आरपी मंडल, गया सांसद विजय कुमार मांझी, सुपौल सांसद दिलेश्वर कामात, गोपालगंज सांसद डॉ आलोक कुमार सुमन, वाल्मीकिनगर सांसद सुनील कुमार, पूर्णिया सांसद संतोष कुशवाहा और जहानाबाद सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी के नाम शामिल हैं। इन सांसदों ने संयुक्त आवेदन देकर देश में जातिगत जनगणना करवाने की मांग की है।
इसका क्या यह अर्थ लगाया जाए कि इन 8 सांसदों के अलावा बाकी के सांसद जातीय जनगणना के पक्ष में नहीं है? अन्य सांसदों ने इस मामले पर अभी तक कुछ भी बयान नहीं दिया है। अगर जदयू जातीय जनगणना के समर्थन में है और स्वयं इस के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं बिहार के मुख्यमंत्री इसके समर्थन में बयान दे रहे हैं लो फिर एक पार्टी के रूप में सभी का एक ही बयान आना चाहिए था। इसका अर्थ है कि पार्टी के अंदर लगभग आधे सांसदों और नेताओं के एक बड़ा धड़ा स्पष्टत तौर पर इसके विरोध में है।
जातीय जनगणना पर स्पष्ट स्टैंड लेना जदयू के लिए दुरूह हो गया है। परोक्ष रूप से वैचारिक स्तर पर इसमें दो बार हो चुका है।