17वीं लोकसभा के 25 जून के सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी सहजता से सभी क्षेत्रों की चर्चा करते हुए अपनी बात रखी। अपने भाषण की शुरुआत में ही देश के मतदाताओं का आभार व्यक्त करते हुए 2014 के चुनाव को याद किया। उन्होंने कहा कि 5 साल पहले वे लोगों के लिए पूरी तरह से नए और अपरिचित थे और उस परिस्थितियों से निकलने के लिए जनता द्वारा एक प्रयोग के तौर पर मौका मिला। पर, इस वर्ष हर तराज़ू पर तौले जाने के बाद जनता ने परखा, तब जाकर दोबारा सत्ता पर बैठाया।
भाजपा की सरकार को गरीबों को समर्पित कर मोदी जी ने आदिवासियों के प्रतिनिधि सांसदों की सराहना की। अधिकार की बात करते हुए उन्होनें कहा कि आज़ादी के बाद जाने-अंजाने में हमने ऐसी स्थिति को अपनाया जहाँ अपने हक़ के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है और आज आलम ऐसा है कि पहले लोग शिकायत किया करते थे कि सरकार कुछ क्यों नहीं करती, अब जब घरों में चूल्हे, शौचालय और बिजली की पूरी व्यवस्था है तब जनता ये सोच रही है कि सरकार इतना क्यों कर रही है।
अपने भाषण में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर भी खूब चुटकी ली। उन्होंने कहा कि यहाँ परिवार (गाँधी परिवार) से बाहर किसी को कुछ नहीं मिलता है, इसलिए तो अटल जी की सरकार की, न ही नरसिम्हा जी और न ही मनमोहन सिंह जी का नाम इनके द्वारा कभी लिया गया। मोदी ने कांग्रेस पर वार करते हुए कहा – ” हम किसी की लकीर छोटी नहीं करते। आपकी ऊंचाई आपको मुबारक। आप इतने ऊँचे हो गए की जड़ों से ही उखड़ गए। आपका और ऊँचा होना हमारे लिए संतोषजनक है। हमारा सपना जड़ों से जुड़ने का है, न कि ऊँचा होना।”
प्रधानमंत्री मोदी ने बड़ी ही चतुराई के साथ 25 जून को ही देश में इंदिरा सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि देश की भारत का संविधान लोकतंत्र की आत्मा है और देश की आत्मा को कुचल दिया गया था। लोकतंत्र पे आस्था का महत्व समझने के लिए लोकतंत्र पे प्रहार को याद करना भी ज़रूरी है।
बापू और बाबा साहब अम्बेडकर के आज़ादी और देश के विकास में सहयोग की सराहना करते हुए उनके लिए दिवसों को समर्पित करने की बात भी प्रधानमंत्री द्वारा की गयी।
यही नहीं आज के आपातकाल यानी जल और अन्न की समस्या को गंभीरता से लेने की बात को राजनीति से ऊपर रखने की अपील भी की गयी। भ्रष्टाचार से लड़ाई की बात पर मोदी जी ने मज़ाकिया तौर पे कहा कि हम कानून से चलने वाले लोग हैं। किसी को ज़मानत मिलती है तो एन्जॉय करें, हमें क्या है!
कांग्रेस के एक अनाम मंत्री द्वारा मुसलामानों की ज़िम्मेदारी न लेने वाले बयान पर एक ओर बवाल हुआ तो दूसरी ओर सम्प्रदायवाद की चर्चा पर कांग्रेस की चुप्पी भी दिखी।
पंडित नेहरू के कर्तव्यों को अधिकार से ऊपर रखने की बात को इस काल का लक्ष्य मानते हुए अंत में देश को किसी भी दल से बड़ा बताकर प्रधान सेवक ने अपने भाषण का अंत किया।
(भूमिका किरण)