पीके का गजब तिलिस्म : पहले ममता संग कांग्रेस तोड़ी, अब उसी को ऊबारने की बिसात
नयी दिल्ली : नेताओं को ठगने की कितनी महारत चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर में है, इसकी ताजा बानगी उनकी कांग्रेस में शामिल होने की मुहिम से देशवासियों को मिल गई। पहले तो पीके ने एक—डेढ़ माह पूर्व ही ममता से मिलकर कांग्रेस को देशभर में तोड़ा। फिर अब आज शनिवार को वे उसी कांग्रेस में शामिल होने के लिए सोनिया और अन्य वरिष्ठ कांग्रेसियों संग दिल्ली में इमरजेंसी बैठक कर रहे हैं। हालांकि अभी उनके पार्टी में शामिल होने पर कोई बयान तो नहीं आया, लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है।
पांच राज्यों के विस चुनाव के दौरान तोड़फोड़
आलम यह है कि देशभर में संकट से जूझ रही कांग्रेस को प्रशांत किशोर के रूप में एक नई उम्मीद दिख रही है। यानी, जिसने उनकी पार्टी को हाल में ही चोट—दर—चोट दी, उसे ही अपना बनाने की मजबूरी। आज सुबह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक आपात बैठक बुलाई। इस मीटिंग में प्रशांत किशोर के अलावा अंबिका सोनी, मलिकार्जुन खड़गे, दिग्विजय सिंह, राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल, अजय माकन व अन्य बड़े नेता शामिल हुए।
सोनिया व वरिष्ठ कांग्रेसियों संग पीके की मीटिंग
बैठक के मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया। लेकिन माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर को कांग्रेसी सदस्य बनाने को लेकर यह बैठक हुई। अभी गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं और कांग्रेस प्रशांत किशोर का उपयोग उसमें करना चाह रही है। बताया जाता है कि पीके कांग्रेस से लंबे समय के लिए जुड़ना चाह रहे, जबकि पार्टी उन्हें आने वाले विस चुनावों जैसे छोटे लक्ष्यों में आजमाना चाह रही। पीके राज्यों के साथ ही 2024 का भी प्लान साथ ही लॉन्च करना चाहते हैं।
आगे की रणनीति और मुद्दों का जबर्दस्त टोटा
राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस की हाल की नाकामियों की एक खास वजह पार्टी की अंदरूनी कलह और आलाकमान की अदूर्दर्शी नीतियों को मानते हैं। विरोधी धड़े के कपिल सिब्बल ने तो यहां तक कह दिया कि गांधी परिवार को पीछे हटना चाहिए। अब कांग्रेस तथा गांधी परिवार के लिए रिवाइवल हेतु ज्यादा विकल्प नहीं हैं। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और कांग्रेस पार्टी हर हाल में अंदरूनी कलह को खत्म करना चाहती है।
ऐसे में शायद यही कारण है कि पीके में कांग्रेस आलाकमान को एक गैर कांग्रेसी और कलह—गुटबाजी से मुक्त एक फ्रेस चेहरा दिख रहा है। लेकिन यक्ष प्रश्न यह कि कई पार्टियों में घूम—घूमकर मंजे हुए नेताओं को नचाने वाला क्या वास्तव में कांग्रेस को सही में ऊबारना चाहता भी है, या फिर केवल अपनी चुनावी रणनीति वाली कंपनी का महज एक और क्लाइंट साधने के चक्कर चला रहा है?