जदयू में इंट्री के साथ प्रपंच शुरू
इसी बीच प्रशांत किशोर ने अमित शाह का सचिव बनने से इनकार करने के बाद कहा कि वे नीतीश कुमार की पार्टी में शामिल करवा दें। आखिरकार सितंबर 2018 में प्रशांत किशोर जेडीयू में शामिल हो गए और कुछ समय बाद ही उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। उपाध्यक्ष बनते ही सुर्ख़ियों में आने लगे।
पार्टी में पद मिलने के बाद प्रशांत किशोर एक्शन में आ गए। महत्वाकांक्षी व्यक्ति प्रशांत किशोर पार्टी को अपने अनुसार चलाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने ‘यूथ इन पॉलिटिक्स’ के तहत हजारों मुखिया, सरपंच व वार्ड सदस्यों के आलावा लाखों युवाओं को पार्टी से जोड़ा। कार्यक्रम के सिलसिले मुजफ्फरपुर गए एक कार्यक्रम के दौरान प्रशांत किशोर ने कहा था “अगर किसी को प्रधानमंत्री, किसी को मुख्यमंत्री बना सकता हूं तो किसी को पंचायत प्रमुख और मुखिया बनाना कौन सी बड़ी बात है”। एक इंटरव्यू में पीके से जब यह सवाल किया गया कि क्या आप इस कार्यक्रम को सफल बनाकर नीतीश के उत्तराधिकारी बनना चाहते हैं ? टाल मटोलकर जवाब देते हुए पीके ने कहा था कि “नहीं हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं है”। लेकिन इसी कार्यक्रम के तहत पीके ने बिहार में एक सर्वे करवाया था।
उक्त सर्वे का निष्कर्ष यह निकला कि बिहार में जदयू अपनी धर्मनिरपेक्षता और विकासात्मक पहल के कारण लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस तथा अन्य दलों के साथ जदयू जा सकती है। लेकिन, ऐन मौके पर गृह मंत्री अमित शाह को इसकी जानकारी मिली और उनकी चाल से जदयू के कदम थम गये।
सूत्र बताते हैं कि सर्वे में यह बात उभर कर आयी कि मुस्लिमों का सबसे बड़ा धड़ा धर्मनिरपेक्षता को लेकर जदयू का मुंह ताक रही है। कारण कि राजद तथा कांग्रेस से उसे अब बहुत उम्मीद नहीं रही गयी है। उसे विकल्प की तलाश है। यही कारण है कि बिहार का सबसे बड़ा मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र और कश्मीर और लद्दाख के बाद तीसरा सबसे अधिक घनत्व (72 फीसदी) वाली मुस्लिम आबादी किशनगंज में असुदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को उपचुनाव में मत देकर विजयी बना दिया।
कांग्रेस, जदयू और मुस्लिम नेताओं को लेकर बनी थी चौकड़ी
सूत्रों का कहना है कि सर्वे की जानकारी जदयू के सभी वरिष्ठ नेताओं को थी। लेकिन, उन्हें यह नहीं पता था कि सर्वे का उद्देश्य था क्या? वैसे, कुछ नेताओं को ही इसके उद्देश्य की जानकारी थी। जानकारी के अनुसार, टीम प्रशांत चाहती है कि बिहार में 18 फीसदी मुस्लिम, कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी के साथ मिलकर भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ा जाए। भले ही अमित शाह के हस्तक्षेप और सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार को बिहार एनडीए का चेहरा बताते हुए मसले को ठंडे बस्ते में डाल दिए थे। सूत्रों का कहना है कि इसके बाद पीके ने जदयू से बड़ी मांग करते हुए राज्यसभा की सीटें मांगी थी। जिसे जदयू नेता नीरज कुमार ने कहा भी। राज्यसभा में सीट नहीं मिलने के कारण प्रशांत किशोर ने दिल्ली में नीतीश कुमार को भाजपा के साथ चुनाव नहीं लड़ने को कहा था। लेकिन, गठबंधन की मजबूती दिखाने के लिए नीतीश ने भाजपा के साथ दिल्ली चुनाव लड़ा।
नीतीश के इस फैसले के बाद प्रशांत किशोर अपने सहयोगी पवन वर्मा के साथ मिलकर नीतीश को निशाने पर रखने लगे। जिसका नतीजा यह हुआ था कि जदयू के महासचिव और सीएम नीतीश कुमार के करीबी आरसीपी सिंह ने प्रशांत किशोर पर बड़ी कार्रवाई का संकेत दिया था। उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर जदयू में अनुकंपा पर हैं। वे किसके लिए और कहां काम कर रहे हैं, यह सब जानते हैं। पार्टी में रहने वाले हर किसी को पार्टी का संविधान तो मानना ही पड़ेगा, वर्ना वे अपना रास्ता खुद तय कर लें। आख़िरकार जदयू ने 29 जनवरी 2020 को अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और पार्टी के महासचिव सह प्रवक्ता पवन वर्मा को पार्टी से निकाल दिया।