पीके के आगे नीतीश बेबस क्यों? दांव पर पार्टी संविधान

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पटना : जदयू के सारे कायदे—कानून और यहां तक कि सारी हेकड़ी प्रशांत किशोर के आगे बेबस हो जाती है। यही कारण है कि पार्टी उनकी तमाम गतिविधियों पर लगाम लगाने की बजाए उनके द्वारा उठाए कदमों के बीच अपने लिए चेहरा बचाने की जुगत निकालाना ज्यादा बेहतर समझती है। वैसे भी अब विधानसभा चुनाव का बड़ा टास्क सामने है। ऐसे में जहां प्रशांत किशोर एक के बाद एक चुनावी बिजनेस करते जा रहे हैं। वहीं उनकी पार्टी जदयू उनके बिजनेस को निजी बता चेहरा बचा रही है। आंध्र के बाद अब प्रशांत किशोर ने बंगाल में नया काम ढूंढ लिया है, वह भी जदयू के दुश्मन नहीं तो कम से कम दोस्त भी नहीं ममता बनर्जी के पास। आइए जानते हैं कि प्रशांत किशोर को लेकर क्या है जदयू की मजबूरी?

क्या ‘बंगाल डील’ की पीके ने ली इजाजत

Image result for mamta banerjeeदरअसल, जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर अब ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के लिए काम करेंगे। वे वहां जदयू के सहयोगी पार्टनर भाजपा के खिलाफ चुनावी रणनीति बनाएंगे। प्रशांत किशोर ने टीएमसी के साथ अगले विधानसभा चुनाव में काम करने के लिए बाकायदा कांट्रैक्ट भी साइन किया है। जाहिर है कि प्रशांत किशोर के इस फैसले के बाद सवाल खड़ा हुआ कि क्या जदयू का पार्टी संविधान इस बात की इजाजत देता है। क्या इसके लिए नीतीश कुमार की सहमति उन्होंने ली है?

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केसी त्यागी की दलील में झलकती मजबूरी

कहा गया कि कुछ दिन पहले ही प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार से मुलाकात की थी। इसके बाद ही उनके बंगाल में काम करने की खबर आई। इधर आज शुक्रवार को जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष केसी त्यागी ने कहा कि नीतीश कुमार की सहमति से ही प्रशांत किशोर बंगाल में ममता के लिए काम करने जा रहे हैं। लेकिन इस मामले पर जदयू के संविधान और पार्टी स्टैंड के बारे में पूछने पर उन्होंने प्रशांत किशोर का बचाव किया। त्यागी ने कहा कि जेडीयू में होना उनकी पॉलिटिकल फिलॉसफी है। लेकिन उनकी कम्पनी की कोई पॉलिटिकल फिलॉसफी नहीं है। प्रशांत किशोर यह कम्पनी ही ममता के लिए काम करने जा रही है।

केसी त्यागी ने कहा कि पीके कई राजनीतिक दलों के लिए काम कर चुके हैं। यह ठीक ऐसा है जैसे बीएसएनएल कम्पनी के फोन का सभी लोग इस्तेमाल करते हैं। प्रशांत किशोर की कम्पनी भी सबके लिए काम कर सकती है। डॉक्टर भी कई पार्टियों के पदाधिकारी होते हैं। लेकिन वे सबका इलाज करते हैं। उसी तरह प्रशांत किशोर भी अपना काम कर सकते हैं। हालांकि, प्रशांत किशोर के टीएमसी से जुड़ने की खबर के बाद जदयू प्रवक्‍ता अजय आलोक ने तीखी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की थी। उन्‍होंने कहा था कि पार्टी की मंजूरी लिए बिना प्रशांत किशोर दूसरी पार्टी से नहीं जुड़ सकते।

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सबकुछ मंजूर

श्री त्यागी और अजय आलोक के बयानों से साफ है कि जदयू किसी भी कीमत भी प्रशांत किशोर को नाराज नहीं करना चाहती। वह भी तब जब अगले वर्ष विधानसभा का चुनाव होने वाला है। चुनावी रणनीति के माहिर पीके को नाराज करना सांग​ठनिक रूप से कमजोर जदयू जैसी क्षेत्रीय पार्टी को भारी पड़ सकता है। इससे पहले जब प्रशांत किशोर ने नीतीश को लेकर एनडीए गठबंधन के प्रश्न पर कुछ बड़बोलापन दिखाया था, तब जदयू के कई बड़े नेताओं, यहां तक कि सीएम नीतीश ने भी उनकी जबर्दस्त खिंचाई की थी। लेकिन तब की बात और थी। अब सबसे बड़ा टास्क विधानसभा चुनाव है। ऐसे में जदयू यदि पार्टी के संविधान से ज्यादा यदि एक कुशल चुनावी रणनीतिकार को जरूरी मानती है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।

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