पितरों को तर्पण के लिए गया तैयार, जानें कब से शुरू होगा पितृपक्ष?

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पटना/गया : आश्विन कृष्णपक्ष प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पंद्रह दिन पितृपक्ष के नाम से जाना जाता है। पितृपक्ष के पंद्रह दिनों में लोग अपने पूर्वजों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌ अर्थात जो श्रद्धा से किया जाये, वह श्राद्ध है। इसका अर्थ है प्रेत और पित्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाये, वह श्राद्ध है। बिहार के गया में किया गया तर्पण और श्राद्ध का अपना महत्व है। इसके लिए सारी तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं। इस बार 14 सितंबर से 28 सितंबर तक पितृपक्ष रहेगा। 14 सितंबर को पूर्णिमा प्रातः 9 बजकर 3 मिनट तक है। इसके बाद प्रतिपदा श्राद्ध और पितृपक्ष शुरू हो जाएगा।

पितृपक्ष का पारिवारिक संदर्भ

भारतीय सनातन परंपरा में अपने दिवंगत माता-पिता के लिए प्रतिवर्ष पितृपक्ष में तर्पण एवं पिंडदान करने का शास्त्रीय विधान है। एक द्विज के लिए यह दैनिक कृत्य है। आज भी एक सुपुत्र की यह इच्छा रहती है कि वह अपने दिवंगत माता-पिता के लिए ऐसा करे। शास्त्र ने इस कार्य के लिए गया धाम को सर्वोत्तम माना है। मान्यता है कि आश्विन मास में सूर्य के कन्या राशि पर अवस्थित होने पर यमराज पितरों को यमालय से मुक्त कर देते हैं। पितर पृथ्वी पर आकर यह इच्छा करते हैं कि उनके पुत्र गया क्षेत्र में आकर पिंडदान करें, ताकि उन्हें मुक्ति मिले।

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भगवान् श्रीराम ने भी अपने पारिवारिक दायित्व का निर्वहण करते हुए गयाधाम में अपने पिता महाराज दशरथ के लिए पिंडदान किया था। गरुड़ पुराण, शिवपुराण, आनंदरामायण आदि में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। गया धाम में पुत्र अपने पूर्वजों को पिंडदान और तर्पण के माध्यम से पारिवारिक दायित्व का निर्वहण करते हुए अपने माता-पिता के ऋण से उऋण होता है। परिवार का वह बाल-सदस्य जो अपने पूर्वजों से अपरिचित है, इस अवसर पर वह कौतूहलवश सबका परिचय पूछता है और जानकर आनंदित होता है। इस प्रकार पारिवारिक संबंधों के सुदृढ़ीकरण में पितृपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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