पटना : कालजयी साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु सही मायने में वैश्विक स्तर के रचनाकार थे इसलिए उन्हें महज आंचलिक उपन्यासकार की संज्ञा देना साहित्य जगत में उनके योगदान को संकुचित करना होगा। उक्त बातें डॉ. राममोहन राय ने शनिवार को कहीं। वे कालिदास रंगालय में आयोजित ‘फणीश्वरनाथ रेणु: सृजन एवं सरोकार’ विषय पर समारोह को संबोधित कर रहे थे।
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में उन्होंने कहा कि अमेरिकी लेखक एरनेस्ट हेमिंग्वे को उनके छोटे से उपन्यास ‘द ओल्ड मैन एंड द सी’ के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। उसी कालखंड में रेणु ने ‘मैला आंचल’ की रचना की और यह दुखद बात है कि साहित्य जगत ने रेणु को महज आंचलिक उपन्यासकार कहकर उनके क्षितिज को छोटा करने का प्रयास किया। रेणु को एक आंचलिक उपन्यासकार कहने से पहले उनकी ‘परती परिकथा’ पर दृष्टि डालनी चाहिए, क्योंकि उस स्थिति में उन्होंने जिस प्रकार तत्सम हिंदी का प्रयोग किया है वह आज ही प्रशंसनीय है।
रेणु की कृतियों में करुणा का समावेश
डॉ. राय ने फणीश्वर नाथ रेणु से संबंधित कई घटनाओं और उदाहरण को साझा करते हुए रेणु के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला और कहा कि रेणु की कृतियों में करुणा का समावेश होता है और जिस व्यक्ति के हृदय में करुणा होगी वह कभी भी संकीर्ण मानसिकता वाला नहीं हो सकता। रेणु तो इतने विनम्र थे कि उम्र में अपने से छोटों को भी कभी ‘तुम’ कह कर संबोधित नहीं किया। उपन्यासकार बनने से पहले वे कथाकार थे और उससे भी पहले वे सामाजिक कार्यकर्ता थे। रेणु 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में जेल जाते हैं और फिर 1950 में नेपाल के संघर्ष में सक्रिय रुप से उतर जाते हैं। आजादी के बाद जेपी आंदोलन में उनकी सक्रियता देखते बनती है।
उद्घाटन सत्र में पुस्तक का विमोचन
सत्राची फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के पहले दिन उद्घाटन सत्र में पुस्तक का विमोचन किया गया एवं रेणु के व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध पक्षों पर विचार व्यक्त किए गए। प्रेम कुमार मणि, सुरेंद्र नारायण यादव, आलोक धनवा जैसे विद्वानों ने उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। इस अवसर पर आनंद बिहारी, प्रमोद कुमार सिंह, अरुण नारायण समेत हिंदी साहित्य में शोध कार्य से जुड़े विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।