पटना : इतिहास में पाटलीपुत्र के नाम से गौरवपूर्ण स्थान रखने वाला पटना शहर इकीसवीं सदी में अपने हाल पर रो रहा है। राह चलते राहगीर सड़क पर पैर रखने के लिए जगह तलाशते हैं। नाक ऑक्सीजन लेने में मुश्किल महसूस करे और मक्खियों की भिनभिनाहट आपको चौकन्ना करने लगे ता आप समझ लें कि पटना की सड़कों पर टहल रहे हैं। बदबू से पूरा शहर बेहाल है। डेंगू की दहशत अलग, और उस पर त्योहारी सीजन सिर पर। ऐसे में दहशत का आलम हर ओर, फिर भी बिहार में बहार है का सियासी शोर। यानी फूल आॅन ‘सियासी मजाक’ या यूं कहें, पॉलिटिकल व्यंग्य। पटना की जनता के साथ।
क्या कहता है राजधानी का नागरिक
पटना की सड़क पर कूड़े का हाल देख भईया कह रहे थे। पटना का नगर निगम किसी कारणवश शोक ग्रस्त हो गया है। मैंने कहा नहीं, ऐसा तो नहीं है। नगर निगम तो अपना काम कर रहा है। तब भईया कहने लगे। जानते हो आज मैं घूमने निकला। चलते—चलते पटना लॉ कॉलेज के पास गया तो वहां सुमति पथ चौराहे पर कूड़े का अम्बर देखा। वह देखकर उल्टी आने वाली थी। भागकर अपना जान बचाया रे भाई। अब देखो, जैसे ही आगे बढ़ा तो गुलबी घाट मोड़ पर देखा कि एक औरत को सड़क पार करने के लिये अपने कपड़े को संभालना पड़ रहा था। ऐसे में तो कोई भी शर्म से मर जाएगा। भईया इतना ही कहकर नहीं रुके। कहने लगे जानते हो, मैं तो चलते—चलते बीएनआर कॉलेज जा पहुंचा। दूर से देखने पर ऐसा लगा जैसे शहर का सबसे बड़ा कूड़ा घर यहीं है। टेकारी रोड तो पार भी नहीं कर पाया। कूड़ा देखकर मन भन्ना उठा। लौटकर वापस आ गया। साथे -साथे फोटो भी लाये हैं, सब जगह का। फोटो खींचते हुए देखा तो ट्रैक्टर ले के फिर निगम वाला वहां आ गया।
(राजीव राजू)