निष्पक्ष समीक्षा के अभाव में बनेंगी हिंसक फिल्में
पटना: पटना पुस्तक मेले में चल रहे फिल्म फेस्टिवल के अंतर्गत सोमवार को राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम ने मुख्य वक्ता के रूप में अपनी बात रखी। फिल्म फेस्टिवल के संयोजक रविकांत सिंह ने उनसे बातचीत की। सीआरडी पटना पुस्तक मेला के अध्यक्ष व चर्चित साहित्यकार रत्नेश्वर ने प्रतीक चिन्ह देकर विनोद अनुपम को सम्मानित किया।
बातचीत के दौरान विनोद अनुपम ने कहा कि पुस्तक मेले जैसे बौद्धिक आयोजन में सिनेमा पर बातचीत के लिए स्पेस निकाला गया है, यह प्रसन्नता की बात है। भारत में सिनेमा को बौद्धिकता का विषय समझा जाए, यह अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि भारत में दादा साहेब फाल्के ने फिल्म निर्माण के साथ ही सिनेमा पर लेखन का कार्य भी शुरू किया था, क्योंकि उनका मानना था कि शब्द के माध्यम से लोगों को सिनेमा के बारे में बताया जा सकता है। लेकिन, चिंता की बात है कि कालांतर में भारत में फिल्म बनाने और देखने के बीच इस पर लेखन का कार्य कमतर होता गया। फ़िल्म समीक्षा या सिनेमा पर लेखन अत्यंत ही जरूरी है, क्योंकि अगर सिनेमा विधा की सही समीक्षा नहीं होगी, तो हिंसक से हिंसक फिल्में हमारे सामने आएंगीऔर हमारे अवचेतन मन को दूषित करती रहेंगी। गलत फिल्मों को गलत कहने का विवेक विकसित हो, इसके लिए निष्पक्ष फिल्म समीक्षा अति आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि भारत में सिनेमाई लेखन को गंभीरता से नहीं लिया गया, क्योंकि पूरे सिनेमा को ही हम लोगों ने महज मनोरंजन मानकर छोड़ दिया, जबकि इसके विपरीत सच्चाई है कि सिनेमा लंबे कालावधि में समाज के स्वभाव को बदलता है।
अखबारों में फिल्म समीक्षा के लिए काम हो रहे स्पेस के सवाल पर उन्होंने कहा कि स्टार मार्किंग देकर फिल्मों का आकलन कर देना ही समीक्षा नहीं है। बल्कि, इसके लिए समेकित दृष्टि से लेखन की आवश्यकता होती है। इसके लिए उन्होंने महान फिल्मकार सत्यजीत रे को उद्धृत करते हुए कहा कि वे मानते थे कि फिल्म समीक्षक निर्माता और दर्शक के मध्य एक सेतु का कार्य करता है। इसलिए फिल्म समीक्षक से फिल्मकार के मुकाबले थोड़ी अधिक समझ रखने की अपेक्षा होती है।
इस अवसर पर सिने सोसाइटी, पटना के अध्यक्ष आरएन दास, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के सदस्य प्रशांत रंजन, लेखक अनंत, साहित्यकार कृष्ण समृद्ध,लेखक देवराज,युवा फिल्मकार प्रियश्वरा भारती, मिताली, रंगकर्मी मुन्ना जी,रासराज, सम्राट, विकास, सौरभ सागर, समेत कई अन्य रंगकर्मी, समीक्षक, कलाकार व प्राध्यापक उपस्थित थे।