पार्टी बड़ी या पीके? जदयू से छुट्टी संभव!

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पटना : जदयू में प्रशांत किशोर किसी से भी नहीं डरते। तभी तो पार्टी और इसके मुखिया नीतीश कुमार को चुनौती देते हुए सीएबी पर उन्होंने जंग छेड़ने का ऐलान कर दिया। तमाम चेतावनियों के बावजूद आज शुक्रवार को पीके ने फिर ट्वीट किया। यही नहीं, प्रशांत किशोर ने अपने ट्वीट के साथ हैशटैग #NotGivingUp के माध्‍यम से यह सेंदेश भी दे दिया कि वे इस मुद्दे को अब छोड़ने नहीं जा रहे। चाहे जदयू रहे या नहीं रहे। उनके लिए पार्टी से ज्यादा महत्वपूर्ण उनका चुनावी रणनीति का धंधा है।

फिर किया जदयू के निर्णय पर ट्वीट

नागरिकता संशोधन बिल पर आज के ट्वीट में एकबार फिर पार्टी लाइन के खिलाफ जाते हुए उन्होंने लिखा कि बहुमत से संसद में नागरिकता संशोधन बिल पास हो गया। न्यायपालिका के अलावा अब 16 गैर भाजपा मुख्यमंत्रियों पर भारत की आत्मा को बचाने की जिम्मेदारी है। विदित हो कि तीन राज्यों—पंजाब, केरल और पश्चिम बंगाल ने नागरिकता संशोधन बिल को नकार दिया है। इसी को लेकर प्रशांत ने कहा कि अब दूसरे गैर-भाजपा राज्यों के सीएम को अपना रूख स्पष्ट करने का समय आ गया है।

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पीके से मेल नहीं खाता जदयू का स्टैंड

दरअसल, प्रशांत किशोर शुरू से ही नागरिकता संशोधन विधेयक और एनआरसी के खिलाफ थे। उनकी पार्टी जदयू ने काफी समय तक इन मुद्दों पर अपना स्टैंड साफ नहीं किया था। लेकिन अचानक संसद में जदयू ने नागरिकता संशोधन विधेयक के मुद्दे पर केंद्र सरकार का साथ दे दिया। यहीं पर प्रशांत किशोर मात खा गए। अब जदयू में बगावत और विरोध की आवाज बुलंद करना उनकी मजबूरी बन गई है।

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पीके और शिवसेना को भाजपा का डोज

इधर नागरिकता संशोधन बिल के जरिये भाजपा ने एक तीर से कई शिकार किये हैं। मामले को यदि प्रशांत किशोर की शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से चुनावी रणनीति पर इसी वर्ष हुई बैठक से जोड़कर देखें तो साफ हो जाता है कि 30 वर्षों की भाजपा—शिवसेना दोस्ती को तोड़ने में उनकी रणनीतिक भूमिका जरूर रही है। भाजपा ने तभी से यह तय कर लिया था कि वे प्रशांत किशोर की असलियत सामने लाकर रहेगी। नागरिकता बिल के माध्यम से जहां भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे वाली शिवसेना को एक्सपोज करने की रणनीति अपनाई, वहीं जदयू को समझाकर प्रशांत किशोर को भी
हाशिए पर पहुंचा दिया।

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राजनीतिक लेबल बदलने की मजबूरी

साफ है कि ऐसे में ‘दुकान’ और राजनीति, दोनों के लिहाज से प्रशांत किशोर के लिए जदयू में विरोध का स्वर उठाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था। राजनीति में वैसे भी उनकी खास दिलचस्पी नहीं रही है। हां, राजनीति का इस्तेमाल आपनी ‘दुकान’ के लिए वे जरूर करना चाह रहे हैं। अब राजनीति का आयाम इतना बड़ा है कि इसका ठौर कहीं ​भी मिल सकता है। इसके लिए जदयू का ही लेबल कोई जरूरी तो नहीं।

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