परमाणु विकिरण का कोई खतरा नहीं, अकारण हैं भ्रांतियां

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पूरी तरह सुरक्षित हैं भारत के परमाणु बिजली घर

राकेश प्रवीर/ऋतेश अनुपम

न्यूक्लीयर पावर यानी नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारतीय परिदृश्य बदला है। मगर इसे लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां भी है। यह ठीक है कि आज के दौर में ऊर्जा के बिना विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। ऊर्जा के अनेक स्रोत हैं। इनमें कुछ परम्परागत तो कुछ नई तकनीक पर आधारित है। नाभिकीय ऊर्जा का क्षेत्र तकनीक और निरंतर शोध पर केन्द्रित है। परमाणु विज्ञानी होमी जहांगीर भाभा के सपनों को साकार करने में आज देश के 4000 से ज्यादा वैज्ञानिक सतत शोध व अन्वेषण में लगे हुए हैं।भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ रहा है। विगत 04 मई से 07 मई तक भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग (DEPARTMENT OF ATOMIC ENERGY) के लोक जागरूकता प्रभाग (PAD) और नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया (NUJI)की ओर से तमिलनाडु के कल्पक्कम स्थित इंदिरा गांधी परमाणु शोध केन्द्र (INDIRA GANDHI CENTRE FOR ATOMIC RESEARCH) में आयोजित कार्यशाला में परमाणु बिजली घरों की तकनीक, नाभिकीय तकनीक का कृषि, स्वास्थ्य व मानव जीवन के अन्य क्षेत्रों में उपयोग, परमाणु विकिरण और उसका प्रभाव आदि पर देश भर से आए पत्रकारों का सारगर्भित जानकारियां विभिन्न प्रस्तुतियों व भ्रमण के क्रम में उपलब्ध कराई गई।

विकसित देश जहां पर लगभग 20 से 50 प्रतिशत बिजली परमाणु ऊर्जा से होती है निर्मित

यह दीगर है कि आज हमारे देश में विभिन्न विकास कार्यों की गति तेज होने के कारण ऊर्जा की मांग बढ़ी है। फिलहाल 3.5 लाख मेगावाट बिजली की मांग के उलट महज 2.25 लाख मेगावाट बिजली का ही देश में उत्पादन हो रहा है। ऊर्जा के स्वच्छ व सुरक्षित विकल्प के तौर पर आज नाभिकीय ऊर्जा को भविष्य की ऊर्जा के तौर पर स्वीकारा जा चुका है। आज भारत में 07 परमाणु बिजली घर 22 रिएक्टरों के माध्यम से संचालित हैं जिनसे प्रतिवर्ष भारत की कुल जरूरतों का लगभग 3.1 प्रतिशत यानी 6780 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है। यह ठीक है कि अभी भारत में सर्वाधिक बिजली थर्मल यानी ताप से उत्पादित हो रही है जिनका प्रतिशत करीब 68 है। 18 प्रतिशत बिजली हाड्रो यानी पानी से, 12 प्रतिशत बायोमास, सोलर और विंड आदि स्रोतों से प्राप्त की जाती है। दूसरी और फ्रंास में परमाणु ऊर्जा से लगभग 80 प्रतिशत बिजली का निर्माण किया जाता है। न केवल फ्रांस बल्कि बेल्जियम, स्वीडेन, हंगरी, जर्मनी, स्विट्रलैंड, अमेरिका, जापान, चाइना, रुस आदि कई ऐसे विकसित देश हैं जहां पर लगभग 20 से 50 प्रतिशत बिजली परमाणु ऊर्जा से ही निर्मित होती हैं।

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हमारे यहां नाभिकीय ऊर्जा को लेकर अकारण भय और अफवाहों का वातावरण बनाया गया। लोगों में भ्रांतियां और गलतफहमियां घर कर गई है कि परमाणु बिजलीघर से विकिरण निकलता है, और परमाणु बिजली घर के समीप के गांव-खेत नष्ट हो जायेंगे। इसके साथ ही परमाणु विकिरण के कारण कैंसर होने की संभावना के आधार पर भी लोगों में डर फैला। मगर अब के अनेक रिसर्च के आधार पर वैज्ञानिकों ने इन सभी भ्रांतियों व गलतफहमियों को बेबुनियाद साबित किया है।

चार दिनी कार्यशाला के दौरान अनेक वैज्ञानिकों ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि आम जनमानस में यह गलत धारणा बैठ गई है कि नाभिकीय रियेक्टरों से नाभिकीय हथियारों का उत्पादन होता है। यह बात निराधार है। परमाणु बम बनाने वाले पहले पांच देशों ने नाभिकीय ऊर्जा से विद्युत उत्पादन शुरू करने से पूर्व ही परमाणु बम का निर्माण कर चुके थे। अतः तकनीकी रूप से हम कह सकते हैं कि परमाणु बम बनाने के लिए पहले परमाणु रियेक्टर का निर्माण करना आवश्यक नहीं है। आज विश्व की वास्वविक समस्या धरती का बढ़ता तापमान है। इस पर विचार-विमर्श की आवश्यकता है क्योंकि कोयले से बिजली निर्माण के दौरान वातावरण में उत्सर्जित होने वाली हानिकारक गैसें चिन्ता का विषय बनी हुई है।

 

दूसरी भ्रांति रेडियोधर्मी कचरे के निस्तारण को लेकर है। जबकि हकीकत है कि भारत ने हर तरह के रेडियोधर्मी कचरे का निस्तारण कर स्वच्छ और हरित वातावरण सुनिश्चित करने में पूर्ण आत्मनिर्भरता हासिल की ली है। नाभिकीय कचरा वस्तुतः कचरा है ही नहीं। खर्च हो चुक नाभिकीय ईंधन का दुबारा प्रसंस्कृत कर उपयोग में लाया जाता है। इसमें क्लोज्ड फ्यूएल साइकिल का इस्तेमाल होता है। पावर प्लांट के नजदीक के पूरे इलाके के पर्यावरण से जुड़े पहलुओं की नियमित निगरानी की जाती है।

इसके अलावा एक भ्रांति यह भी है कि परमाणु बिजली घर एक बम की तरह है और किसी बड़ी दुर्घटना की स्थिति में इससे विकिरण की घातक मात्रा उत्पन्न होती है। दरअसल यह भय थ्रीमाइल्स आइलैंड और चेर्नोबिल में हुई दुर्घटनाओं से संबंधित है। वर्ष 2011 में जापान के फुकुशिमा में सुनामी के कारण हुई दुर्घटना भी लोगों में बेवजह डर का वातावरण बना रही है। इन दुर्घटनाओं से डरने के बजाय इनके बारे में जानने की जरूरत पर भारतीय वैज्ञानिकों ने जोर दिया। वैज्ञानिकों के अनुसार 1979 में अमेरिका के न्यूक्लियर पावर प्लांट थ्रीमाइल्स आइलैंड दुर्घटना का आम जनता के स्वास्थ्य पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा। क्रमिक गलतियों को नजरअंदाज करने की वजह से दुर्घटना हुई जिससे रिएक्टर को गंभीर क्षति पहुंची। हां, दुर्घटना के दो दिनों के बाद कुछ रेडियो सक्रिय गैसों का रिसाव हुआ परन्तु यह पृष्ठभूमि स्तर से ऊपर की डोज नहीं थी, जिससे स्थानीय नागरिकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

चेर्नोबिल दुर्घटना से सबक लेते हुए सुरक्षा के सख्त प्रबंध किए जा चुके

इसी प्रकार वर्ष 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल में घटी दुर्घटना में विद्युत प्रवाह में विचलन के परिणामस्वरूप जल-धातु अभिक्रिया हुई, हाइड्रोजन गैस का रिवाव हुआ और ग्रेफाइट में आग लग गई थी। उस दौरान परमाणु विस्फोट की अफवाह फैलाई गई थी। मगर परमाणु विस्फोट की तुलना में बहुत कम विकिरण का रिसाव हुआ था। यह ठीक है कि आज देश-दुनिया में चेर्नोबिल दुर्घटना से सबक लेते हुए सुरक्षा के सख्त प्रबंध किए जा चुके हैं।

थोड़े वर्ष पहले जापान के फुकुशिमा दुर्घटना का संबंध विकिरण से नहीं बल्कि भूकंप और सुनामी से था। इस दुर्घटना में 22000 मौतें परमाणु बिजली घर से निकले विकिरण से नहीं बल्कि भूकंप और सुनामी के कारण हुई। वर्ष 2004 के 26 दिसम्बर को जब भारत में सुनामी आई थी तो सुनामी प्रभावित क्षेत्र में स्थित मद्रास व कुडनकुल्म परमाणु बिजली घर पर काई आंच नहीं आई थी। मद्रास परमाणु बिजली घर के यूनिट इंचार्ज ई. सेल्वा कुमार ने बताया कि सुनामी का अहसास होते ही उन्होंने अपनी यूनिट को मैन्युअली बंद कर दिया और वैकल्पिक कुलेंट का चालू कर संयंत्रों को सुरक्षित कर लिया। 6 दिन बाद भारत के ऊर्जा नियामक परिषद द्वारा गंभीर समीक्षा के उपरांत फिर से प्लांट का संचालन शुरू किया गया। मद्रास परमाणु बिजली घर के सीनियर इंजीनियर एस रविशंकर ने बताया कि फुकुशिमा की दुर्घटना अलग थी मगर हमारे सभी संयंत्र सुरक्षित इस लिए रहे कि हमारे रिएक्टर, प्लांट और इसके उपकरण समुद्र तल से 7.5 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसके साथ ही डीजल जनरेटर 9.5 मीटर की ऊंचाई पर है जो कि 7.5 मीटर की सुरक्षित ऊंचाई से ऊपर है।

भारत के सभी परमाणु बिजली घर पूरी तरह से सुरक्षित

एक और महत्वपूर्ण भ्रांति परमाणु बिजली केन्द्र से निकलने वाले विकिरण को लेकर है। इसमें कोई शक नहीं कि विकिरण की अधिक मात्रा खतरनाक हो सकती है और इसके शारीरिक और अनुवांशिक प्रभाव पड़ सकते हैं। भारत के परमाणु बिजली घरों में विकिरण से संबंधित कोई दुर्घटना तो दूर की बात है, आज तक किसी भी परमाणु बिजली घर में किसी भी कर्मचारी पर विकिरण का जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा है। परमाणु बिजलीघरों में विकिरण से संबंधित भ्रांतियों को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक्स-रे विकिरण से तुलना करते हुए स्पष्ट किया कि यदि आप परमाणु बिजलीघर की सीमा पर एक सौ साल तक लगातार बैठे रहें तो प्राप्त होने वाले नाभिकीय विकिरण, आपके एक बार छाती का एक्स-रे कराने के दौरान प्राप्त विकिरण जितना होता है। यह तथ्य स्पष्ट करता है कि परमाणु बिजलीघरों के कारण विकिरण का प्रभाव नगण्य है। वैज्ञानिकों के अनुसार तथ्य यह भी है कि आज तक भारत के किसी भी परमाणु बिजली घर में विकिरण के कारण किसी एक व्यक्ति की मृत्यु की कोई रिपोर्ट नहीं है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि भारत के सभी परमाणु बिजली घर पूरी तरह से सुरक्षित हैं।

राकेश प्रवीर/ऋतेश अनुपम
(तमिलनाडु के कल्पक्कम में भारत सरकार के ‘डिपार्टमेंट ऑफ़ एटाॅमिक एनर्जी’ और पत्रकार संगठन एनयूजेआई द्वारा आयोजित चार दिवसीय वर्कशाॅप का निष्कर्ष)

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