पालघर में जिहादियों के लिंचिंग वाले पाप पर पर्दा क्यों? लॉकडाउन में कैसे जुटे उन्मादी?
मुंबई/नयी दिल्ली : महाराष्ट्र के पालघर के गड़चिनचले गांव में जूनागढ़ अखाड़े के दो साधुओं की उन्मादी लोगों द्वारा पीट-पीटकर हुई निर्मम हत्या ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। पूरी घटना वहां मौजूद कुछ पुलिसकर्मियों के सामने हुई। इसे दबाने का भी भरपूर प्रयास किया गया। लेकिन सेक्युलरिज्म और मानवाधिकार की दुकान चलाने वाले अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाये तथा एक वायरल वीडियो के जरिये सच बाहर आ ही गया। इस घटना ने लिंचिंग को मनमाफिक इस्तेमाल करने वालों के नकाब उतार दिये।
साधुओं की लिंचिंग का जिहादी कनेक्शन छिपा रहे लिबरल
लोग सवाल कर रहे हैं कि लॉकडाउन में लाठी—डंडे से लैस इतने हमलावर वहां कैसे जुट गये? महाराष्ट्र सरकार से लेकर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया व कथित मानवाधिकार संगठनों ने इस पूरे मामले को एकदम से दबा देने का प्रयास क्यों किया? क्या इन साधु—संतों की इस तरह से हत्या लिंचिंग नहीं है? अब बताइये इस घटना को किसने और क्यों अंजाम दिया? जो अब तक देश में खुद को लिबरल बता विदेशों से पैसा लेकर लिंचिंग पर भारत को गाली देते थे, अब वे चुप क्यों हैं?
विदेश से पैसा लेकर भारत को बदनाम करने वाले बेनकाब
जैसे—जैसे पालघर की इस घटना से उपजे इतने सारे क्यों का उत्तर सामने आएगा, वैसे-वैसे लोकतंत्र व सेक्युलरिज्म के नाम पर भारत में चल रहे कथित आपराधिक गठजोड़ का खुलासा भी होने लगेगा। पालघर की यह घटना उतनी सीधी व सामान्य नहीं है, जैसा कि बताया जा रहा है।
महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने झट से कह दिया कि वहां हुए माॅब लिंचिंग में मरने व मारने वाले एक ही पंथ के हैं। लेकिन, घटनास्थल के आसपास की वर्तमान आबादी में बांग्लादेशी व रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी के बारे में उन्होंने कुछ नहीं बताया। इस घटना के पूर्व भी वहां ऐसी घटनाएं घटती रही हैं। इसके कारण उस इलाके में लोग जाने से कतराते हैं।
रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों वाले इलाके में हुई घटना
पालघर का वह इलाका जेहादियों, नक्सलियों व विदेशी फंड से चलने वाले एनजीओ—खोरों का इलाका है। समाजसेवा व संघर्ष के नाम पर वहां से भारत विरोधी गतिविधियां संचालित होती रही हैं। वहां से विकास परियोजनाओं के रास्ते में बाधा डालने के लिए आंदोलनों की पटकथाएं भी लिखी जाती रही हैं। ऐसे में वहां मांद बनाकर रह रहे भेड़ियों को यह मंजूर नहीं कि उस स्थान पर आम आदमी का सहजता से आवागमन हो। मुम्बई मेट्रो परियोजना के विरोध के समय वह स्थान कंट्रोल रूम की तरह काम कर रहा था। खुफिया इनपुट में वहां की गतिविधियों की जानकारियां अब भी सरकार के पास उपलब्ध होंगे। लेकिन, अपने गुरु की अंत्येष्टि में जाने के लिए परेशान उन साधुओं को क्या मालूम था कि वे अनजाने में राक्षसों की मांद तक पहुंच गए हैं।
जूनागढ़ अखाड़े का नाम सुनते ही हिंसक हुई भीड़
प्रारंभिक जानकारी में ही यह पता चली कि कोरोना जांच से संबंधित कार्रवाई के लिए आने वाली किसी भी टीम को रोक देने के लिए लोगों का गिरोह वहां तैनात था। गाड़ी में तीन साधुओं को देखकर लोग उनसे मारपीट करने लगे। कुछ लोग उन्हें छोड़ देने के पक्षधर थे। तभी एक नेता टाइप आदमी आता है और उन्हें लेकर पास के एक मकान में चला जाता है। जूनागढ़ अखाड़े का नाम सुनते ही उसने उन दोनों को पीटने का फरमान जारी कर दिया। तब तक किसी ने पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी। पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और उन्हें घर से बाहर निकाल कर वहां से भेज देने का प्रयास शुरू कर दिया।
अब नाबालिग बता हत्यारों को बचाने की कोशिश
तब तक कुछ लोगों ने उनकी गाड़ी को पलट दिया। एक व्यक्ति के इशारे पर लोगों ने उन्हें लाठी-राॅड से फिर पीटना शुरू कर दिया और तब तक मारते रहे जब तक कि वे मर नहीं गए। पुलिस मूकदर्शक बनी रही। जान बचाने के लिए साधू पुलिस वालों को पकड़ते रहे लेकिन उन्हें मार डाला गया। अब वहां कथित मानवाधिकार गिरोह सक्रिय हो गया है। अपराधियों को नाबालिग बताकर उन्हें सजा से बचा लेने के प्रयास शुरू हो गए हैं।
वैसे तो पालघर एसपी का दावा है कि रात के 12 बजे तक ही सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया था तो 17 की दोपहर बाद पुलिस बल वहां किनको खोजने गयी थी। पुलिस स्टेशन के निरीक्षक का कहना है कि गुरुवार की रात करीब 10 बजे यह वीभत्स घटना घटी। घटना के दो घंटे बाद एसपी को सूचना मिल सकी थी। घटना के बाद कई घंटों तक पुलिस कहती रही कि मारे गए लोगों की पहचान अब तक नहीं की जा सकी है। जबकि पुलिस के सामने जब उनपर हमला हो रहा था, तब वे अपना परिचय महंत के रूप में बता रहे थे।