पटना : जब से गृहमंत्री अमित शाह ने समूचे भारत में NRC लागू करने का ऐलान किया, ममता दीदी, ओवैसी और बिहार के प्रशांत किशोर के पेट में दर्द उठना शुरू हो गया। ममता और ओवैसी जैसे क्षेत्रिय दलों के कर्ता—धर्ताओं की मजबूरी तो समझी जा सकती है। लेकिन लगभग सभी दलों में अपनी कमाई ढूंढ़ते रहने वाले प्रशांत किशोर की NRC पर त्वरित प्रतिक्रिया अचरज भरी है। क्योंकि क्या ‘अवैध को अवैध मानना और वैध को वैध मानना, चुनावी नफे—नुकसान की कसौटी पर तय होगा? आइए जानते हैं पीके के लिए NRC का क्या है मतलब।
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NRC से चुनावी स्ट्रैटेजी की दुकान बंद होने का खतरा
प्रशांत किशोर ने एनआरसी को लेकर ट्वीट किया कि ’15 से अधिक राज्यों में गैर-बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं, ये ऐसे राज्य हैं जहां देश की 55 फ़ीसदी से अधिक जनसंख्या है। ऐसे में इन राज्यों से क्या NRC पर सलाह लिया गया है।
स्पष्ट है कि प्रशांत किशोर के लिए NRC एक चुनावी मुद्दा भर है। वे इसे अपनी चुनावी स्ट्रैटजी की दुकान के लिए भी काफी मुफीद मान रहे हैं। इसके अलावा उन्हें जदयू जैसे क्षेत्रीय दल का भी साथ प्राप्त है जो उनमें भी अपने पॉलिटिकल विस्तार की संभावना देख रहा है। लेकिन यहां बात एनडीए जैसे गठबंधन और देशहित की है।
गिरिराज और अजय आलोक ने बताई दवा
यही कारण है कि जैसे ही उन्होंने अपनी मंशा ट्वीट के जरिये व्यक्त की, जदयू के ही नेता अजय आलोक ने ऐतराज किया कि ‘1951 में पहली बार कांग्रेस पार्टी ही असम में NRC ले के आयी थी। मगर आज तक यह लागू नहीं किया। अब सुप्रीम कोर्ट के कारण आज यह अस्तित्व में आ रहा है। ऐसे में कांग्रेस यह साफ़ करे की वह NRC का समर्थन करती हैं या विरोध? ग़ैर भाजपा 15 CM में सबसे ज़्यादा तो कांग्रेस के ही हैं? लेकिन NRC पर दलालों की बोली ही कुछ ज़्यादा सामने आ रही है! स्पष्ट है कि अजय आलोक ने दलाल के तौर पर प्रशांत किशोर पर ही निशाना साधा है।
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इसी मुद्दे पर भाजपा के फायर ब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने PK पर पलटवार करते हुए कहा कि जो ‘अवैध’ है उससे किसी को प्रेम क्यों? गिरिराज सिंह ने PK के ट्वीट पर कहा कि ‘सहमति और आम सहमति का क्या सवाल है। NRC से उन्हें निकाला जाएगा जो अवैध हैं। अवैध से किसी को प्रेम क्यों? चाहे सहमति हो या असहमति, अवैध तो अवैध है। उसे देश में रहने का अधिकार नहीं है। भारत कोई धर्मशाला नहीं है।’
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सत्ता लोलुपता में देश बर्बाद करने की साजिश
दरअसल, देश की जनता को भ्रम में डालकर, उसे बेवकूफ बनाते हुए जिन मुद्दों को आजादी के बाद से अब तक जिंदा रखा गया, मोदी 2.0 सरकार ने उन तमाम मसलों पर ताला लगाने की मुहिम ठान रखी है। पहले तीन तलाक, फिर कश्मीर से आर्टिकल 370, राममंदिर विवाद और अब NRC। ये सभी वही मुद्दे रहे हैं, जिन्हें भारत में सत्ता की चाबी बना लंबे काल तक राजनीतिक पार्टियों ने अपनी रोटी सेंकी। इस क्रम में ये मुद्दे वह नासूर बन गए जो कैंसर की तरह देश को ही लीलने की धौंस देने लगे। ऐसे में जब गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में पूरे देश में NRC लागू करने का ऐलान किया तो सत्तालोलुप दलों और ठेकेदारों के पेट में मरोड़ उठनी स्वाभाविक है।
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