टिकैत-राजेवाल का एक भी किसान नेता नहीं बचा सका जमानत, चुनाव नतीजों ने बता दी औकात
नयी दिल्ली : पांच राज्यों के चुनाव परिणामों ने किसान आंदोलन में शामिल किसान नेताओं की न सिर्फ ‘बक्कल’ उखाड़ दी बल्कि उन्हें पूरी तरह देश के सामने नंगा कर दिया। नतीजों ने राकेश टिकैत, राजेवाल सरीखे किसान नेताओं की यह पोल खोल दी कि उन्हें किसानी से कम, नेतागीरी से ज्यादा मतलब था। जहां बड़बोले राकेश टिकैत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 70 फीसदी सीटों पर फतह हासिल कर आइना दिखा दिया वहीं पंजाब के चुनावी समर में उतरे किसान मोर्चे के एक भी प्रत्याशी की जमानत भी नहीं बची। 94 में से 93 कैंडिडेट 15 सौ से भी कम हासिल कर सके।
टिकैत को प. यूपी में भाजपा ने बताई औकात
दिल्ली की सीमाओं को एक वर्ष तक चौतरफा लॉक रखने वाले किसान आंदोलन के नेताओं के साथ देश का किसान नहीं था। वे सिर्फ मीडिया की सुर्खियां बटोर अपनी राजनीति चमकाना चाहते थे। यहां तक कि उन्होंने अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए राष्ट्रीय गौरव लालकिले को भी कलंकित करने से गुरेज नहीं किया। हमारे बहादुर पुलिसकर्मियों और जवानों के साथ उन्होंने जो किया उसे जनता नहीं भूली। नतीजा राकेश टिकैत के गृहक्षेत्र वाले पश्चिमी उत्तरप्रदेश में उनके मौन समर्थन वाली सपा—जयंत की जोड़ी को भाजपा के आगे मुंह की खानी पड़ी।
पंजाब में ‘आप’ ने किसान नेताओं पर फेरा झाड़ू
पंजाब की बात करें तो यहां तो किसान मोर्चा के कई नेताओं ने किसान आन्दोलन को ढाल बनाकर चुनाव लड़ा। लेकिन आप के झाड़ू ने उन्हें उनकी सही औकात बता दी। अगर नतीजों पर गौर करें तो किसान आन्दोलन का शायद ही चुनावों पर कोई असर दिखा। सफल किसान आन्दोलन की लहर पर सवार होकर मैदान में उतरे 94 किसान नेताओं में से 93 की जमानत जब्त हो गई।
राजेवाल समेत किसान मोर्चा के तमाम दिग्गज ढेर
हैरानी की बात यह कि संयुक्त समाज मोर्चा प्रमुख बलबीर सिंह राजेवाल (79) जो किसान आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे एसकेएम के समन्वयक थे, वे भी अपनी जमानत राशि नहीं बचा सके। वे पंजाब की समरला सीट से चुनाव में बुरी तरह खारिज हुए। राजेवाल को केवल 4,676 वोट मिले। यानी कुल वोटों का मात्र 3.5% वोट। लाल किला हिंसा के एक आरोपी लखबीर सिंह लाखा एकमात्र ऐसे किसान नेता रहे जिनकी जमानत बची। जबकि एसकेएम के कानूनी प्रकोष्ठ के संयोजक और अखिल भारतीय किसान सभा महासंघ के अध्यक्ष प्रेम सिंह भंगू पटियाला की घनौर सीट से नपे। इसी तरह टिकरी बॉर्डर पर किसानों को डॉक्टरी सहायता प्रदान करने वाले सुखमनदीप सिंह ढिल्लों, गुरप्रीत सिंह कोटली, नवदीप संघा, अनुरूप संधू आदि का भी यही हाल हुआ।