पटना : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार विधानसभा को अपने तरीके से चलना चाह रहे हैं। लेकिन, शायद वह यह भूल गए कि अब बिहार विधानसभा का परिदृश्य बदल चुका है। नए परिदृश्य में उनकी पार्टी राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बन कर रह गयी है। ओवैसी की पार्टी में टूट के बाद वर्तमान में बिहार की सबसे बड़ी पार्टी राजद है। उसके बाद भाजपा और फिर तब जाकर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का नाम आता है। नीतीश कुमार अपनी छवि को लेकर काफी सजग रहते हैं। इसलिए वे वह अपने आस-पास किसी को भी खड़ा नहीं देखना चाहते और अपने कद में कोई कमी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे।
विधायिका को लेकर प्रचलित लोक मान्यता को बदलने के प्रयास में लगे सिन्हा
इधर, बदले परिदृश्य में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू संख्या बल के हिसाब से भाजपा की आधी हो कर रह गयी है। ऐसे में बिहार विधानसभा अध्य्क्ष का पद भाजपा के पास चला गया है। वर्तमान में बिहार विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर भाजपा के विजय कुमार सिन्हा आसीन हैं। सिन्हा अपनी तरफ से विधायिका को लेकर प्रचलित लोक मान्यता को बदलने के प्रयास में लगे हुए हैं। वे राज्य के अंदर विधायिका को लेकर नया नरेटिव गढ़ रहे हैं। जिसमें विधायिका का चेहरा समाजसुधारक, समाजसेवक, संवेदनशील संस्थान के रूप में बने। सिन्हा के इस अभियान की चर्चा पूरे देश में हो रही है। इसको लेकर देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष ने सराहना की है और उनका मनोबल बढ़ाया है।
विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा ने अपने इसी अभियान को ध्यान में रखते हुए मंगलवार को विधानसभा मानसून सत्र में उत्कृष्ट विधायक चयन को लेकर लाये गए प्रस्ताव पर विर्मश करने की अनुमति दी। लेकिन इस विमर्श में भाजपा के सहयोगी जदयू कोटे का एक भी विधायक सदन में नजर नहीं आया। इसके विपरीत जो वहां था भी वह भी उत्कृष्ट विधायक चयन प्रस्ताव आने के साथ ही सदन छोड़ कर चला गया।
सिन्हा के प्रयास से नीतीश असहज
इस पूरे मामले पर बिहार की सियासत को बारीकी से देखने वाले जानकारों की मानें तो मुख्यमंत्री नीतीश विजय कुमार सिन्हा के द्वारा किए जा रहे प्रयासों से काफी असहजता महसूस कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनके समानांतर कोई बड़ा व्यक्तित्व न खड़ा हो जाए। इस कारण वह विजय कुमार सिन्हा को अलग-अलग तरिके से सन्देश देते रहते हैं। इधर सिन्हा भी अब शायरी का सहारा लेकर जदयू पर हमला करने लगे हैं।
पुराने जख्म अभी भरे नहीं, दिए नए जख्म
इसके आलावा कुछ का यह भी मानना है कि पिछले विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विधानसभा अध्यक्ष के बीच सदन में जो बातें हुई थीं, उसके जख्म अभी भी हरे हैं। यहीं वजह है कि जो बातें नीतीश को पसंद नहीं उस पर वो चुप्पी साध कर विरोध जाता देते हैं। या फिर खुद और अपने विधायकों को सदन में जाने से मना करा देते हैं। इसका उदाहरण बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा द्वारा विधानसभा परिसर में आयोजित योग दिवस के कार्यक्रम में भी मिला। वहां आमंत्रण के बाद भी नीतीश कुमार समेत जनता दल यूनाइटेड का कोई मंत्री या विधायक नहीं पहुंचा था। इसके साथ अग्निपथ पर इतना विरोध बिहार में होने के बाद भी नीतीश की चुप्पी भी इसका एक उदाहरण है।
बहरहाल,देखना यह है कि नीतीश और वतर्मान विधानसभा अध्य्क्ष के बीच अघोषित तरीके से चल रहे विवाद पर पूर्णविराम कब तक लगता है और इसपर पूर्णविराम लगाने के लिए नीतीश को और क्या-क्या तिकड़म अपनाने पड़ते हैं।