20 में हुई दुर्गति का जिम्मेदार RCP को बताकर नीतीश का 24 पर निशाना, रामचंद्र को हाशिए पर लाने की कई वजहें
2020 विधानसभा चुनाव और जुलाई 2021 तक मोदी कैबिनेट में शामिल होने से पूर्व जदयू में नीतीश कुमार के बाद अगर किसी की सुनी और समझी जाती थी, तो वे आरसीपी सिंह थे। लेकिन, मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने और राष्ट्रवाद तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ झुकाव के बाद आरसीपी सिंह का कद आज के समय में ऐसा है कि एक मामूली सा प्रवक्ता राजनीति कैसे की जाती है और राजनीति में उनका वजूद किया था, इसे लेकर व्यंग्य कर रहे हैं।
आरसीपी ने जदयू को 71 से 43 पर लाए
बीते दिन जदयू के वरिष्ठ नेता विजेंद्र यादव ने आरसीपी सिंह को लेकर कहा कि अब वे जदयू में हैं और जदयू में उनकी क्या जिम्मेदारी होगी यह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह तय करेंगे। इसके बाद चर्चाओं के मुताबिक पार्टी के एक प्रवक्ता ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के इशारों पर बयान देते हुए कहा कि आरसीपी सिंह का नीतीश कुमार के बगैर कोई वजूद नहीं है, वे जो कुछ भी बने वह नीतीश के रहमों करम पर बने हैं, पार्टी की मजबूती की बात करना उनके मुख से बेईमानी है, आरसीपी सिंह ने ही पार्टी को 71 से 43 सीट पर ले आए।
पार्टी नेताओं की नजर में RCP नकारे
वहीं, शुक्रवार को नीतीश के भरोसेमंद बिहार कैबिनेट में शामिल अशोक चौधरी ने कहा कि आरसीपी सिंह का कोई बेस नहीं है, वे 5 से 10 हजार लोग भी नहीं जुटा सकते हैं। नीतीश कुमार के कारण राज्यसभा का सदस्य रहे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कृपा से केंद्र में मंत्री बने। दरअसल, यह सारे बयान आरसीपी सिंह के उस बयान पर आया है, जिसमें उन्होंने कहा कि हम सीधा आदमी हैं सीधा चलते हैं। किसी के रहमों करम पर हमने कुछ नहीं हासिल किया, हमने जिंदगी में जो कुछ भी हासिल किया वह अपनी मेहनत के बदौलत हासिल किया।
2020 चुनाव में हुई दुर्गति के जिम्मेदार RCP
बहरहाल, इन तमाम बयानों पर गौर करें, तो निष्कर्ष यह निकलता है कि आखिर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के इशारे पर प्रवक्ता अरविंद निषाद और अशोक चौधरी ने यह बयान दिया कि आरसीपी का कोई वजूद नहीं है और उनके कारण 2020 के चुनाव में पार्टी की दुर्गति हुई थी।
काबिलियत नहीं थी तो क्यों बनाये गए राष्ट्रीय अध्यक्ष
वहीं, जब इन सवालिया बयानों का जवाब तलाशते हैं, तो यह बातें सामने आती है कि जब आरसीपी सिंह में कोई काबिलियत नहीं थी, तो संगठन महासचिव से उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष क्यों बनाया गया? और इस बात से सभी जदयू कार्यकर्ता भी सहमत हैं कि आरसीपी सिंह ने जदयू के संगठन को बूथ स्तर तक पहुंचाया। भले सही सामंजस्य नहीं बैठा पाने के कारण उचित परिणाम नहीं मिल सका, लेकिन संगठन के विस्तार को लेकर आरसीपी सिंह ने कड़ी मेहनत की।
बीच चुनाव में साइड करना पड़ा सीएम नीतीश का चेहरा
इसके अलावा अगर 2020 के चुनाव परिणाम की बात करें, तो भारतीय जनता पार्टी को इस बात का एहसास बहुत पहले हो गया था कि इस बार चुनाव बहुत मुश्किल होने वाला है। क्योंकि, हम लोग नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ रहे हैं और प्रदेश में नीतीश कुमार के प्रति भारी एन्टी इनकंबेंसी है। अगर चुनाव जीतना है, तो नीतीश कुमार के चेहरे को साइड रखना पड़ेगा और नरेंद्र मोदी तथा भाजपा के नेताओं के चेहरे को आगे लाना होगा। दो चरण चुनाव बीत जाने के बाद जब इंटरनल रिपोर्ट दोनों दलों के प्रमुख नेताओं को पता चला, तो आनन-फानन में भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश कुमार को अधिकांश पोस्टरों और बैनरों से गायब कर नरेंद्र मोदी के चेहरे को प्रमुखता से जगह दी, इसके बाद धीरे-धीरे परिणाम एनडीए के पक्ष में आया। इसी आधार पर 2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम के लिए आरसीपी को जिम्मेदार बताकर नीतीश कुमार अपने ऊपर लगे एन्टी इनकंबेंसी के धब्बे को धोना चाह रहे हैं। इसलिए जदयू के अलग-अलग नेता तरह-तरह के बयान दे रहे हैं।
एन्टी इनकंबेंसी नहीं तो फिर चिराग को क्यों मिले थे 23 लाख से अधिक मत
वहीं, इससे अलग नीतीश कुमार के प्रति एन्टी इनकंबेंसी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एनडीए में बात नहीं बनने के कारण जब चिराग पासवान चुनाव में अकेले उतरे, तो उनके दल को 23 लाख से अधिक वोट मिले। अगर यही वोट का हस्तांतरण राजद के तरफ हो जाता, तो एनडीए की सरकार जानी तय थी। लेकिन, बागी उम्मीदवारों के चिराग की पार्टी लोजपा से चुनाव लड़ने के बाद काफी हद तक नुकसान जदयू को हुआ और इसका सीधा फायदा महागठबंधन को नहीं होकर राजद को हुआ। लेकिन, एनडीए की सरकार बच गई। राजद को फायदा होने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि सीट शेयरिंग को लेकर भारतीय जनता पार्टी के अधिकृत नेताओं ने नीतीश कुमार से सही से सौदा नहीं कर सके, जिस कारण भारतीय जनता पार्टी को अपनी पुश्तैनी सीटें भी जदयू को गिफ्ट कर गंवानी पड़ी।
20 के बहाने 24 पर निशाना
वहीं, इससे अलग एक और थ्योरी है कि 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू के सर्वेसर्वा के रूप में आरसीपी सिंह को प्रोजेक्ट कर नीतीश कुमार 2024 लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी से एक बार फिर मजबूत समझौता करना चाह रहे हैं। अगर, भारतीय जनता पार्टी 2020 विधानसभा चुनाव के परिणाम का हवाला देती है, तो नीतीश कुमार और ललन सिंह भारतीय जनता पार्टी के सामने यह पक्ष रखेंगे कि उस समय का नेतृत्व आरसीपी सिंह के पास था। उन्हीं के कारण पार्टी की दुर्गति हुई थी। लेकिन, अब नेतृत्व बदल चुका है और स्थितियां भी बदल चुकी है, इसलिए समझौता अभी के अनुसार होगा।
पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष को न घर का न घाट का छोड़ रहे नीतीश
बहरहाल, जदयू के तमाम नेताओं के बयान को देखें, तो यह प्रतीत होता है कि आरसीपी सिंह को राजनीतिक हाशिए पर सिर्फ इसलिए लाया जा रहा है। क्योंकि, उन्होंने विचार परिवार और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रवाद को अपनाया। साथ ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम और भारतीय जनता पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल हुआ करते थे, जिस वजह से उनकी नजदीकियां भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से बढ़ गई थी। इस वजह से आरसीपी के रहते नीतीश और ललन भाजपा से 2024 में 2019 आम चुनाव और 2020 विधानसभा चुनाव की तरह सीटों का समझौता नहीं कर पाते। इन तमाम तरह की राजनीतिक घटनाक्रम नीतीश कुमार को नागवार गुजरी और उन्होंने वही किया, जो वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ करते आ रहे हैं।