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लालसाओं की जंग में फंस गई नीतीश-PK की सिक्रेट डील, जानें अंदर की बात

पटना : चुनावी रणनीतिकार के तौर पर नीतीश कुमार के साथ शुरू हुई प्रशांत किशोर की ‘दोस्ती’ अब दोनों के बीच ‘कुश्ती’ के उस मुकाम में तब्दील हो चली है जहां ये दोनों दोस्त एक दूसरे की नाजुक नस पर भी हाथ डालने से परहेज नहीं कर रहे। भाजपा से कुट्टी करने के बाद सियासत के इन दोनों ‘चाणक्यों’ ने पहले तो आपस में करीबी बनाई पर अब दोनों एकदूसरे की अंदर वाली बातों को भी उजागर करने पर तूल गए हैं। प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार दोनों एक साथ बंगले में रह चुके हैं। पिता-पुत्र जैसे संबंध की बात कहते रहे हैं। इसलिए जाहिर है काफी अंदर की बातें जानते हैं। अब वे बंद कमरे की आपस की बातों को सार्वजनिक कर रहे, राज़ खोल रहे। लेकिन ऐसा क्यों? क्या पीके बीजेपी के एजेंट हैं या वे खुद नीतीश की जगह बिहार की सत्ता में बैठना चाह रहे।

प्रशांत के हमलों से घबराये हुए हैं नीतीश

अगर प्रशांत किशोर के हालिया बयानों और उनके एक्शन को देखें तो पाते हैं कि वे जहां नीतीश कुमार की एक—एक कर काफी निजी बातें उजागर कर रहे हैं। अभी दो दिन पहले ही उन्होंने यह खुलासा कर सनसनी मचा दी कि नीतीश कुमार सक्रिय रूप से भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय गठबंधन बनाने की जो बात कर रहे हैं, वह उनकी चतुराई वाली एक चाल है। लोगों को ये जानकर आश्चर्य होगा कि नीतीश ने भाजपा के साथ एक लाइन अभी भी खुली रखी है। वो अपनी पार्टी के सांसद और राज्यसभा उपाध्यक्ष हरिवंश के माध्यम से भाजपा के संपर्क में हैं। हरिवंश को इसी वजह से अपने राज्यसभा पद से इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा गया है। भले ही JDU ने भाजपा से नाता तोड़ लिया हो। लोगों को ये ध्यान में रखना चाहिए कि जब भी ऐसी परिस्थितियां आती हैं, तो वो भाजपा में वापस जा सकते हैं और भाजपा के साथ काम कर सकते हैं।

भाजपा कनेक्शन या बिहार की कमान

प्रशांत किशोर के इस खुलासे पर नीतीश कुमार ने तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन जदयू ने इसे खारिज जरूर किया। मगर जैसा नीतीश कुमार का इतिहास रहा है, उसमें प्रशांत किशोर पूरी तरह गलत नहीं कहे जा सकते। कुछ सियासी पंडित प्रशांत किशोर के हालिया एक्शन को आधार बनाकर उनकी मौजूदा हरकतों को बिहार की सत्ता पर बैठने की पीके की लालसा से जोड़ते हैं। इनके अनुसार अभी प्रशांत किशोर बिहार में जनसुराज यात्रा कर रहे हैं जिसका मकसद अपना बेस तैयार करना है। इस बेस का उपयोग वे आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के लिए करने की मंशा रखते हैं। कहा जाता है कि जदयू में रहते हुए पीके चाह रहे थे कि उन्हें बिहार की ​कमान थमा दी जाए और नीतीश केंद्र की राजनीति में शिफ्ट हो जाएं। लेकिन नीतीश इसके लिए तैयार नहीं थे। बस यहीं से नीतीश और पीके की दोस्ती में अविश्वास की पहली लकीर बनी और पीके जदयू से बाहर हो गए।

नीतीश और प्रशांत किशोर की लालसा

यहां गौर करने वाली बात यह कि सियासत के इन दोनों ही दोस्तों की अपनी—अपनी लालसाएं हैं। जहां नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री बनने की अपनी लालसा काफी पहले पीके के सामने प्रकट कर दी थी, वहीं प्रशांत किशोर बिहार का सीएम बनने की अपनी लालसा को काफी देर तक छुपाए रहे। लेकिन जब जदयू में रहते हुए ही उन्होंने बड़ी होशियारी से नीतीश के समक्ष इसे जाहिर किया तो नीतीश कुमार का माथा ठनक गया। यही कारण रहा कि उनके संबंध काफी पहले 2017 में ही खराब हो गए । मगर इधर बीच के कुछ दिनों में बर्फ पिघलनी शुरू हुई थी। पवन वर्मा के जरिए नीतीश कुमार ने पानी बहाने की कोशिश की थी। 13 सितंबर को पटना में नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर प्रशांत मिलने पहुंचे थे। दोनों के बीच करीब ढाई घंटे तक चली मीटिंग का एजेंडा काफी दिनों तक सीक्रेट रहा। नीतीश कुमार ने मीडिया से कहा कि प्रशांत किशोर मिलने आए थे। मगर क्या बात हुई इस बारे में नीतीश ने नहीं बताया। इस मुलाकात के बाद PK ने दिनकर की कविता ट्वीट की। उन्होंने लिखा कि ‘तेरी सहायता से जय तो मैं अनायास पा जाऊंगा। आनेवाली मानवता को, लेकिन, क्या मुख दिखलाऊंगा?’ माना गया कि प्रशांत और नीतीश में तब डील नहीं हो सकी।

राजद संग नीतीश को सूझ नहीं रहा उपाय

इसी के बाद 2 अक्टूबर से प्रशांत किशोर ने अपनी जनसुराज यात्रा की तैयारी शुरू कर दी। अब इन दोनों दोस्तों की दोस्ती का आलम यह है कि वे एक दूसरे की पोल लगातार खोल रहे हैं। नीतीश कुमार ने भी बंद कमरे की डील को सार्वजनिक करते हुए पीके की पोल—पट्टी खोली। नीतीश ने कहा कि प्रशांत मेरे साथ रहते थे। वे मेरे साथ खाते पीते थे, मेरे घर में रहते थे। लेकिन अब वह बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं। अब उनसे मेरा कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने तो मुझसे आकर JDU को कांग्रेस में मर्ज करने के लिए कह दिया था। वो बिल्कुल पॉलिटिकल व्यक्ति नहीं हैं। लेकिन नीतीश कुमार के साथ दिक्कत यह है कि उनकी पार्टी जेडीयू का संगठन ग्राउंड पर उतना मजबूत नहीं है। ऐसे में देखना है कि क्या दोनों दोस्त एक—दूसरे के सर्वाइवल के लिए फिर एकसाथ आते हैं या फिर अलग—अलग भाजपा की गाड़ी में सवार होते हैं।