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नीतीश क्यों नहीं चाहते मंत्रिमंडल में शामिल हो JDU?

पटना : दरअसल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहते ही नहीं कि उनकी पार्टी का कोई सांसद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो। मंत्रिमंडल गठन के दौरान भाजपा ने जद-यू को दो मंत्री पद देने की पेशकश की थी। उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सत्ता में उन्हें आंशिक भगीदारी नहीं चाहिए। दूसरी ओर , राजीव रंजन सिंह उर्फ लल्लन सिंह तथा राम चन्द्र प्रसाद की इच्छा थी कि वे मंत्रिमंडल में शामिल होकर नये अवतार में आएं। हालांकि दोनों ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को सार्वजनिक नहीं किया था।

जद-यू के प्रवक्ता केसी त्यागी और नीतीश के खास सिपाहसलार ने दिल्ली में घोषणा कर दी कि जद-यू को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने में कोई गुरेज नहीं है। अभी यह खबर बिहार में तैरना शुरू ही किया था कि मुख्यमंत्री ने उड़ती खबर को यह कह कर रोक दिया कि उनकी पार्टी का कोई भी सदस्य मंत्री नहीं बनेगा।

शुरू के दिनों में जब मंत्रिमंडल में शामिल होने की बात भाजपा ने कही थी उसी समय आंशिक भागीदारी का हवाला देते हुए जब नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में शामिल हासेने से इंकार किया तो पार्टी के भी तर ही आवाज आने लगी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही नहीं चाहते कि कोई सदस्य मंत्रिमंडल में शामिल हो।

थोड़ा पीछे दिनों की पृष्ठभूमि में झांक कर देखें तो भाजपा ने 17 सीटों को देकर दरियादिली दिखायी थी। हालात ये हो गये थे कि जद-यू को को उपयुक्त कैंडिडेट ही नहीं मिल रहा था। नतीजा, गैर राजनीतिक लोगों को पार्टी ने टिकट देना शुरू कर दिया था। सीतामढ़ी के एक रोअरिंग प्रैक्टिस करने वाले डाॅक्टर को टिकट दे दिया गया था। पार्टी के भीतर तो विरोध हुआ ही, आरएसएस ने भी ताज्जुब ब्यक्त करते हुए नागपुर तक संदेश दिया कि डाॅक्टर साहेब एक दिन भी पाॅलिटिकल मंच पर नहीं आए हैं। आनन-फानन में भाजपा के खानदानी नेता सुनील कुमार पिन्अू को टिकट दिया गया। जीत तो तय थी। कारण- उनकी छवि एक साफ-सुथरी नेता की तो थी ही जनता होल्ड भी था। सो, वे लड़े। पर, जद-यू के टिकट से। जीत भी गये। हालांकि पार्टी के भीतर लोकतंत्र अथवा किसी भी बात को लेकर बखेड़ा करने अथवा जेंटलमैन तरीके से भी नीतीश कुमार के खिलाफ टेबल पर कोई बात रखने का साहस किसी भी नेता को नहीं है। लेकिन, दबी जुबान एक चर्चा जरूर होने लगी है कि मुख्यमंत्री ही नहीं चाहते कि उनकी पार्टी का कोई सांसद मंत्री बने।

इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि अगर आरसीपी को कोई अच्छा मंत्रालय मिला तो लल्लन सिंह नाराज होंगे और अगर लल्लन सिंह को कोई अच्छा पोर्टफोलियो मिला तो आरसीपी नाराज होंगे। हालांकि उन दोनों की नाराजगगी को देखते हुए कोई तीसरे को मंत्रिमंडल में शामिल करवाया ही जा सकता है। पर….