नीतीश कुमार की अकर्मण्यता से प्रवासी बिहारी छात्रों का टूटता हौसला : राजद

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पटना : कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले को देखते हुए केंद्र सरकार ने देशभर में पहले 21 दिनों का 14 अप्रैल तक लॉक डाउन किया था। लेकिन, इस संकट से निपटने के लिए लॉक डाउन को बढाकर 3 मई तक के लिए कर दिया गया है। इस लॉक डाउन में राजस्थान की शिक्षा नगरी कोटा के साथ-साथ देश के अन्य हिस्सों में हजारों छात्र फंस गए हैं।

इन छात्रों के प्रति हमदर्दी दिखाते हुए राजद ने कहा कि नीतीश कुमार आपने तो बिहार के अप्रवासी कुशल, अकुशल और अर्धकुशल श्रमिकों को भगवान भरोसे तो छोड़ ही रखा है। उनके साथ बिहार के भविष्य और नौनिहाल छात्रों को भी चिंता छोड़ चुके है। इन दोनों सवाल पर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने समय-समय पर राज्य हित मे बिहार सरकार को सचेत करने का लगातार प्रयास किया है। फिर भी सरकार के कान पर जूं नहीं रेंग रहा है। कभी-कभी तो ईर्ष्या बस सरकारी दल के प्रवक्ता राज्य हित मे दिए गए सही सलाहों को खारिज करने का काम करते है।

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बिहार के बाहर बिहारी छात्रों का डंका बजता रहा है। ये प्रतिभाशाली छात्र देश के सभी उच्च संस्थानों में भरे पड़े है। इनकी अनुमानित संख्या तकरीबन 5 लाख से ज्यादा ही है। जो केंद्रीय विश्वविद्यालयों, इंजिनीरिंग कॉलेजों, प्रबंधन संस्थानों, मेडिकल कॉलेजों और ऐसे दर्जनों तरह की उच्च स्तरीय संस्थाओं में पढ़ते है। इतना ही नहीं कोटा और दिल्ली जैसे जगहों पर IIT, NEET और सिविल सेवा की तैयारी हेतु निजी कोचिंग संस्थाओं में अध्ययनरत है।

जिसमें लगभग 80% छात्र कम आयवर्ग के परिवार से आते है। ऐसे छात्र सस्ते लॉज में शेयरिंग बेसिस पर गुजारा करते है। जबसे कोरोना वायरस का संकट देश मे आया है तबसे सभी तरह के संस्थानों में छूटी कर दी गई है। आगे भी भारत सरकार के द्वारा सीमित मात्रा में औद्योगिक और प्रशासनिक गतिविधि की जो घोषणा की गई है उसमें शिक्षण संस्थाओं को अलग कर रखा गया है। उनको अभी निकट भविष्य में चालू होने की संभावना नगण्य के बराबर है।

आप इनके अभावग्रस्त हालत का अनुमान इस बात से लगा सकते है कि इनके किचेन फैसिलिटी भी रसोइयों के अभाव में बंद पड़ते जा रहे है। इतना ही नहीं जिन कमरों में छात्र रहते है उनकी लंबाई और चौड़ाई इतनी कम होती है कि सोशल डिस्टेण्टिंग का पालन करना नामुकिन होता है। यहां तक कि इनके टॉयलेट कॉमन होते है जिसका उपयोग दर्जनों छात्र सामूहिक रूप से करते है।

जहाँ पर स्वच्छता की कल्पना करना बेमानी है। ऐसे परिस्थिति में दूसरे अन्य प्रदेश सरकारें अपने छात्रों को वापस लाने के लिए सरकारी इंतेजाम से बस भेज रहे है। क्योंकि ट्रेन सेवा को बहाल करने की मंशा भारत सरकार अभी नहीं रख रही है। वैसे बच्चों को बाहर निकालने का एक ही उपाय है कि राज्य सरकार विशेष बसों का संचालन कर अपने राज्य वापस बच्चों को लाये वहीं पर ठीक उसके उलट बिहार की सरकार इन समस्याओं से बेखबर कान में तेल डाल कर सोई पड़ी है।

अभी तक ऐसे छात्र इस आशा में अपने तकलीफ़ों को टालने के प्रयास कर रहे थे कि शायद 14 अप्रैल तक लोकडॉउन शिथिल कर दिया जाएगा। और अपने घरों के तरफ सुरक्षित लौट जाएंगे। लेकिन 14 अप्रैल के बाद इनका धैर्य टूटता जा रहा है। इसमें कुछ ही छात्रों के पास विश्विद्यालयों और महाविद्यालयों में सुरक्षित होस्टल की व्यवस्था है।

कोटा और दिल्ली जैसे जगहों में जहाँ पर रोग की संख्या दिनप्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। जहाँ पर बिहारी अप्रवासी छात्रों का घनत्व ज्यादा है। वहाँ फंसे छात्रों के यहाँ माता-पिता बिहार में चिंताग्रस्त होते जा रहे है। ये ऐसे प्रतिभाशाली छात्र है जो बिहार की सम्पति भी है। जिनके हौसल से देशभर में बिहार का नाम रौशन होता है। अगर समय रहते हमलोग सचेत नहीं होंगे तो भारी विकट परेशानी में बिहार फंसने वाला है।

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