पटना : राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने सरकार द्वारा सेनारी नरसंहार में पटना उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दिये जाने के निर्णय का स्वागत किया है।
उन्होंने कहा कि पूर्व में भी पटना उच्च न्यायालय द्वारा कई यैसे नरसंहारों के अभियुक्तों को दोषमुक्त किया जा चुका है जिन्हें निचली अदालतों ने दोषी करार देते हुए सजा दी थी। फिर उन नरसंहारों पर सरकार की चुप्पी और सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती नहीं दिये जाने की वजह क्या है ? सरकार को यह स्पष्ट रूप से बताना चाहिए।
निचली अदालतों द्वारा मियाँपुर ,बारा, शंकर बिगहा, लक्षमणपुर बाथे में हुए नरसंहारों के सजायाफ्ता अभियुक्तों को पटना उच्च न्यायालय द्वारा दोषमुक्त कर रिहा कर दिया गया था। उस समय भी उच्च न्यायालय के फैसले के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दिये जाने की माँग की गई थी। पर सरकार अथवा सत्ता पक्ष की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी थी। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उक्त नरसंहारों के सजायाफ्ता अभियुक्तों को पटना उच्च न्यायालय द्वारा दोषमुक्त करार दिए जाने के बाद भाजपा और जदयू नेताओं की कोई प्रतिक्रिया भी नहीं आयी थी। क्या उनके विचार और नजरिया सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर तय होते हैं ?
झूठ बोलकर तथ्यों और इतिहास को नहीं बदल सकते
राजद प्रवक्ता ने कहा कि जदयू के नेता नेता झूठ बोलकर तथ्यों और इतिहास को नहीं बदल सकते । राजद गांधी, जे पी, लोहिया, अम्बेडकर और कर्पूरी जी जैसे महापुरुषों के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी है। हिंसा और नरसंहारों की राजनीति करने वाले आज सत्ता में बैठे हैं।
नरसंहार के दौर की शुरूआत 1976 में
राजद प्रवक्ता ने कहा कि बिहार में नरसंहार के दौर की शुरूआत 1976 में अकौडी ( भोजपुर ) और 1977 में बेलछी ( पटना) से शुरू हुआ था। फिर 1978 में दवांर बिहटा ( भोजपुर ) में 22 दलितों की हत्या कर दी गई। उसके बाद पिपरा(पटना) में एक बड़े नरसंहार को अंजाम दिया गया। इन नरसंहारों के पीछे वही लोग सक्रिय थे जो तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री पद से हटाना चाह रहे थे। और आज भी समाजिक न्याय की धारा के बिरोधी हैं।
नरसंहारों के दौर को राजद ने किया नियंत्रित
विरासत में मिली नरसंहारों के दौर को राजद शासनकाल में नियंत्रित किया गया। और बिहार में नरसंहारों का दौर रुक गया। राजद प्रवक्ता ने भाजपा और जदयू नेताओं से कहा कि राबडी जी के मुख्यमंत्रित्व के दूसरे पाँच वर्षों के शासनकाल में नरसंहार का एक भी उदाहरण बता दें । सच्चाई यह है कि राबडी जी ने नीतीश जी को नरसंहार मुक्त बिहार सौंपा था पर इनके मुख्यमंत्री बनने के कुछ महिने बाद हीं 10 अक्तूबर 2007 में खगड़िया जिला के अलौली में एक बड़ा नरसंहार हुआ जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी गई थी।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि अपनी कमजोरी और नाकामियों को छुपाने के लिए जदयू के नेता सोलह साल पूर्व की सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। यह तो राजद शासनकाल की हीं देन थी कि अबतक हुए सभी नरसंहारों के अभियुक्तों को निचली अदालतों से सजा दिया गया। पर एनडीए सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में सही ढंग से अपना पक्ष नहीं रखने के कारण सभी अभियुक्त दोषमुक्त हो गये। यदि पुलिस अनुसंधान कमजोर रहता तो वे निचली अदालत से हीं दोषमुक्त हो गये रहते।
नरसंहारों की राजनीति करने वाले सत्ता में
राजद प्रवक्ता ने कहा कि जो लोग नरसंहारों की राजनीति करते हैं वे आज सत्ता में बैठे हैं। और इसीलिए नरसंहारों की जाँच के लिए राजद सरकार द्वारा बनायी गयी “अमीर दास आयोग ” को एनडीए सरकार द्वारा भंग कर दिया गया।