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Tension में नीतीश, राज्यसभा न भेजा तो कहीं RCP न तोड़ दें जदयू!

पटना : जदयू सुप्रीमो और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भारी टेंशन में हैं। उन्हें यह डर है कि कहीं उनके ही पॉलिटिकल लेफ्टिनेंट रहे आरसीपी सिंह राज्यसभा का टिकट न दिये जाने पर उनकी पार्टी जदयू को ही न तोड़ दें। क्योंकि जदयू में करीब 6 सांसद और 15 विधायक ऐसे हैं जो आरसीपी सिंह के कट्टर समर्थक हैं। इसी हालात में राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन से ठीक पहले नीतीश ने अपने विधायकों को अगले 72 घंटे तक पटना में ही बने रहने का फरमान सुनाया है।

RCP का पत्ता काटने की मंशा, 6 और 15 पर नजर

जदयू सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार इसबार राज्यसभा चुनाव में आरसीपी सिंह को टिकट नहीं देना चाहते। वे उन्हें बीजेपी के ज्यादा करीब जाने का दंड देना चाहते हैं। आरसीपी सिंह का राज्यसभा का कार्यकाल 7 जुलाई को समाप्त हो रहा है। यदि नीतीश उन्हें राज्यसभा टिकट नहीं देंगे तो उनकी सदस्यता खत्म हो जाएगी और वे केंद्र में मंत्री नहीं रहेंगे। नीतीश कुमार भाजपा से उनकी डिलींग को नहीं पचा पा रहे। पहले तो उन्होंने उनपर भरोसा किया लेकिन जब वे लगातार भाजपा से गलबहियां मिलाने लगे तो नीतीश ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली। इसमें नीतीश को अपने एक अन्य सिपहसालार ललन सिंह का भी नैतिक साथ मिल रहा है।

रास टिकट नहीं देने की मंशा, चर्चिल वाली कारामात

उधर RCP भी राज्यसभा का मोह छोड़ने को तैयार नहीं। ऐसे में अगर उनका राज्यसभा का पत्ता कटता है तो वो पार्टी को तोड़ सकते हैं। आरसीपी से इतर नीतीश कुमार एक दूसरा ही खेल खेलना चाह रहे हैं। वे मशहूर ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल का देशी पॉलिकल अवतार की भूमिका एक बार फिर निभाने को कमर कस रहे हैं। जैसे अपने फायदे के लिए चर्चिल ने दो गेंद हवा में रखने और एक अपने हाथ में रखने का पॉलिटिकल करिश्मा किया था, शायद नीतीश कुमार भी कुर्सी के लिए कभी भाजपा और कभी राजद को हवा में उछालते रहने की रणनीति पर चल रहे हैं।

भाजपा की चुप्पी, नए गठबंधन की तलाश में नीतीश

इसबीच इस सारे मामले पर भाजपा न कुछ बोल रही है, न जदयू की उथल—पुथल का कोई नोटिस ले रही। भाजपा के केंद्र और राज्य स्तर के बड़े नेता नीतीश कुमार की राजद से बढ़ती नजदीकियों, जातीय जनगणना और आरसीपी एजेंडे पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। वे बस इतना कहकर पल्ला झाड़ ले रहे कि बिहार की एनडीए सरकार पूरी तरह सुरक्षित है। वहीं राजनीतिक विश्लेषक नीतीश की ताजा सियासी गणित को बिहार में जातिगत जनगणना की बिसात पर नए राजनीति गठबंधन की तलाश के रूप में भी देख रहे हैं।