नीतीश का खास बेसवोट नहीं, BJP और RJD के वोटों से JDU का नंबर बढ़ा बने रहे CM, लेकिन इस बार…?

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पटना: नीतीश कुमार पर गहरी नजर रखने वालों का कहना है कि वे अब एक बार फिर भाजपा से पलटी मारकर राजद संग सरकार बना सकते हैं। उनका एक तर्क यह भी है कि नीतीश का अपना कोई विशेष आधार जनमत नहीं हैं। वे सिर्फ कभी बीजेपी तो कभी राजद के वोटों को उनके साथ गठबंधन में होने के कारण प्राप्त कर अपनी पार्टी जदयू का नंबर बल बढ़ा लेते हैं और फिर इसी दम पर अपनी कलाकारी से भाजपा को राजद को नचाते हुए पिछले 17 साल से मुख्यमंत्री पद की मलाई चाभ रहे हैं।

पलटीमार चरित्र से बीजेपी और लालू वाकिफ

उनकी इसी पलटीमार तकनीक और चरित्र को देखकर मुंहफट राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने नीतीश को पलटू बाबू नाम दे डाला था। तबीयत से परेशान लालू की सियासी गैरमौजूदगी में उनके दोनों पुत्र-तेजस्वी और तेजप्रताप आज भी नीतीश को पलटू चाचा बुलाते रहते हैं। यही कारण है कि इसबार की पलटीबाजी नीतीश के लिए काफी टेढ़ी पड़ रही है। अंदरखाने के सूत्रों के अनुसार बात चल रही है और यह सीएम पद पर अटकी हुई है। नीतीश खुद मुख्यमंत्री पद पाना चाहते, जबकी तेजस्वी किसी भी सूरत में सीएम पद राजद के पास होने की ही बात कर रहे हैं।

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बीजेपी और आरजेडी सीएम पद देने को तैयार नहीं

नीतीश के सियासी सफर को गढ़ने वाले लालू ही थे। वे उन्हें जेपी आंदोलन के समय से काफी करीब से वॉच करते रहे। इसलिए लालू भी तेजस्वी से सावधानी से जदयू संग रिश्ता जोड़ने का आदेश देकर मुख्यमंत्री पद पर कोई समझौता नहीं करने की हिदायत दे चुके कें। ऐसे में नीतीश कुमार के लिए अपना बेस वोट बैंक साबित करना एक चुनौती बन गया है क्योंकि आरसीपी सिंह को वे पहले ही चलता कर खतरा मोल ले चुके हैं।

जदयू को अपना बेस वोटबैंक दिखाने की चुनौती

नीतीश कुमार पहली बार 2005 में के सहयोग से फुल टर्म सीएम बने और 2014 में वे पहली बार एनडीए से अलग हो आरजेडी के साथ मुख्यमंत्री बने रहे। लेकिन 2017 में ही उनकी राजद से नहीं निभी और वे फिर बीजेपी की एनडीए के साथ आकर अभी 2022 तकं भी सीएम बनकर सरकार चला रहे हैं। तकनीकी रूप से वे वर्ष 2000 में भी बीजेपी की मदद से सीएम बने पर उनकी सरकार महज 14 दिन में गिर गई थी।

कभी बीजेपी तो कभी राजद के वोटबैंक का इस्तेमाल

लेकिन आज की बात करें तो न भाजपा और न राजद अब गठबंधन की राजनीति में उनकीे सियासी कलाबाजी को कबूल करने वाली। दोनों दलों का यही मानना है कि अब वे अपने वोट बेस को किसी को भी चुराने नहीं देंगे। चाहे वह गठबंधन का सहयोगी हो क्यों न हो। यानी जिसका बेस वोट बैंक, जो रियल बड़ा भाई, अब मुख्यमंत्री भी वही।

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