नवादा में संगठित गिरोह कर रहा लाल खून का काला धंधा

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  • गरीबों को जाल में फंसा कर शरीर से चूस रहे खून

नवादा : जिले में खून के कारोबार का पर्दाफाश होने के बाद लोग सकते में हैं। प्रशासन की छानबीन में यह सामने आया है कि इस काले धंधे में बकायदा संगठित गिरोह काम कर रहा है। खून का सौदा करने वाले माफिया के निशाने पर गरीब और भोले-भाले लोग होते हैं। उन्हें चंद रुपयों का लालच देकर उनके शरीर का खून चूस लिया जाता है। फिर जिदगी-मौत से जूझ रहे जरुरतमंद मरीजों से जान बचाने के नाम पर सौदेबाजी कर मुंहमांगी कीमत वसूली जाती है। खून के इस काले कारोबार में शामिल माफिया का सांठगांठ अधिकारियों से रहता है। यही वजह है कि वे लोग सबकुछ देखते हुए भी आंखें बंद किये रहते हैं। एक दिन पूर्व शहर के पुरानी जेल रोड स्थित अपोलो सर्जिकल एवं यूरोलॉजी सेंटर में छापेमारी के दौरान जिन सात लोगों को मुक्त कराया गया, वे सभी मजदूर तबके के हैं। मजबूरी व बेबसी में खून बेचते हैं। मुक्त कराया गया कानपुर का दिनेश सिंह पंचर बनाने का काम करता है तो भोला साव रिक्शा चालक है। संजय सिंह बस में कंडक्टर है। वहीं शाहिद ई-रिक्शा चलाता है। नारदीगंज का ललन मजदूरी करता है।

लाल बिल्डिंग में भी जाकर बेच चुका है खून

ब्लड डोनर की जगह ब्लड सेलर बन चुके युवा बताते हैं कि शहर के कई स्थानों पर वैध-अवैध तरीके से संचालित क्लीनिक में यह धंधा चल रहा है। शहर के एक लाल बिल्डिंग में जाकर भी अपना खून बेच चुके हैं। वे बताते हैं कि लाल बिल्डिंग में एक ब्लड बैंक संचालित है। जहां गरीबों के मजबूरी का फायदा उठाकर उसके शरीर से खून निकालकर चंद रुपये उसे दे दिया जाता है। इसके अलावा पुरानी जेल रोड, अस्पताल रोड, पार नवादा में जाकर वे अपना-अपना खून बेच चुके हैं।

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लाइनर का काम है मजलूमों को खोजकर खून खरीदने वालों को सौंपना

संगठित गिरोह में कई लोग शामिल हैं। जिसके जिम्मे अलग-अलग काम है। कुछ लोग लाइनर की भूमिका में रहते हैं और पैसों के लिए मजबूर लोगों को खोजकर निकालते हैं। ऐसे जरूरतमंद अधिकांशत: विभिन्न अस्पतालों में ही मिल जाते हैं। चूंकि उन्हें अपने परिवार के लिए खून की जरूरत पड़ती है तो वे इधर-उधर भटकते हैं। लाइनर ऐसे लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं और तरह-तरह का लालच देते हैं। चंद रुपयों की खातिर वे आसानी से जाल में फंस जाते हैं। इसके अलावा नशेड़ी, जुआरी, आर्थिक रुप से कमजोर लोग भी लाइनर के निशाने पर रहते हैं। मुक्त कराए गए कमालपुर के शाहिद ने रूपेश का नाम लेते हुए बताया कि उसने ही उसे यहां तक लाया।

निजी नर्सिंग होम भी काली कमाई में शामिल

सूत्र बताते हैं कि काली कमाई के इस खेल में कई निजी नर्सिंग होम भी शामिल हैं। खासकर वैसे नर्सिंग होम जहां प्रसव कराया जाता है, वहां प्रसूता के शरीर में खून की कमी बता रुपये ऐंठे जाते हैं और खून माफिया से खरीद-फरोख्त करते हैं। निजी नर्सिंग होम के संचालक ऐसे तत्वों से संपर्क में रहते हैं और जब भी खून की आवश्यकता होती है तो मरीज के स्वजन को माफिया के पास भेज देते हैं। इसके एवज में निजी नर्सिंग होम संचालकों को भी कमीशन मिलता है।

ब्लड बैंक के लाइसेंस को दे रखा था आवेदन

मिल रही जानकारी के मुताबिक, पुरानी जेल रोड स्थित अपोलो सर्जिकल एवं यूरोलॉजी सेंटर में ब्लड बैंक संचालन के लिए स्वास्थ्य विभाग को बकायदा आवेदन दिया गया है। सूत्र बताते हैं कि अगर यह माजरा सामने नहीं आता तो चंद दिनों में उसे लाइसेंस निर्गत कर दिया जाता। इसके बाद तो लाल खून का काला कारोबार करने की खुली छूट ही मिल जाती। गौरतलब है कि इसी नर्सिग होम में डीडीसी वैभव चौधरी ने मंगलवार को छापेमारी कर एक कमरे में बंद खून देने पहुंचे सात लोगों को पकड़ा था।

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