नवरात्रि 4th Day : अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं मां कु्ष्मांडा, जानें पूजन विधि और मंत्र
आज नवरात्र का चौथा दिन है और इस दिन माता के चौथे रूप मां कुष्मांडा की पूजा का विधान है। अपनी मंद मुस्कुराहट और अपने उदर से ‘अंड’ अर्थात ‘ब्रह्मांड’ को उत्पन्न करने के कारंण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्मांड कूम्हडे को कहा जाता है। कूम्हडे की बलि इन्हें काफी प्रिय है और इस कारण भी इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। ज्योतिष में मां कुष्माण्डा का संबंध बुध ग्रह से है।
हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली देवी
ये नवदुर्गा का चौथा स्वरूप हैं। अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। ये अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं। मां की आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं। मान्यता है कि जब दुनिया नहीं थी, तब इन्होंने ही अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी और इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति भी कहा गया है। देवी की आठ भुजाएं हैं। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा व जप माला है। देवी का वाहन सिंह है। माता कूष्मांडा तेज की देवी हैं। इन्हीं के तेज और प्रभाव से दसों दिशाओं को प्रकाश मिलता है। शांत और संयम भाव से माता कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। इनकी उपासना से भक्तों को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं और लोग नीरोग होते हैं।
क्या है माता का पूजा विधान
सर्वप्रथम भक्त नहा धोकर आज सुबह चौकी पर माता कूष्मांडा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। फिर गंगा जल या गोमूत्र से इसका शुद्धिकरण करें। चौकी पर कलश स्थापना करें। वहीं पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका की स्थापना करें। इसके बाद व्रत और पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां कूष्मांडा सहित समस्त स्थापित देवताओं की पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि संपादित करें। फिर प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
कुष्मांडा देवी की प्रार्थना का मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।
ओम देवी कूष्माण्डायै नमः॥