डोरीगंज/सारण : बिहार के सारण जिले में स्थित पुरातात्वविक स्थल चिरांद में एक बार फिर आगामी 26 फरवरी से उत्खनन कार्य शुरू होगा। डेकन काॅलेज पुणे व पुरातत्व निदेशालय कला सस्कृति एवं युवा विभाग के संयुक्त तत्वावधान में यहां उत्खनन कराया जाएगा। पूर्व में 1967, 1968, 1969, 1970 से लेकर 1981 तक यहां खुदाई की गयी थी।
साइंटिफिक-वे में होगा उत्खन्न कार्य
निदेशक पुरातत्व निदेशालय डाॅ. अतुल कुमार वर्मा ने बताया कि इस बार जो खुदाई होगी, वह पियोरो साइंटिफ्टिक-वे में की जाएगी। इसमें पैलियोबोटनिस्ट, पैलियोजीयोलोजिस्ट, आर्किजियोलोजिस्ट आदि विशेषज्ञ शामिल होंगे। साथ ही इस उत्खनन कार्य में कई विदेशी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ व रिसर्च स्कॉलर तथा कैम्प इंचार्ज के रूप मे फुहारबाली कार्यरत रहेंगे। साथ ही पूर्व निदेशक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण केसी नौरियाल जो अभी पुरातत्व निदेशालय में संरक्षण एवं उत्खन्न विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत हैं, वो भी इस उत्खन्न कार्य में समय—समय पर अपना मार्ग दर्शन देते रहेंगे। साथ ही डेकन काॅलेज के वाॅइस चांसलर डाॅ. बसंत शिंदे, आईसीएचआर प्रतिनिधि के रूप में डाॅ. जाम खेरे भी अपना समय देंगे।
देशी—विदेशी विशेषज्ञ व रिसर्च स्कॉलर होंगे शामिल
गौरतबल है कि चिरांद विकास परिषद के सचिव श्रीराम तिवारी तथा परिषद के सदस्यों का लगातार प्रयास अब रंग लाने लगा है। मालूम हो कि पुरातत्व की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण इस स्थल की खुदाई सर्वप्रथम जून 1960 में डिस्टिक आफ आर्कियोलाॅजी की एक टीम द्वारा निरीक्षण के बाद की गयी अनुशंसा पर हुई। तब बिहार सरकार के पुरातत्व निदेशालय की पहल पर डाॅ. बीएस वर्मा के नेतृत्व में 1962-63 में उत्खन्न कार्य विधिवत प्रारंभ हुआ जो कुछ अतंराल पर 5 सत्रों में सम्पन्न हुआ और दुनिया को एक नये चिरांद का दर्शन हुआ। उत्खन्न के दौरान चिरांद की भूमि पर पूर्ण विकसित नवपाषणकालीन अवशेष प्राप्त हुए जिसके कारण चिरांद रातोंरात पुरातत्व के क्षेत्र में दुनिया के मानचित्र पर स्थापित हो गया। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि से चिरांद दुनिया का अतिमहत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल बन गया। यहां नवपाषाणकालीन अवशेषों की प्राप्ति ने दुनिया के पुरातत्ववेताओं की इस धारणा को गलत साबित कर दिया कि नवपाषाणकालीन सभ्यता केवल पर्वतीय क्षेत्रों में ही मिलती है, जहां भोजन पानी के साथ—साथ पत्थर के औजार बनाने के लिए कच्चा माल उपलब्ध हो। अब चूूंकि चिरांद में नवपाषाणकालीन सभ्यता के प्रमाण मिले हैं, इसलिए विद्वानों को मानना पड़ रहा है कि नवपाषाणकालीन सभ्यता मैदानी क्षेत्रों में भी मिल सकती है।