नौकरी और नेतागीरी में फर्क नहीं कर पाये प्रशांत किशोर, कैसे?

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पटना : जदयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के जिस इंटरव्यू के बाद बिहार में सियासी तूफान उठ खड़ा हुआ, उसका बारीक विश्लेषण यह संकेत करता है कि राजनीति में आने के बाद भी वे अपने धंधे और नेतागीरी का फर्क नहीं समझ पाए। अभी भी वे खालिस रणनीतिकार के मोड में ही अपने को रख पा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ‘चुनावी रणनीतिकार प्रशांत’ नेतागीरी की खाल ओढ़ने में विफल रहे? आइए देखते हैं कि कैसे वे अपने इंटरव्यू के माध्यम से इस बात को सौ फीसदी सही साबित करते हैं।

क्या है सियासी तूफान लाने वाला बयान?

जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के जिस बयान ने तूफान बरपा किया वह यूं है—’मैं बीजेपी के साथ दोबारा गठजोड़ करने के अपनी पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार के तरीके से सहमत नहीं हूं और महागठबंधन से निकलने के बाद एनडीए में शामिल होने के लिये बिहार के मुख्यमंत्री को आदर्श रूप से नए सिरे से जनादेश हासिल करना चाहिए था’। चुनावी रणनीतिकार से नेता बने किशोर ने एक समाचार पोर्टल के साथ साक्षात्कार में यह बात कही। पोर्टल ने गुरुवार को एक घंटे से अधिक का वीडियो अपलोड किया। किशोर के बयान से उनकी अपनी ही पार्टी में जबरदस्त नाराजगी उठ खड़ी हुई क्योंकि यह साक्षात्कार शुक्रवार को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

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नेताओं का पाला बदलना कोई नयी बात नहीं

साक्षात्कार में किशोर ने इस बात को रेखांकित किया कि नेताओं का पाला बदलना कोई नई बात नहीं है। उन्होंने कहा, ‘आप चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक और द्रमुक जैसी पार्टियों को देखें। हमारे पास वीपी सिंह सरकार का भी उदाहरण है। इसे भाजपा और वाम दलों दोनों ने समर्थन दिया था।’ किशोर ने कहा कि महागठबंधन से जुलाई 2017 में अलग होने का नीतीश का फैसला सही था या नहीं, इसे मापने का कोई पैमाना नहीं है। महागठबंधन में राजद और कांग्रेस भी शामिल थे।

नरेंद्र मोदी पर नीतीश के यू—टर्न से पीके असहमत

उन्होंने कहा, ‘जो लोग उनमें (नीतीश) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की संभावना देखते थे, वे इस कदम से निराश हुए। लेकिन जिन लोगों की यह राय थी कि उन्होंने मोदी से मुकाबला करने के उत्साह में शासन से समझौता करना शुरू कर दिया, वो सही महसूस करेंगे। उस प्रकरण पर टिप्पणी करने को कहे जाने पर किशोर ने कहा, ‘बिहार के हितों को ध्यान में रखते हुए मेरा मानना है कि यह सही था। लेकिन जो तरीका अपनाया गया उससे मैं सहमत नहीं हूं। मैंने ऐसा पहले भी कहा है और मेरी अब भी यह राय है कि भाजपा नीत गठबंधन में लौटने का फैसला करने पर उन्हें आदर्श रूप में नया जनादेश हासिल करना चाहिए था’।

प्रशांत किशोर ने 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम किया था। उस चुनाव में नीतीश महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे। राजद प्रमुख लालू प्रसाद के छोटे पुत्र और राज्य के तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों ने नीतीश को असहज किया और उन्होंने आखिरकार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन नाटकीय घटनाक्रम में भाजपा के समर्थन कर देने से उन्होंने 24 घंटे के भीतर फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी।

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