नतीजों से जानें वीआईपी का कैसे हुआ ‘चुनावी एबार्शन’?

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पटना : लोकसभा चुनावों के परिणाम से बिहार में महागठबंधन को करारा झटका लगा है। खासकर महागठबंधन के घटक दलों को। बिहार में चुनाव परिणाम के ताजा रुझान राजग को 40 में से 38 सीटों पर जीत का सेहरा बांध रहे हैं। ऐसे में महागठबंधन के घटकों रालोसपा और हम का जहां सुपड़ा साफ होता दिखा, वहीं वीआईपी की तो जन्म से पहले ही गर्भ में ही समूल नाश हो गया।

कुशवाहा—मांझी के जनाधार की खुली पोल

इस लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की बड़ी पार्टी राजद ने अपने छोटे घटक दलों पर बड़ा विश्वास जताया। उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा को 5, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को 3 और मुकेश साहनी की नई नवेली पार्टी को 3 सीटें मिली थी। लेकिन तीनों ही घटक दल जो खास कर किसी विशेष जाति और समुदाय के आधार पर खुद को वोट बैंक का बड़ा दावेदार मानते थे, उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। रालोसपा पार्टी प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा स्वयं दो जगहों से चुनाव में उतरे थे। पर न तो उजियारपुर में जनता ने उन्हें स्वीकारा और न काराकाट लोकसभा क्षेत्र में, जहां से वे 2014 में चुनाव जीत चुके थे। वही हाल में पूर्व मुख्यमंत्री और दलित वोटों पर अपना एकछत्र अधिकार समझने वाले जीतन राम मांझी का भी है। अपने गृहक्षेत्र गया लोकसभा सीट से चुनाव में उतरे मांझी भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए। जदयू के नए चेहरे और पहली बार चुनावी मैदान में उतरे विजय मांझी ने जीतन राम मांझी के गृहक्षेत्र में सेंध मारकर दलितों का नेता बनने का उनका मोह ध्वस्त कर दिया। वहीं नवजात वीआईपी पार्टी के प्रमुख ‘सन ऑफ़ मल्लाह’ मुकेश साहनी का भी अभिनय और स्टार प्रचारक की भूमिका छोड़ राजनीति में नेता बनने की मंशाओं पर पानी फिर गया है।

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घटक दलों की वजह से कांग्रेस को मिली थी कम सीटें

महागढ़बंधन में सीट बंटवारें का फैसला राजद के आलाकमान लालू प्रसाद यादव और उनकी अनुपस्थिति में उनके सुपुत्र तेजस्वी यादव के जिम्मे था। अब चुनाव परिणाम के बाद लालू और राजद कुनबे के बड़े नेता बिहार में महागठबंधन के खस्ताहाल होने का ठीकरा किसके सर फोड़ते हैं, ये देखने वाली बात होगी। पर कांग्रेस को 9 सीटों पर सीमित कर घटक दलों को जातीय गणित के हिसाब से 11 सीटें देने का फैसला गलत ही साबित हुआ। बड़े-बड़े दिग्गज नेता भी इस चुनाव में जाति आधारित गणित का लाभ नहीं उठा पाए।

खैर इस चुनाव के बाद किसी खास जाति और समुदाय के वोट बैंक पर बड़ा नेता बन कर उभरने की मंशाओं पर तो ब्रेक लग गया है। अब देखना यह है कि इस लोकसभा चुनाव परिणाम का बिहार में 2020 में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव पर क्या असर पड़ता है, यह देखना काफी दिलचस्प होगा। सवाल यह भी है कि इस चुनाव परिणाम के बाद क्या इन पार्टियों का कोई अस्तित्व बचता है या विधानसभा चुनाव में ये कमबैक कर पाएंगी?
सत्यम दुबे

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