नरेंद्र मोदी की जुबां पर क्यों चढ़ा ‘हाउ इज द जोश’? URI में क्या है खास?

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भारतीय सेना के बेसकैंप पर 18 सितंबर 2016 को सीमा पार के आतंकियों द्वारा किए गए कायराना हमले के जवाब में भारतीय सेना ने दस दिन बाद सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकियों के ठिकाने नष्ट कर कई आतंकियों को मार गिराया था। इसी घटना पर आदित्य धर ने फिल्म ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ बनायी है। मेजर विहान शेरगिल (विक्की कौशल) पूर्वोत्तर आपरेशन के बाद दिल्ली में पदस्थापित हैं। सीमा पार आतंकियों द्वारा एक के बाद एक हो रहे हमलों का जवाब देने के लिए सरकार सेना को सर्जिकल स्ट्राइक करने का आदेश देती है। मिशन में टीम का नेतृत्व करने का जिम्मा मेजर विहान को मिलता है। टीम कैसे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर आंतकी लांचपैड को नष्ट करती है, यही फिल्म में दिखाया गया है।
भारत में राष्ट्रभक्ति के विषय पर बनी फिल्मों का अपना सम्मोहन होता है। वह इस फिल्म में भी है। यह फिल्म असल घटना का प्रमाणिक फिल्मांकन नहीं है। इसे मनोरंजन बनाने के लिए फिल्मकार ने सारे मसाले डाले हैं। जैसे मेजर विहान के रूप में एक हीरो का चयन, उसकी बीमार मां के भावुक दृश्य, सैनिक पिता (मोहित रैना) के शहीद होने पर छोटी बेटी द्वारा भावपूर्ण श्रद्धांजलि आदि। मेजर विहान के किरदार को स्थापित करने में आधा समय खर्च हो गया। इस बीच अजीत डोभाल के जीवन से प्रेरित किरदार गोविंद भारद्वाज (परेश रावल) घटनाओं के केंद्र में हैं। गोविंद के किरदार को लार्जर दैन लाइफ बनाने की कोशिश की गयी है। कई दृश्यों में वे रक्षा मंत्री व गृह मंत्री से भी ऊपर नजर आते हैं। मेजर विहान के पारिवारिक जीवन को ज्यादा केंद्रित करने से फिल्म के मूल विषय के लिए गुंजाइश सिकुड़ जाती है। मिलिट्री मिशन पर कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्में बनीं हैं। उनसे आदित्य धर को आइडिया लेना चाहिए। आदित्य ने 10 साल पहले गीतकार के रूप में अपना कैरियर आरंभ किया था। फिर वे फिल्मों में पटकथा व संवाद आदि लिखने लगे। ‘उरी’ से उन्होंने अपने निर्देशकीय पारी की शुरुआत की है, जो सराहनीय है। एक-दो भटकावों के बावजूद फिल्म पर उनका नियंत्रण है। खासकर सर्जिकल स्ट्राइक के दृश्यों को विश्वसनीय बनाने में उन्होंने पूरी मेहनत की है। कैमरे के साथ-साथ इस काम में वीएफएक्स का भी इस्तेमाल हुआ है। पार्श्वध्वनि उद्वेलित करने वाली है। फिल्म के अंत में क्या होगा, यह दर्शक को पता है। फिर भी लोग आंखें फाड़कर देखते हैं कि चीजें किस प्रकार से घटित हो रही हैं। भविष्य में उनसे अच्छी फिल्मों की उम्मीद की जा सकती है।
विक्की कौशल ने मसान, संजू, राजी के बाद एक और दमदार परफॉरमेंस दिया है। अपने अभिनय कैरियर का सबसे लंबा रोल उन्हें मिला, जिसे उन्होंने बड़े प्रभावी ढंग से अदा किया है। रफ-टफ सैनिक के किरदार में ज्यादा विविधता की गुंजाइश नहीं थी, वरना वे अभिनय के कई और रंग दिखाते। आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव के बाद विक्की ने नई पीढ़ी के अभिनेताओं की श्रेणी में स्वयं को सशक्तता के साथ स्थापित किया है। खुफिया एजेंट के किरदार में यामी गौतम सामान्य हैं, वहीं वायुसेना पायलट के किरदार में कीर्ति कुल्हड़ी जंचती हैं। किरदार के दबे आक्रोश को उन्होंने जिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) गोविंद के रूप में परेश रावल विश्वसनीय लगते हैं। लेकिन, एनएसए के किरदार द्वारा हर महत्वपूर्ण कॉल के बाद मोबाइल को तोड़ देना या फिर संयोगवश एक प्रशिक्षु द्वारा तैयार किए ड्रोन को सेना के मिशन में शामिल कर लेना थोड़ा खटकता है। भारत के एनएसए इतने कंफ्यूज, ओवरकांफिडेंट और असंगत नहीं हो सकते।
इस फिल्म ने आरंभिक दिनों में अपने शीर्षक व विषय के कारण दर्शकों का ध्यान खींचा। बाद में दर्शकों से मिले मुख-प्रचार (माउथ पब्लिसिटी) ने इसको और भी लोकप्रिय बना दिया। फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग- ”हाउ’ज द जोश’’, इतना लोकप्रिय हो गया कि खुद प्रधानमंत्री कई मौकों पर इसे बोल चुके हैं। पर्दे पर जब यह संवाद बोला जाता है, तो सिनेमाघर में बैठे दर्शक जवाब में ”हाई सर’’ बोलते हैं। यह कनेक्ट ही फिल्म की सफलता है।

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