नहीं रहे चिरांद के रशिक शिरोमणी मंदिर के महंत, दी गई जल समाधि
डोरीगंज : चिरांद के रशिक शिरोमणी मंदिर के महंत महावीर शरण का निधन बुधवार की रात 12 बजे हो गया। वे 21 जनवरी से पीएमसीएच आईसीयू में भर्ती थे। उनकी उर्म 92 वर्ष थी। महंत जी के निधन की खबर से पूरे चिरांद में शोक की लहर दौड़ गई। गुरूवार की सुबह से ही उनके अंतिम दर्शन के लिए मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। फिर उनके शिष्यों एवं ग्रामिणों द्वारा उनके पार्थिव शरीर को गाजे बाजे के साथ नगर भम्रण कराया गया।
इसके बाद नाव से उनके पार्थिव शरीर को गंगा, सरयू व सोन के संगम पर जल समाधि दी गई। इस सम्बन्ध में लक्ष्मण किलाधीश अयोघ्या से आए महंत मैथलीरमण शरण ने बताया कि महंत जी का स्वास्थ्य पिछले कई माह से खराब चल रहा था, जिसकी सूचना मूझे महंत जी के सेवक रामबाबू द्वारा मिली। और मैं आकर महंत जी को चिकित्सा के लिए पटना ले गया। जहां बीती रात उनका निधन हो गया। महंत महावीर शरण की शव यात्रा में कई प्रदेशों के संत महंतो एवं प्रमुख लोगो ने भाग लिया। इनमें आचार्य मिथलेशा नंन्द जी शरण, महंत सियाशरण जी महराज, राजा राम शरण जी महराज, महंत जनक दुलारी शरण जी महराज, अर्जुन दास जी महराज, अंजनी शरण जी महराज, महंत रामगोविन्द शरण जी महराज, मुरली महनोहर तिवारी, जजन राय, रामकुमार मिश्रा, जमदार पासवान, गिरजन माझी, मोहन पासवान, विजय राय, भानू सिंह, संजय सिंह, माधव पासवान, जी विजय, सिपाही मांझी, बबलू सिंह, सुरेन्द्र पासवान, शंकर पासवान, कंचन मांझी, श्याम बाबू, फुलेना मांझी सहित योगिन्द्र मिस्त्री सामिल थे।
गौरतलब है कि रशिक शिरोमणी मंदिर की पूरे भारत में हजारो शाखाएं हैं जिसका प्रमुख केन्द्र चिरांद का मंदिर है। लक्ष्मण किलाधीश अयोध्या के महंत मैथलीरमण शरण ने बताया कि इसकी शाखाएं अयोध्या वृदावन चित्रकुट सहित पूरे भारत वर्ष में हैं। सिता-राम उपासना की रशिक शाखा में ‘तत्व सुखी सुखीत्व’—इस सिद्धात का परिवर्तक चिरांद मंदिर से ही हुआ। इस सिद्धात के रचनाकार के बारे में स्वामी युगलानंन्द शरण जी की लिखी पुस्तक में बताई गई है। उस समय के तत्कालीन मंहत यहीं के थे और यहीं से उनके द्वारा 1865 ई॰ में लक्षुमण किलाधीश अयोध्या की स्थापना की गई।