नागरिकता बिल पर फैलाये जा रहे झूठ का PIB ने किया पर्दाफाश

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नयी दिल्ली : नागरिकता संशोधन बिल पर देश में अफवाहों के गर्म हो रहे बाजार पर अंकुश लगाने के लिए प्रेस और इन्फार्मेशन ब्यूरो ने इसकी असलियत को लेकर आज कई ट्वीट किये। ब्यूरो ने देश की जनता को इस बिल की हकीकत बताते हुए उन्हें देश के दुश्मनों की साजिश के प्रति आगाह भी किया। ब्यूरो ने नागरिकता ​संशोधन बिल को ​लेकर फैलाये जा रहे झूठ और भ्रम का एक—एक कर खुलासा किया और असल बात बताई।

अफवाह नंबर 1 : पहला भ्रम यह फैलाया जा रहा है कि ये बिल हिंदू बंगालियों को नागरिकता प्रदान करेगी।
वास्तविकता : ये बिल हिंदू बंगालियों को नागरिकता प्रदान नहीं कर सकती। ये बिल सिर्फ 6 अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़े व्यक्तियों के लिए एक सक्षम कानून का निर्धारण करेगी। इस बिल को सिर्फ मानवीय आधार पर प्रस्तावित किया गया है क्योंकि तीन देश (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान) से धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर इन समुदायों को भगाया गया है।

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अफवाह नंबर 2 : नागरिकता संशोधन बिल से बांग्ला भाषी लोगों का प्रभुत्व बढ़ जाएगा।
वास्तविकता : हिंदी बंगाली जनसंख्या के अधिकांश लोग असम की बराक घाटी में रहते हैं। यहां बांग्ला भाषा को राज्य की दूसरी भाषा का दर्जा दिया गया है। वहीं, ब्रह्मपुत्र घाटी में हिंदू-बंगाली अलग-अलग क्षेत्रों में रह रहे हैं और उन्होंने असमी भाषा को अपना लिया है।

अफवाह नंबर 3 : ये बिल असम की स्थानीय जनता के हितों के खिलाफ है।
वास्तविकता : यह बिल असम पर केंद्रित नहीं है। यह बिल भारत के हर राज्य में लागू होगा। नागरिकता संशोधन बिल एनआरसी के खिलाफ भी नहीं है, बल्कि एनआरसी को अपडेट किया जा रहा है, ताकि स्वदेशी समुदाय के अवैध प्रवास को रोका जा सके।

अफवाह नंबर 4 : इस बिल के कानून बनने से बंगाली हिंदू असम के लिए बोझ बन जाएंगे।
वास्तविकता : ये बिल पूरे देश में सामान्य रूप से लागू है। धार्मिक रूप से उत्पीड़न सहने वाले लोग सिर्फ असम में नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी हैं।

अफवाह नंबर 5 : नागरिकता संशोधन बिल का मकसद हिंदू बंगाली लोगों और जनजातीय लोगों की जमीन को हथियाना है।
वास्तविकता : हिंदू बंगाली जनसंख्या अधिकांश रूप से असम की बराक घाटी में रह रही है, जो कि आदिवासी क्षेत्र से दूर है। ये बिल आदिवासी जमीन के संरक्षण संबंधी किसी भी नियम को खंडित नहीं करती है।

अफवाह नंबर 6 : नागरिकता संशोधन बिल के कारण बांग्लादेश में हिंदुओं का पलायन और बढ़ जाएगा।
वास्तविकता : बांग्लादेश के अधिकांश अल्पसंख्यक पहले ही विस्थापित हो चुके हैं। उत्पीड़न के स्तर में भी पिछले कुछ साल में कमी आई है। बदले हुए स्वरूप में व्यापक रूप से धार्मिक प्रताड़ना के कारण पलायन की संभावना भी कम हो जाती है। 31 दिसंबर 2014 के बाद भारत प्रवास करने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को इस बिल के तहत लाभ नहीं मिल सकेगा।

अफवाह नंबर 7 : नागरिकता संशोधन बिल असम के समझौते को कमजोर कर देगा।                          वास्तविकता : अगर अवैध शरणार्थियों को पकड़ने या वापस भेजने के लिए 24 मार्च 1971 की कट ऑफ तारीख की बात करें, तो यह बिल असम समझौते की मूल भावना को कमजोर नहीं करता है।

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