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नड्डा को याद आई इंदिरा राज में साधुओं पर हुई गोलीबारी, 2047 में कैसा भारत बनाएंगे

नड्डा का देश के नाम खुला खत, दंगो से लेकर युवाओं तक की बात कही

दिल्ली : भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकश नड्डा ने देशवासियों के नाम खुला खत लिखा है। खत के माध्यम से जे पी नड्डा ने हाल के दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों में रही घटनाओं का जिक्र करते हुए देशवासियों से स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होने पर 2047 में किस तरह का भारत चाहिए पूछा है।

नड्डा ने अपने पत्र में लिखा है “भारत विकास यात्रा के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। यह एक ऐसा समय है जब हम ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ यानी कि आजादी का 75वाँ साल मना रहे हैं। यह आगे बढ़ने का अवसर है, साथ ही हमें इस योजना पर भी काम करना और सोचना होगा कि, जब हम 2047 में स्वतंत्रता के सौ वर्ष पूरे करें, तो हमारा राष्ट्र कैसा हो ।

यह समय ऐसा है जब दुनिया की निगाहें भारत पर टिकी हैं। 135 करोड़ लोगों का एक राष्ट्र, जिसके बारे में माना जाता था कि यह कोविड-19 के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में सबसे कमजोर कड़ी साबित होगा लेकिन हमने वो कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। हम न सिर्फ कोविड- 19 सफलतापूर्वक लड़े बल्कि दुनिया को भी हमने मदद पहुँचायी। हमारी अर्थव्यवस्था को खुले और पारदर्शी के रूप में देखा जाता है। हाल के सुधारों ने देश की आर्थिक समृद्धि में जहाँ तेजी से वृद्धि की है, वहीं हमने गरीबी के आँकड़ों में भी कमी लायी है।

पिछले 8 वर्षों में भारतीय राजनीति में तेजी से बदलाव आया है। अब भारतीय राजनीति में वोट बैंक की राजनीति, विभाजनकारी राजनीति की कोई जगह नहीं बची है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ये देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, जिससे न केवल हर भारतीय सशक्त हो रहा है बल्कि वो सफलता की नयी उड़ान भी भर रहा है। दुर्भाग्य से, विकास की इस राजनीति का उन दलों द्वारा विरोध किया जा रहा है जिन्हें जनता ख़ारिज़ कर चुकी है। ये राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए एक बार फिर वोट बैंक और विभाजनकारी राजनीति की शरण लेना चाह रहे हैं।

आज भारत, राजनीति की दो विशिष्ट शैलियों को देख रहा है- एक तरफ है ‘एनडीए’ का प्रयास, जो उनके विकास कार्यों में दिखाई दे रहा है और दूसरी तरफ है तुच्छ राजनीति करने वाली पार्टियों का समूह, जो उनके कटु शब्दों में दिखायी दे रही है। पिछले कुछ दिनों में, हम इन पार्टियों को एक बार फिर एक साथ आते देख रहे हैं, अब यह साथ, मन से है या फिर महज़ राजनीतिक स्वार्थ है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन उन्होंने हमारे देश के मेहनती नागरिकों और उनकी भावनाओं को सीधा ठेस पहुँचाया है। मैं उन खारिज हो चुके राजनीतिक दलों को यह याद दिलाना चाहता हूँ कि जब आप वोट बैंक की राजनीति के बारे में बात करते हैं, तो आप राजस्थान के करौली में हुई शर्मनाक घटना को क्यों भूल जाते हैं? ऐसी कौन सी मजबूरियाँ हैं जो इस मुद्दे पर आप खामोश हो जाते हैं?

जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो पृथ्वी हिलती है

कौन भूल सकता है नवंबर 1966 की वो घटना, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद के बाहर बैठे उन हिंदू साधुओं पर गोलियां चलवा दीं थी, जिनकी मात्र यही माँग थी कि भारत में गोहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। राजीव गांधी के उन पीड़ादायी शब्दों को कौन भूल सकता है जब इंदिरा गाँधी की मौत के बाद हजारों निर्दोष सिखों के कत्लेआम पर उन्होंने कहा था कि – “जब एक बड़ा पेड़ गिरता है, तो पृथ्वी हिलती है। ”

1969 में गुजरात, मुरादाबाद 1980, भिवंडी 1984, मेरठ 1987, 1980 के दशक में कश्मीर घाटी में हिंदुओं के खिलाफ विभिन्न घटनाएं, 1989 भागलपुर, 1994 हुबली… कांग्रेस शासन के दौरान सांप्रदायिक हिंसा की सूची लंबी है। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे या 012 में असम दंगे किस सरकार के तहत हुए थे? इसी तरह, दलितों और आदिवासियों के खिलाफ सबसे भीषण नरसंहार कांग्रेस के शासन में हुए हैं। यह वही कांग्रेस है, जिसने डॉ. अंबेडकर को संसदीय चुनाव में भी मात दी थी।

तमिलनाडु में, राज्य में सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोगों ने सिर्फ इस वजह से, भारत के सबसे बड़े गायकों में से एक को अपमानित किया और मौखिक रूप से लिंचिंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, क्योंकि उनके विचार एक राजनीतिक दल के अनुकूल नहीं थे। क्या यह लोकतांत्रिक है? मतभिन्नता और विचार अलग होते हुए भी साथ रहा जा सकता है, लेकिन अपमान क्यों?

पश्चिम बंगाल और केरल में शर्मनाक राजनीतिक हिंसा और सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं को निशाना बनाकर उनकी बार-बार हत्या करना, इस बात की एक झलक पेश करता है कि हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल लोकतंत्र को किस नज़रिये से देखते हैं।

महाराष्ट्र में, दो कैबिनेट मंत्रियों को भ्रष्टाचार, जबरन वसूली और असामाजिक तत्वों के साथ संबंधों के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किया गया है। क्या यह एक राष्ट्र के रूप में हमारे लिए चिंताजनक नहीं है कि जिस राज्य में भारत की वित्तीय राजधानी है, वहाँ एक ऐसा गठबंधन है, जहाँ शीर्ष कैबिनेट मंत्रियों की ऐसी जबरन वसूली की प्रवृत्ति है?

इसके साथ अब अगली बात पर चलते हैं। यह राजनीतिक दलों के एक चुनिंदा समूह के शर्मनाक आचरण और घटनाओं की सूची है, जो मैंने आप सभी के साथ साझा की है। वोट बैंक की राजनीति करने वाले इन दलों को इस बात का डर सता रहा है कि उनके धोखाधड़ी और करतूतों को व्यापकर रूप से उजागर किया जा रहा है कि, कैसे दशकों तक, उन्होंने आम लोगों को मूर्ख बनाया और तंग किया, किस प्रकार असामाजिक तत्वों को स्वतंत्र रूप से संरक्षण दिया। अब इन तत्वों को देश के कानून के तहत सजा दी जा रही है तो इन असमाजिक तत्वों को संरक्षण देने वाले लोग घबरा रहे हैं और इस तरह के अनर्गल और अनाप-शनाप आरोप लगा रहे हैं।

हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे वोट बैंक की राजनीति करने वालों के लिए आंखें खोलने वाले होने चाहिए। चुनावी मानचित्र पर भारत के सबसे बड़े राज्य, पश्चिमी तट पर एक तटीय राज्य, पूर्वोत्तर के एक राज्य और एक पहाड़ी राज्य ने भाजपा को शानदार जनादेश दिया है। भाजपा के कारण आज भारत में विकास की राजनीति जोर-शोर से हो रही है और देश में सत्ता-समर्थन की भावना देखी जा रही है। कई वर्षों बाद राज्यसभा में 100 का आंकड़ा पार करने और यूपी विधान परिषद में बहुमत हासिल करने वाली भाजपा पहली पार्टी बन गई। विपक्ष को आत्ममंथन करना चाहिए कि इतने दशकों तक देश पर शासन करने वाली पार्टियां अब इतिहास के हाशिये पर क्यों सिमट कर रह गई हैं।

भारत के युवा अवसर चाहते हैं, बाधा नहीं

भारत के युवा अवसर चाहते हैं, बाधा नहीं। वे विकास चाहते हैं, विभाजन नहीं। आज, जब सभी धर्मों, सभी आयु समूहों के साथ-साथ जीवन के सभी क्षेत्रों के लोग गरीबी को हराने और भारत को प्रगति की नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए एक साथ आए हैं, तो मैं विपक्ष से ट्रैक बदलने और विकास की राजनीति को अपनाने का आग्रह करूंगा। इसका श्रेय हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को देते हैं।