मुजफ्फरपुर-दरभंगा में अधिकारी डकार गए 233 करोड़, जानें क्या है सच?

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पटना : बिहार में एक और बड़ा घोटाला सामने आया है जिसमें अधिकारियों ने 233 करोड़ रुपए का गोलमाल कर दिया। घोटाला दरभंगा और मुजफ्फरपुर में होने की बात सामने आयी है।
जानकारी के अनुसार मुजफ्फरपुर और दरभंगा के जिला नजारत कार्यालय में दो अरब से भी ज्यादा की गड़बड़ी हुई है। महालेखाकार कार्यालय ने ऑडिट रिपोर्ट में ये गड़बड़ी पकड़ी है। सीएजी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 से लेकर 2017 तक की ऑडिट रिपोर्ट में करीब दो अरब 33 करोड़ 23 लाख की वित्तीय अनियमितता सामने आ चुकी है। आरटीआई कार्यकर्ता अमित कुमार मंडल द्वारा मांगी गई जानकारी में इस बात का खुलासा हुआ है। सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरपुर में साल 2011 से 2016 तक हुए दो निरीक्षण रिपोर्ट में सीएजी ने 102 करोड़ की वित्तीय अनियमितता पकड़ी है। दरअसल जिला नजारत कार्यालय में राजस्व को सरकार के वित्तीय मापदंडों के विपरीत इस्तेमाल किया गया है। सीएजी ने मुजफ्फरपुर के अपने दो ऑडिट रिपोर्ट में काफी स्पष्ट तरीके से वित्तीय अनियमितता को बिन्दुवार रेखांकित किया है।
आपको बता दें कि सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट सरकार और लोक लेखा समिति को पहले ही सौंपी जा चुकी है। दूसरी ओर वित्तीय अनियमितता उजागर होने के बाद आरटीआई कार्यकर्ता ने सूबे के मुख्य सचिव को सीएजी रिपोर्ट के साथ जांच कराने के लिए सितम्बर 2018 में ही पत्र लिखा है। लेकिन अब भी जांच के लिए दिया गया आवेदन वित्त विभाग और सामान्य प्रशासन के बीच ही घूम रहा है।
दूसरी ओर आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार दरभंगा जिला नजारत में भी सीएजी की दो ऑडिट रिपोर्ट में एक अरब 31 करोड़ से अधिक रुपये की गड़बड़ी पकड़ी गई है। दरभंगा जिला नजारत कार्यालय की वित्तीय गड़बड़ी को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता अशोक कुमार झा ने मुख्य सचिव को उच्चस्तरीय जांच के लिए आवेदन भी दिया। लेकिन दरभंगा के डीएम को ही इस जांच का जिम्मा मिला है। आपको बता दें कि जिलों में डीएम की देखरेख और निगरानी में ही नजारत कार्यालय कार्यरत रहता है। इतना ही नहीं सीएजी ने जिन बिन्दुओं को लेकर आपत्ति की है, उसके जवाब सीएजी के पास अब तक नहीं पहुंचे हैं। जबकि साल 2015 में ही सीएजी ने दोनों ही जिले में ऑडिट किया था।
आपको बता दें कि लोक लेखा समिति में विपक्षी दलों के नेता भी शामिल हैं। जाहिर है मामले को पक्ष-विपक्ष मिलकर टाल रहे हैं। दूसरी ओर सरकार द्वारा जांच की अनदेखी किए जाने से नाराज आरटीआई कार्यकर्ता अब इस मामले को रिट के माध्यम से पटना उच्च न्यायालय में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं। बहरहाल महज दो जिलों की सीएजी ऑडिट रिपोर्ट ही अभी सार्वजनिक हुई है। अगर अन्य जिलों में भी ऐसी ही अनियमितता बरती गई है तो आशंका है कि ये बिहार का सबसे बड़ा घोटाला साबित हो सकता है।

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