मोदी डिप्लोमेसी से ड्रैगन पस्त, लद्दाख में 2 किमी पीछे हटा चीन

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नयी दिल्‍ली : लद्दाख में भारतीय जमीन कब्‍जाने की फिराक में लगे चीन को आखिर पीएम मोदी की डिप्लोमेसी के आगे घुटने टेकने पड़े। कोरोना संकट के बीच वास्‍तविक नियंत्रण रेखा पर एक माह तक हजारों सैनिकों की तैनाती और तनातनी के बाद जब उसे अपने मंसूबों में कामयाबी नहीं मिली तो अब मिलिट्री लेवल की 6 जून को होने वाली अहम बैठक से ठीक पूर्व चीनी ड्रैगन करीब दो किलोमीटर पीछे हट गया है।

भारतीय पलटवार और कूटनीति की बड़ी विजय

माना जा रहा है कि चीन कोरोना के पाप के बाद अपनी करतूतों से चौतरफा वैश्विक दबाव से घिर गया था। यही नहीं, भारत के कड़े जवाबी पलटवार और मोदी सरकार की आक्रामक कूटनीति ने चीन को कदम वापस लेने पर मजबूर कर दिया। सैन्य विशेषज्ञों के अनुसार लद्दाख समेत भारतीय सीमा के सभी प्रमुख स्‍थानों पर चीन इंच-इंच आगे बढ़ने की रणनीति पर काम कर रहा है। चीन की ताजा हरकत भी इसी से जुड़ी हुई थी। डोकलाम की तरह से इस बार भी चीन को उम्‍मीद थी कि वह भारतीय क्षेत्र पर कब्‍जा कर लेगा लेकिन भारत और विश्व के आक्रामक तेवर ने उसे बेनकाब कर दिया।

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वे तीन प्रमुख वजहें जिनके कारण पीछे हटा चीन

चीन के अपने कदम वापस खींचने के पीछे तीन प्रमुख वजहें हैंं। पहली वजह भारतीय सेना की जोरदार जवाबी तैयारी। लद्दाख में पिछले महीने की 5 तारीख को और फिर सिक्किम में चार दिन बाद 9 मई को चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई। सिक्किम का विवाद तो नहीं बढ़ा, लेकिन लद्दाख में गलवान और प्‍योंगयांग शो लेक के पास एलएसी पर चीन ने आक्रमकता दिखाई और दबाव की रणनीति के तहत अपने सैनिक बढ़ाने शुरू कर दिए। बताया जा रहा है कि चीन ने एलएसी पर 5 हजार सैनिक भेजे।

भारत के आक्रामक जवाब का अंदाजा नहीं लगा सका ड्रैगन

चीन की नापाक हरकत के जवाब में भारत ने भी एलएसी पर अपने सैनिक बढ़ा दिए और चीन की बराबरी में हथियार, टैंक और युद्धक वाहनों को भी इलाके में तैनात कर दिया। इस तैयारी के बाद भी भारत ने संयम के साथ बातचीत का रास्ता भी नहीं छोड़ा। गतिरोध को खत्‍म करने के लिए 6 जून को दोनों देशों के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारियों की बातचीत होने जा रही है। बता दें कि इस विवाद की शुरुआत के बाद अब तक तक 10 दौर की बातचीत हो चुकी है।

आंतरिक संकट में राष्ट्रवादी कार्ड खेलने की मजबूरी

चीन के पीछे हटने की दूसरी वजह उसका आंतरिक संकट है। कोरोना वायरस संकट की वजह से चीन की अर्थव्‍यवस्‍था भीषण मंदी के दौर से गुजर रही है। दुनिया की फैक्‍ट्री कहे जाने वाले चीन से निर्यात कम हो गया है, इससे वहां नागरिकों में बेरोजगारी और असंतोष बढ़ रहा है। इसे दबाने के लिए चीनी नेतृत्‍व राष्‍ट्रवाद का कार्ड खेल रहा है। अमेरिका की वजह से वह ताइवान और साउथ चाइना सी में कुछ कर नहीं पा रहा है तो उसने भारत के खिलाफ दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया। चीनी राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग के सपने को पूरा करने के लिए चीन ने अरबों डॉलर खर्च करके बेल्‍ट एंड रोड परियोजना शुरू की लेकिन उससे उसे कोई फायदा होता नहीं दिख रहा है। इससे चीन पर आंतरिक स्‍तर पर दबाव बढ़ता जा रहा है।

दुनिया की ओर से चीन पर बढ़ता चौतरफा दबाव

चीन के रुख में नरमी की तीसरी वजह दुनिया की ओर से बढ़ता चौतरफा दबाव है। साउथ चाइना सी, कोरोना और व्‍यापार के मुद्दे पर अमेरिका के साथ उसकी जंग चल रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के ताकतवर देशों के ग्रुप-7 का विस्तार कर भारत को शामिल करने के संकेत दिए हैं। यही नहीं जापान, व‍ियतनाम, ऑस्‍ट्रेलिया और ताइवान चीन की व‍िस्‍तारवादी नीति का लगातार विरोध कर रहे हैं। चौतरफा घिरा चीन इस समय दुनिया की सबसे बड़ी सेना रखने वाले भारत से जंग का खतरा मोल नहीं ले सकता है। चीन भारतीय बाजार को भी नहीं खोना चाहता है, इसी वजह से उसे लद्दाख में अपने रुख में नरमी लानी पड़ी है।

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