पटना : जातिवादी राजनीति में अतिवाद के कलंक के टीके से बदनाम बिहार ने लोकसभा चुनाव 2019 में सिद्ध कर दिया कि अब यहां के लोगों के लिए देश पहले है, राष्ट प्राथमिकता में है तथा जाति व गोत्र बाद में। खुद को सन आफ मल्लाह कहने वाले मुकेश साहनी अपनी तीनों सीटें गवां चुके हैं और भाजपा से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा का काला जादू अपने गोत्र पर भी नहीं चल सका। इनके साथ रहे पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी अपनी साख गवां चुके।
कुशवाहा, वाल्मीकि व सहनी ने कायम रखी चुनावी परम्परा
ये तीनों नेता अपने गोत्र और जाति को ही आधार मानकर बागी बन क्षत्रप की भूमिका में आना चाह रहे थे। दरअसल, उपेन्द्र कुशवाहा को भरोसा रहा है अपनी जाति के साढ़े आठ प्रतिशत कुशवाहा मतों पर। बिहार में कुशवाहा मतदाता यादवों के बाद दूसरे नम्बर पर है। अति महत्वाकांक्षा पाले कुशवाहा कभी पीएम मेटेरियल रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से टकराने लगे थे। चुनाव परिणाम तो यही बताता है कि नीतीश कुमार का लव-कुश समीकरण अभी भी नीतीश कुमार के साथ ही है। यही नहीं, यह समीकरण तो मजबूत होता भी दिखा क्योंकि लव-कुश से एनडीए के लगभग आधा दर्जन प्रत्याशी जीत दर्ज कर संसद के द्वार को खटखटाने वाले हैं। और, उपेन्द्र कुशवाहा अपनी सीटें भी गवां बैठै।
त्रासदी तो सन आफ मल्लाह की गजब रही। पिछले तीन सालों से मुकेश पूरे बिहार में साहनियों को आंदोलित करते रहे हैं। अच्छी संख्या भी है। वोट भी उनका आक्रामक होता है। लेकिन, साहनियों के वोट और कुशवाहा के मत भी एनडीए के पक्ष में ही गये। उदाहरण है, पूर्वी चम्पारण। वहां कुशवाहा मतों की भी अच्छी-खासी संख्या है और साहनियों की भी। वहां रालोसपा प्रत्याशी आकाश सिंह की चुनाव की लगाम उनके पिता पूर्व मत्री अखिलेश प्रसाद सिंह के हाथों में तो थी ही, रालोसपा के थिंक-टैंक नेता सुभाष कुशवाहा भी रणनीति में शमिल थे। उनकी सलाह पर जद-यू के पूर्व राज्यसभा सदस्य अनिल साहनी को काफी मान-मन्नौवल के बाद बैठाने में पूर्व मंत्री सफल रहे। लेकिन, वहां साहनियों और कुशवाहा मत भी भाजपा प्रत्याशी व कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह को मिले। हां, रालोसपा को भी मिले ही। पर, भाजपा को भी मिले।
दिलचस्प यह कि कुशवाहा और साहनी मत पारम्परिक रूप से भाजपा का रहा है। यह अभी भी प्रमाणित होता है। जैसे, बेतिया में भाजपा के संजय जायसवाल एनडीए के समीकरण मतों के अतिरिक्त कुशवाहा मत को भी झटकने में सफल रहे। बगल के वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र भी उदाहरण है, जहां से वैघनाथ प्रसाद कुशवाहा लगभग पौने तीन लाख मतों से चुनाव जीत गये हैं। चम्पारण की आंखों से पूरे बिहार के चुनाव परिणाम को देखा जा सकता है। जहां तक बात पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की है तो उनकी ही जाति ने उन्हें नकारते हुए उनके सभी प्रत्याशियों को जातिगत आधार पर वोट नहीं दिया।