पटना : 1 मई यानी अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस। लेकिन मज़दूरों को ये पता ही नहीं है कि आज मज़दूर दिवस है। रोज़ की तरह आज भी सड़क के किनारे काम की तलाश में बेचारे मज़दूर बैठे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद को प्रधान सेवक कहते हैं। कई सभाओं में खुद को मज़दूर भी कह चुके हैं। खुद को ट्रैन में चाय बेचने वाला भी बताया है। जिन मज़दूरों की बदौलत हम बड़े-बड़े घरों में रहते हैं उनकी सुध लेनेवाला कोई नहीं है। मई और जून की आग उगलती धूप में भी मज़दूर काम करते रहते हैं। उनके लिए सरकार के द्वारा लाई गई योजनाएं महज़ कागज़ तक सिमट कर रह गई है। आज अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर कुछ मज़दूरों से बात हुई। उनकी पीड़ा और दर्द सुनकर आंखों से आंसू आ गए। सोनू कुमार नाम के मज़दूर से जब मैंने पूछा कि क्या आपको पता है कि आज मजदूर दिवस है। तो सोनू कुमार ने कहा कि नहीं मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं है। हम मज़दूर आदमी हैं हमे सिर्फ काम चाहिए। उसने कहा कि सबसे दुख की बात तो ये है कि यहां काम मिलेगा की नहीं इसकी कोई गारेंटी नहीं है। उसने कहा कि सुबह से बैठा हूं अब तक कोई काम नहीं मिल पाया है। वहीं बगल में काम कर रहे दूसरे मज़दूर प्रमोद कुमार ने कहा कि मज़दूरी करके अपना जीवन गुजर-बसर कर रहा हूं। अंतरराष्ट्रीय मई दिवस नहीं जानता। आगे प्रमोद कुमार ने कहा कि रोज़ काम करते हैं तो पैसा मिलता है। कई बार काम नहीं भी मिलता है। जिस दिन काम नहीं मिलता है उस दिन भूखे सोना पड़ता है। हमलोग गरीब है हमलोग काम नहीं करेंगे तो कमाएंगे कैसे और कमाएंगे नहीं तो परिवार को कैसे खिलाएंगे।
वहीं एक और मज़दूर बालू ढोता दिखा तो हमने पूछ दिया कि क्या आपको पता है कि आज 1 मई है अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस। तो वह मुझे हैरानी से देखने लगा और कहा नहीं पता मुझे ये सब।
मधुजर योगेश