महागठबंधन में महासंकट क्यों?  

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पटना : 2019 लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है, पर बिहार में अब तक महागठबंधन में सीट समीकरण ही नहीं तय हो पा रहा है। कुछ घटक दलों की खटपट, कुछ राजद की बिग ब्रदर की भूमिका का ख़ामियाज़ा महागठबंधन को और खास कर कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है।

दरअसल, बिहार में राजद क्षेत्रीय स्तर की बड़ी पार्टी है। राजद खासकर लालू कुनबे के विश्वासी नेता महागठबंधन में राजद के हितों को साधने में लगे हुए हैं। कांग्रेस पार्टी का बिहार में जनाधार कम है और इसीलिए उसे राजद का पिछलग्गू पार्टी बने रहना पड़ता है। कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर इसका नुकसान भी हो रहा है। वहीं महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, जीतनराम मांझी की हम, मुकेश साहनी की विकासशील पार्टी और राजद कोटे से लोजद के शरद यादव को क्षेत्रीय पार्टीयों के रूप में बड़ा फायदा मिला है।

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मामला बिहार के कुछ लोकसभा सीटों पर अटका हुआ है। आख़िर कौन सी सीट किस दल को मिले। ऐसे में दरभंगा, मुजफ्फरपुर और सुपौल सहित कुछ अन्य सीटों पर घटक दलों में विवाद लगातार बढ़ रहा है। दरभंगा से राजद अब्दुल बारी सिद्दीक़ी को उतारना  चाहती है, जबकि कांग्रेस भाजपा से आये सिटींग एमपी कीर्ति आजाद को उतारने की गुहार लगा रही है। वहीं सुपौल से कांग्रेस के वर्तमान सांसद और राजद के बागी नेता पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन का टिकट काटने का प्रयास कर रही है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि महागठबंधन में किस दल का सुपड़ा साफ होगा और किस दल को फायदा होगा।

(सत्यम दुबे)

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