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लाल खून के काले खेल में कई के हाथ है सने

  • ड्रग इंस्पेक्टर की भूमिका पर उठ रहे सवाल
  • खून माफिया को बचाने की चल रही साजिश

नवादा : लाल खून का काला खेल सामने आने के बाद खेल में कई लोगों के चेहरे पीले पड़ गए हैं। कई लोग इस गोरखधंधे में शामिल हैं। इस पूरे प्रकरण में ड्रग इंस्पेक्टर की भूमिका पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

इधर, एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया कि ड्रग एक्ट में ड्रग इंस्पेक्टर को कई अधिकार दिए गए हैं। जिस वक्त पुरानी जेल रोड स्थित अपोलो सर्जिकल एवं यूरोलॉजी सेंटर में छापेमारी की गई थी, उस वक्त कुछ सुराग हाथ लगे थे।

हालांकि तब अपेक्षित साक्ष्य नहीं मिल सका था। ऐसी स्थिति में उस भवन को सील करते हुए पुन: बारीकी से जांच की जा सकती थी। लेकिन तब भवन को सील नहीं किया गया। ऐसी स्थिति में माफिया को साक्ष्य नष्ट करने का अवसर मिल गया।

सूत्र यह भी बताते हैं कि भवन की चौथी मंजिल से खून बेचने वाले युवकों के मिलने के बाद भी प्राथमिकी दर्ज कराने में आनाकानी करते रहे। अंतत: ड्रग इंस्पेक्टर की जांच रिपोर्ट के आधार पर सिविल सर्जन ने खुद प्राथमिकी दर्ज कराई।

दर्ज प्राथमिकी को लेकर भी हैं कई सवाल

दर्ज प्राथमिकी को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि आखिर दर्ज प्राथमिकी में खून का काला कारोबार करने वाले कई लोगों का नाम क्यों नहीं है। गिरफ्तार ब्लड सेलरों द्वारा अधिकारियों के समक्ष दिए बयान में कई वैध-अवैध प्राइवेट ब्लड बैंक के बारे में भी जिक्र किए जाने के बावजूद उन लोगों का नाम भी शामिल नहीं है। जिस कमरे में खून बेचने वाले सातों लोग बंद थे, उस कमरे की चाबी जिस शख्स के पास थी उसका भी नाम सामने आया था। लेकिन प्राथमिकी में उसका भी नाम नहीं है।

माना जा रहा है कि खून की काली कमाई करने वाले लोगों को बचाने के लिए और खुद को बेदाग साबित करने के लिए सिर्फ खून बेचने वालों को नामजद अभियुक्त बनाया गया है।

प्रशासन को दी गई थी अहम जानकारी

सूत्र बताते हैं कि शिकायतकर्ता काफी पहले से इस गोरखधंधे को उजागर करने में लगा था। कई दिनों की मेहनत के बाद उसने अहम साक्ष्य जुटाते हुए प्रशासन को जानकारी दी थी। जिसके बाद डीडीसी के निर्देश पर सदर एसडीएम उमेश कुमार भारती, ड्रग इंस्पेक्टर संजीव कुमार व नगर थानाध्यक्ष संजीव कुमार ने छापेमारी की थी। तब बंद कमरे से सात लोगों को निकाला गया था। उन सातों युवकों के दोनों बांह पर सूई लगाने के दाग भी थे। उन लोगों ने प्रशासन के समक्ष सात सौ से हजार रुपये में खून देने की बात को स्वीकार भी किया है। दर्ज प्राथमिकी में इन सातों के अलावा एकमात्र अज्ञात को आरोपित किया गया है।

पुलिस पर टिक गई है लोगों की नजर:

प्राथमिकी दर्ज होने के बाद अब लोगों की नजर पुलिस पर जा टिकी है। प्राथमिकी दर्ज कराने में माफिया को बचाने का पूरा प्रयास किया गया है। ऐसी स्थिति में अब जांच का असली जिम्मा कांड के अनुसंधानकर्ता पर आ गया है। देखना दिलचस्प होगा कि पुलिस भी उस माफिया तक पहुंच पाती है या यूं ही मामले को रफा -दफा कर दिया जाएगा।

सातों युवक का कराया गया मेडिकल जांच

सातों युवक का सदर अस्पताल में मेडिकल जांच कराया गया। युवकों के बांह पर लगे सूई के दाग से संबंधित जांच कराई गई है। इसके लिए मेडिकल बोर्ड का भी गठन किया गया। साथ ही युवकों का कोरोना जांच भी कराया गया है।

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