क्या कन्हैया फिर करेंगे महागठबंधन का बेड़ा गर्क? बिहार में चुनावी एंट्री पर उठे सवाल

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बेगूसराय/पटना : ‘टुकड़े—टुकड़े गैंग’ फेम वाले जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और वामपंथी कन्हैया कुमार ने एक बार फिर बिहार में चुनावी एंट्री ली है। परंतु इस बार विधानसभा चुनाव में उनकी एंट्री प्रत्याशी के रूप में नहीं, बल्कि सीपीआई स्टार प्रचारक के तौर पर हुई है। लेकिन इसके साथ ही मौजूदा चुनाव में कन्हैया की मौजूदगी पर बिहार और खासकर बेगूसराय और वाम प्रभावित रहे अन्य जिलों में लोग सवाल भी उठाने लगे हैं। यहां तक कि विपक्षी महागठबंधन भी उनसे दूरी बनाए हुए है। सभी को यही डर सता रहा है कि पूर्व के चुनावी सेल्फ गोल करने के अपने कारनामों की तरह कहीं इस बार भी कन्हैया अपने करतूतों से विपक्षी महागठबंधन की लुटिया न डुबो दें।

विपक्षी महागठबंधन के डर की वजह

इस डर के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दो—तीन दिन पहले ही बिहार पहुंचे कन्हैया कुमार ने पुराने ढर्रे की लीक पर चलते हुए ही सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्र सरकार और बीजेपी को निशाने पर लेना शुरू कर दिया। सीपीआई के लिए वोट मांगने हेतु उनके पुराने रवैये को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषक और विपक्ष के ही लोग कहने लगे हैं कि कन्हैया एक बार फिर से एनडीए की बजाय महागठबंधन का ही बेड़ा गर्क करने के रास्ते पर निकल पड़े हैं।

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कहीं पर लक्ष्य, कहीं और लगा रहे निशाना

अभी दो दिन पहले कन्हैया ने बेगूसराय के बखरी विधानसभा क्षेत्र से सीपीआई उम्मीदवार सूर्यकांत पासवान और तेघड़ा से उम्मीदवार राम रतन सिंह के नामांकन में हिस्सा लेते हुए पीएम मोदी पर सीधा हमला बोल दिया। यही नहीं उन्होंने ईवीएम हैक और सीएम हैक करने वाला बयान भी दे डाला। अब दिल्ली में रहने वाले कन्हैया कुमार दावा तो मिट्टी से जुड़े होने का करते हैं, लेकिन उन्हें बिहारी जनमानस की समझ शायद नहीं है। यह चुनाव राज्य विधानसभा का है। इसमें लोग विपक्ष की तरफ से पेश विकल्पों पर नजर रख रहे हैं। और कन्हैया उन्हें इस समय देश के एकमात्र सर्वस्वीकार्य नेता नरेंद्र मोदी की निंदा की घुट्टी पिलाना चाह रहे। साफ है कि कन्हैया बीमारी कुछ और और ईलाज कुछ और बताकर लोगों को बरगलाना चाह रहे। डिजीटल युग में ऐसी राजनीतिक नासमझी खतरनाक होती है और शीघ्र बैकफायर करती है।

राष्ट्रवाद नरेंद्र मोदी की यूएसपी, कन्हैया कर गए चूक

मौजूदा समय में भारत—चीन, भारत—पाक तनाव और कोरोना महामारी जैसे खतरों से देश जूझ रहा है। लेकिन इस माहौल में भी कन्हैया कुमार ने कम्यूनिस्ट चीन पर तो कुछ नहीं बोला, लेकिन उन्होंने राष्ट्रवाद जैसे शब्द से ही बिहार में अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत कर दी। राजनीतिक विश्लेषक इसे बहुत बड़ी गलती करार दे रहे हैं। उनके अनुसार राम मंदिर के बाद राष्ट्रवाद ही एक ऐसा मुद्दा है जिसे भाजपा और एनडीए हाल के वर्षों में सबसे ज्यादा भुनाती रही है। कन्हैया कुमार ने बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवाद का मुद्दा छेड़कर जैसे महागठबंधन के गुब्बारे में कील ठोंक दिया। क्योंकि देश का जनमानस आज भी आतंकवाद, कोरोना और भारत—चीन के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी को छोड़कर किसी और विचारधारा या नेता की ओर ताकता भी नहीं।

तेजस्वी की सारी रणनिति पर फिर रहा पानी

स्पष्ट है कि कन्हैया जिस मोड में बिहार विधानसभा चुनाव का प्रचार कर रहे हैं, उससे महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव काफी घबरा उठे हैं। उन्हें यह आशंका होने लगी है कि कन्हैया उनकी मदद करने बिहार आये हैं, या फिर जुलूस निकलवाने। राष्ट्रवाद और देशद्रोह जैसे मुद्दों का हश्र 2019 के लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव देख चुके हैं। शायद इसलिए उन्होंने विधानसभा चुनाव में सरकारी नौकरी, खराब स्वास्थ्य व्यवस्था जैसे मुद्दों को आगे करके युवा वोटरों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की। ऐसे में कन्हैया द्वारा राष्ट्रवाद, देशद्रोह, पाकिस्तान जैसे मुद्दों को उठाना महागठबंधन को भारी पड़ सकता है।

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