पटना : पहले केंद्र की मोदी कैबिनेट में शामिल होने से इनकार, फिर बिहार कैबिनेट विस्तार से एनडीए को बाहर रखने का वार और अब दनादन महागठबंधन के दलित नेता और अपने घोर आलोचक रहे हम के जीतनराम मांझी से दो दिन में दो बार की मुलाकात। इन सभी क्रियाकलापों के केंद्र में एक ही चेहरा है, बिहार के सीएम और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार। केंद्र में सरकार गठन के बाद बिहार में तीव्र हुई सियासी बयार राजनेताओं की छोटी हरकतों के भी ‘बड़े’ अर्थ निकाल रही है। इसी सियासी माहौल में कभी एक दूसरे को फूटी आंख नहीं भाने वाले और वर्षों से एकदूसरे से दूरी मेंटेंन करने वाले नीतीश कुमार और हम नेता जीतनराम मांझी काफी करीब आ गए हैं। तभी तो दोनों नेताओं ने पिछले दो दिनों में अचानक दो बार मुलाकात की। इफ्तार के बहाने हुई इस मुलाकात ने ‘राजनीति की एक गेंद को हवा में रखने’ के माहिर खिलाड़ी नीतीश कुमार के अगले कदम को लेकर बिहार के राजनीतिक पंडितों के कान खड़े कर दिये हैं। आइए जानते हैं कि शिष्टाचार मुलाकात कहे जाने वाली इन मुलाकातों के राजनीतिक मायने क्या हैं?
मांझी—नीतीश की ताजा जुगलबंदी से हलचल
बिहार में पल-पल बदल रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच सीएम नीतीश और पूर्व सीएम मांझी की नजदीकी ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। जीतन राम मांझी कल रविवार को जदयू की इफ्तार पार्टी में अचानक पहुंच गए। राजधानी स्थित हज भवन में आयोजित जदयू की इस इफ्तार पार्टी में जैसे ही मांझी पहुंचे सीएम नीतीश कुमार ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। बड़े दिनों बाद दोनों नेताओं की इस अंदाज में हुई मुलाकात हुई। इतना ही नहीं, इस मुलाकात के अगले ही दिन यानी आज सोमवार को मांझी की ‘हम’ ने भी इफ्तार पार्टी आयोजित की जिसमें सीएम नीतीश कुमार को भी बुलाया गया है। नीतीश आज मांझी के आवास 12 एम स्टैंड रोड में हम के इफ्तार में शामिल होंगे। यानी दो दिन में नीतीश—मांझी की दूसरी मुलाकात।
शिष्टाचार के बहाने अपने—अपने कुनबे पर दबाव
पत्रकारों ने इन ताजा मुलाकातों पर जब जीतनराम मांझी से प्रश्न किया तो उन्होंने सफाई दी कि हमारे बीच कोई खिचड़ी नहीं पक रही। यह शिष्टाचार की बात है। हमें नीतीश जी की पार्टी ने आमंत्रण दिया इसलिए हम गए। अब हमने उन्हें बुलाया तो वे भी आयेंगे। इसमें सियासत कहां है। उधर जदयू ने भी कुछ इसी तरह के शिष्टाचार की बात कही है। लेकिन जिस तरह से बिहार में राजनीतिक घटनाक्रम बदल रहे हैं, उसमें राजनीतिक विश्लेषक इन मुलाकातों को महज शिष्टाचार भेंट के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने अभी तक बिहार की सत्ता हासिल करने और उसे बनाए रखने में जो राणनीतिक और राजनीतिक कुशलता दिखाई है, वह तो यही संकेत देती है कि वे फिर अपने नए दांव गढ़ने में लग गए हैं।
तेजी से बदल रही बिहार की सियासी फिजा
मोदी कैबिनेट में भागीदारी के प्रश्न से शुरू हुए विवाद ने बिहार की राजनीति में बवंडर के संकेत देने शुरू कर दिये हैं। घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है। न सिर्फ सिलसिलेवार तरीके से बयान आ रहे हैं, बल्कि मुलाकातों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। यही कारण है कि दो दिनों में मांझी—नीतीश की ताबड़तोड़ दो मुलाकातों ने सियासी अटकलों को चरम पर पहुंचा दिया है। बिहार में दलबदल और पलटीमारी उस कामयाब हथियार के रूप में पिछले दो दशकों में उभरी है, जिसने राजनीति के मैदान में 100 फिसदी रिजल्ट दिया है। कम से कम नीतीश कुमार ने तो इसका बखूबी और कामयाब उपयोग तो किया ही है। मांझी भी इसमें नीतीश से ज्यादा पीछे नहीं। 2013 में जेडीयू ने बीजेपी को छोड़ा, तो मांझी को सीएम बना दिया। लेकिन मांझी ने कुर्सी पाने के कुछ ही दिन बाद नीतीश से बगावत कर पलटी मार दी। उधर नीतीश तो इस कलाकारी के पुराने चैंपियन रहे हैं। पहले एनडीए के साथ दो टर्म सीएम बनने के बाद राजद के साथ होकर तीसरा टर्म और अब फिर नई तिकड़मों का गर्म बाजार। देखना है कि सीएम नीतीश और पूर्व सीएम मांझी की ताजा नजदीकी विधानसभा चुनाव से पहले क्या गुल खिलाती है।