क्या है बाढ़-सुखाड़ के बहाने ‘माल’ बनाने का तिलिस्म? पढ़ें दूसरी किस्त
पटना : कोसी के कहर से बिहार को बचाने के लिए विदेशों से उधार लिए गए ज्ञान के आधार पर नेताओं व अधिकारियों ने मिलजुलकर बांध बनाओ मॉडल का आविष्कार किया था। नेताओं व अधिकारियों के इस गठजोड़ में गांधी टोपी पहनने वाले तथाकथित समाजसेवी भी शामिल हो गए थे। इस तिकड़ी ने ठेकेदारों की ऐसी फौज तैयार कर दी जो बांध बनाने और बांध की मरम्मत के नाम पर सरकारी कोषागार में जमा जनता के पैसे को लूटने लगी। इस लूट को जायज ठहराने के लिए समाजसेवी का रूप धारण किए वैसे एजेंट तरह-तरह के आख्यान तैयार करते थे जिससे जनता भ्रमित होती रहे और वह विनाशकारी विकास मॉडल जारी रहे।
स्वयंसेवकों की समाजसेवा बनी कमाई का जरिया
बिहार में आज भी वैसी ही स्थिति कायम है। बिहार की छवि बाढ़ व सूखा से त्रस्त पिछडे राज्य की है। इस पिछड़े राज्य को परस्पर विरोधी समस्या, बाढ़ और सूखा से निजात दिलाने के नाम पर पैसा हसोतने के प्रयास में स्वयंसेवी संगठन और मैगसेसे जैसे अवार्ड लेकर देश-विदेश में बड़े समाजसेवी की छवि बनाने वाले भी शामिल हैं। बिहार को ठगने एवं उसके दर्द की तिजारत कर अपनी सुख-सुविधा के संसाधन व अवसरों को जुटाने के कई उदाहरण हैं।
सरकार के कर्णधारों और एनजीओ का नेक्सस
इसी वर्ष अप्रैल में बिहार की राजधानी पटना के सबसे महंगे मौर्य होटल में 9 एवं 10 अप्रैल 2019 को ‘पानी रे पानी’ नाम से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था। मौर्य होटल में पानी के संरक्षण एवं प्रबंधन के घोषित उद्येश्य को लेकर हुए उस आयोजन में लाखों रूपए खर्च हुए थे। लेकिन उस दो दिवसीय कथित कार्यशाला में खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत चरितार्थ हुई। उस आयोजन का उपयोग बिहार सरकार के कुछ आला अधिकारी व कथित जलपुरूष के महिमा मंडन में हुआ। जनता के पैसे के दुरूपयोग का निकृष्ट नमूना रहे उस कार्यक्रम में प्रकाशित एक पुस्तक है।
पुस्तक के बहाने चेहरा चमकाने और फिर उसे भुनाने की जुगत
चार कलर में प्रकाशित उस पुस्तक में बिहार की जलसमस्या व उसके निदान की बात महज औपचारिकता है। वहीं उस पुस्तक के लगभग सभी पन्नों पर जल को धंधा बनाकर अपनी ही प्रतिष्ठा को तारतार कर देने वाले बड़बोले राजेंद्र सिंह के कई-कई चित्र छपे हैं। उनके साथ बिहार सरकार के मुख्य सचिव पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद मुख्यमंत्री के सलाहकार बने अंजनी कुमार सिंह, आपदा प्रबंधन के उपध्यक्ष व्यासजी के चित्र भी कई-कई पन्नों पर छपे हैं। सरकार को अपनी तरह से हांकने वाले अधिकारियों के साथ जलसमस्या को लेकर राजस्थान में कुछ अच्छा काम कर उससे ज्यादा अपना चेहरा चमकाने वाले एक व्यक्ति की इस तरह से ब्रांडिंग कुछ और ही संकेत देते हैं। वैसे यह आयोजन बिहार सरकार के लोकस्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचइडी) एवं लघु एवं सूक्ष्म सिचाई विभाग के पैसे से हुआ। इस आयोजन को लेकर सूचना के लिए आरटीआई के तहत कुछ आवेदन भी दिए गए हैं। लेकिन, उसके जवाब अभी तक नहीं मिले हैं।
क्रमश: