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क्रांतितीर्थ महोत्सव में बोले गंगा प्रसाद: आंतरिक शत्रुओं से निपटना कठिन, नशे से दूर रहें बच्चे

ललितकला के बिना के किसी भी संस्कृति का विकास नहीं : प्रो. श्याम शर्मा

स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा 1498 से होनी चाहिए : आशुतोष भटनागर

पटना: आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। कोई भी देश जब आजाद होता है, तो अपनी प्राचीन सभ्यता व संस्कृति पर गौरव करता है। देश के बाह्य शत्रुओं से तो निपटना तो आसान है, लेकिन देश के अंदर के शत्रुओं ने निपटना कठिन है। भारत संसार का गुरु था, इस क्रांतितीर्थ उत्सव पर हम संकल्प लें कि यह फिर से उठ खड़ा हो और विश्वगुरु बने। उक्त बातें सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने रविवार को कहीं। वे चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान, पटना में आयोजित ‘क्रांतितीर्थ’ महोत्सव के समापन समारोह के उद्घाटन के बाद संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एन्ड कल्चरल स्टडीज, इंडिया एवं संस्कार भारती, बिहार प्रदेश द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।

उन्होंने कहा कि मैकाले ने भारत में ऐसी शिक्षा व्यवस्था स्थापित कर दी, जिससे भारत के लोग तन से तो भारतीय रहे, लेकिन मन व विचार से अंग्रेज हो गए। प्रसन्नता कि बात है कि आजादी के इस अमृतकाल में नई शिक्षा नीति—2020 से भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने का अवसर मिला है। उन्होंने अटल सरकार द्वारा पोखरन में परमाणु परीक्षण कराए जाने को भारत का गौरव लौटाने वाला बताया। साथ ही उन्होंने समारोह में आए बुजुर्गों से आह्वान कि बच्चों में नशे के बढ़ते लत के प्रति सचेत रहें और अपने बच्चों को दूर रखें। उन्होंने कहा कि आज विश्व आतंकवाद से पीड़ित है, लेकिन विश्व को शांति भारत से ही मिलेगी, क्योंकि भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की बात करता है।

पद्मश्री से सम्मानित चित्रकार व संस्कार भारती के बिहार प्रदेश के अध्यक्ष प्रो. श्याम शर्मा ने कहा कि हम भाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म भारत में हुआ। यही एक ऐसी जगह है जहां ऋषियों ने संपूर्ण मानवता के कल्याण की कामना की। ललितकला के बिना के किसी भी संस्कृति का विकास नहीं हो सकता। विदेशी आक्रांताओं ने सर्वप्रथम हमारी संस्कृति पर ही आघात किया। उन्होंने बिहार की चौपाल संस्कृति को नष्ट कर दिया। आज प्रसन्नता कि दशकों तक जिन कृतियों व घटनाओं पर धूल पड़ी रही, आज उन्हें सामने लाया जा रहा।

‘स्वातंत्र्य समर नृत्य नाटिका’ प्रस्तुत करती कलाकारों की टोली

जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने कहा कि प्राय: हमलोग स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा 1857 से शुरू करते हैं, जबकि इसकी चर्चा 1498 से होनी चाहिए। उन्होंने केलादि शिवप्पा नायक, संन्यासी मूलचंद, प्रफृल्लचंद राय, बाबा राघव दास जैसे अल्पज्ञात व अज्ञात देशभक्तों व महापुरुषों की चर्चा करते हुए आह्वान किया कि जब 2047 में हम आजादी का शताब्दी वर्ष मनाएं, तो ये महापुरुष इतने अल्पज्ञात न रहें, बल्कि उनके बारे में देश भलीभांति जानें।

न्यायामूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि इस ग्रह पर भारत ही एकमात्र स्थान है, जहां ऋषि व संन्यासी के साथ—साथ संस्कार भी जन्म लेते हैं। उन्होंने बाह्य मजबूती से अधिक आंतरिक मजबूती पर जोर दिया और कहा कि हम अगर आंतरिक रूप से मजबूत होते, तो कोई विदेशी आक्रांता यहां टिक नहीं पाता। इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एन्ड कल्चरल स्टडीज के निदेशक अरिंदम मुखर्जी ने बताया कि संस्था द्वारा चार राज्यों में बड़े कार्यक्रम कराए जा रहे हैं, ताकि भावी पीढ़ी में राष्ट्रप्रेम का बीजरोपण हो।

इससे पूर्व सभी अतिथियों को अंगवस्त्र एवं प्रतीकचिह्न देकर स्वागत किया गया। स्कूलों की छात्राओं द्वारा रघुवीर नारायण रचित गीत— ‘सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा…’ की प्रस्तुति दी गई। प्रसिद्ध लोकगायक व संस्कार भारती के दक्षिण बिहार के प्रांत अध्यक्ष भरत शर्मा व्यास ने राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत अपने गायन से समारोह राष्ट्रभाव से भर दिया। उद्घाटन सत्र के बाद राज्य भर से युवा कलाकारों द्वारा सुदीपा घोष के निर्देशन में ‘स्वातंत्र्य समर नृत्य नाटिका’ की प्रस्तुति की गई, जिसमें 05 फरवरी 1932 को मुंगेर में हुए बलिदान से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के कई अन्य घटनाओं का चित्रण किया गया। अंत में कलाकारों व प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र से सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान, पटना के निदेशक डॉ. राणा सिंह, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कुमोद कुमार, समाजसेवी डॉ. मोहन सिंह, पद्मश्री से सम्मानित विमल जैन, कार्यक्रम संयोजक पंकज कुमार, संस्कार भारती के प्रदेश महामंत्री प्रो. अरुण भगत व आनंद प्रकाश नारायण सिंह, उपाध्यक्ष संजय उपाध्याय, संगठन मंत्री वेद प्रकाश, कला समीक्षक विनोद अनुपम, साहित्यकार ममता मेहरोत्रा, रंगकर्मी सुमन कुमार समेत कई गणमान्य उपस्थित थे।