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कोजागरा : मखान व एक खिल्ली पान से मिथिला की पहचान

दरभंगा : नवविवाहितों के लिए खासा महत्व रखने वाले लोकपर्व कोजागरा को लेकर मिथिलांचल में हर तरफ उत्साह देखा जा रहा है। लोकमान्यता है कि आश्विन पूर्णिमा की रात्रि में पूनम की चांद से अमृत की वर्षा होती है और जो जागता है वही अमृत का पान भी करता है। खासकर नवविवाहित वर अपने विवाह के पहले वर्ष में इस अमृत का पान करें तो उनका दाम्पत्य जीवन सुखद बना रहता है। इसी कामना को लेकर यह लोकपर्व मिथिला में पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। कोजागरा पर्व को लेकर बाजारों में हलचल देखी जा रही है। लोक पर्व कोजागरा अर्थात को-जागृति। कोजागरा के रात्रि जगने वाले व्यक्ति अमृत पान के भागी होते हैं।

लोक संस्कृति विशेषज्ञ डा. शंकर कुमार लाल के अनुसार मिथिला में नवविवाहित वरों के यहां आश्विन पूर्णिमा को कोजागरा का विशेष उत्सव मनाने की परम्परा रही है। मिथिलांचल में ब्राह्मण, कर्ण कायस्थ, गंधवरिया राजपूत, पोद्दार वैश्य, धानुक, केवट, सोनार आदि विभिन्न जातियों में इस पर्व को मनाने की परम्परा है। मिथिला में किंवदंती है कि चन्द्रमा से जो अमृत की बूंदे टपकी उसी ने मखाना का रूप ले लिया।

चंद्रमा से टपके अमृत ने धरा मखाना का रूप

डा. शंकर ने अपनी पुस्तक ‘मिथिला लोक चित्रकला और संस्कृति’ में बताया कि —स्वर्ग में भी पान और मखान दुर्लभ है। इसीलिए कोजागरा के दिन कम से कम ‘एक फोका मखान और एक खिल्ली पान’ खाना आवश्यक माना जाता है। कोजागरा के दिन मिथिलांचल में प्रत्येक घर में लक्ष्मी पूजा की भी परिपाटी है। इस दिन घर में रखे तिजोरी की पूजा की भी परम्परा है। लोग चांदी और सोने के सिक्के को लक्ष्मी मानकर पूजा करते हैं। घर के सभी सदस्य उसका स्पर्श कर महालक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। प्रसाद के रूप में पान, मखाना, बतासा, मिठाई का वितरण किया जाता है।

वधू पक्ष से वर के यहां भेजा जाता है भार

कोजागरा के अवसर पर वर पक्ष के यहां आये अतिथियों के बीच जहां पान, मखाना, बतासा, मिठाई का वितरण किया जाता है वहीं सम्पन्न लोगों द्वारा शाकाहारी व्यंजनों तथा दही-चूड़ा-चीनी, खाजा, लड्डू आदि का भोज किया जाता है। सारा भोज्य पदार्थ वर वालों के यहां वधू पक्ष की ओर से भेजा जाता है। वधू पक्ष की ओर से वर पक्ष के यहां प्रचुर मखाना, दही, चूड़ा, मिठाई, पान आदि भार के रूप में भेजा जाता है। वहीं वर के लिये नये कपड़े, जूते, घड़ी, छत्ता अन्य साजो-सामान सहित पूरे परिवार के लिये वस्त्र एवं अन्य सामग्रियां भी भेजी जाती हैं। मिथिला में कोजागरा के भार की बड़ी प्रसिद्धि है। यह भार देखने-दिखाने के लिये होता है।

इस दिन नवविवाहित वर का अपने यहां चुमावन होता है। वह अपने साले (पत्नी के भाई) के साथ पचीसी खेलता है। इस चुमावन के लिये डाला, पीढ़ी, दुर्वाक्षत सहित चांदी की बनी कौड़ी और थाल भी ससुराल से भेजा जाता है। जाहिर है कि किसी भी बेटी वाले के लिये कोजागरा का भार उसकी प्रतिष्ठा का प्रश्न होता है। अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये वधू पक्ष कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखता है।

खुले आसमान तले खीर रखती हैं महिलाएं

कोजागरा की रात्रि में मिथिलांचल के घरों में महिलाओं द्वारा खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रात भर रखा जाता है और सुबह उसे घर के सभी लोग खाते हैं। मान्यता है कि आश्विन पूर्णिमा की रात्रि में जो ओस की बूंदे खीर में गिरती हैं वह अमृत होती हैं। कोजागरा के रात जागने के उद्देश्य से पहले राजा-महाराजाओं, जमींदारों द्वारा कौमुदी महोत्सव का आयोजन किया जाता था। लेकिन अब न राजा रहे न जमींदार। बावजूद आज भी मिथिलांचल के गांवों में लोगों के सहयोग से गीत-संगीत एवं नाटक का आयोजन किया जाता है, ताकि लोग रात्रि भर जाग कर इसका आनन्द तो लें ही साथ ही चन्द्रमा से मिलने वाले अमृत का भी पान कर सकें। लोकपर्व कोजागरा को लेकर मिथिलांचल के नवविवाहित वरों के घरों के आंगन में अरिपन बनाने की भी परम्परा है। लोक मान्यता अनुसार, कोजागरा में यह अरिपन बनाना घर में लक्ष्मी के आगमन के स्वागत में जरूरी माना जाता है। संध्या में लोक गीतों के साथ मां लक्ष्मी के आगमन की प्रतीक्षा की जाती है।