राष्ट्रीय पटल पर चर्चित बाहुबली मोकामा विधायक अंनत कुमार सिंह 7 अक्टूबर को मोकामा विधानसभा सीट से राजद प्रत्यशी के रूप में अपना नामांकन पर्चा दाखिल करेंगे। मिली जानकारी के अनुसार न्यायालय ने उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी है। उनके नामांकन की तैयारी जोर-शोर से शुरू हो गई है।
टाल पर कब्जा
चार भाइयों में सबसे छोटे अनंत सिंह उस समय अपराधी बन गया, जब वह 15 साल की उम्र में गांव के आपसी विवाद के केस में जेल जाना पड़ा. लेकिन,कुछ दिनों बाद वह लड़का जेल से छूटा, उसके बाद वही लड़का अपराध की सीढ़ी चढ़ते हुए बिहार की राजनीति में मज़बूत दस्तक दी। बाढ़ के पास लदवां गांव में जन्मे अनंत सिंह पहली बार जेल से बाहर आने के बाद टाल इलाके में कब्जे के लिए हथियार उठा लिया और कुछ ही दिनों में मोकामा टाल पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया।
जंग जो कि आज तक जारी है
टाल पर कब्जे के दौरान अनंत ने अपने गांव लदवां में बहुत अपराधियों को जन्म दे दिया। उसके बाद जंग ऐसी छिड़ी कि अनंत सिंह के बड़े भाई विरंची सिंह की सरेआम हत्या कर दी गयी। लोग यह कहते हैं कि भाई के हत्यारों का ठिकाना पता चलने के बाद अनंत ने तैरकर नदी पार किया और ईट-पत्थर से कुचलकर मार डाला, हत्या के बाद खुलेआम हथियार उठा लिया। इसके बाद मोकामा इलाके में हत्या का जो दौर शुरू हुआ लोग उस दौर को याद नहीं करना चाहते हैं। अनंत सिंह की पहली खूनी जंग गांव के विवेका पहलवान के परिवार से शुरू हुई। इस जंग में दोनों ओर से कई लाशें गिरीं और यह जंग आज तक जारी है।
खुद को जज समझने वाला अनंत
अनंत सिंह का अपने इलाके में इतना खौफ है कि जब भी शहर में कोई घटना होती है, तो लोग पुलिस से पहले अनंत सिंह के पास जाते हैं। लोग कहते हैं कि 90 के दशक में पास के ही गांव के बदमाश ने बाढ़ बाजार से व्यापारी का अपहरण कर लिया था। पुलिस कुछ नहीं कर पाई और मामला अनंत सिंह के पास गया। अनंत ने अपने साथियों के साथ लीड करते हुए अपहर्ता के घर धावा बोल दिया और दोनों ओर से जबरदस्त गोलीबारी हुई जिसमें कई लोग मारे गए।
भाई को बनाया माननीय
अपराध में जमने के बाद अनंत सिंह को यह अहसास हो गया कि असली जंग तो राजनीति में है, इसलिए उन्होंने अपने भाई दिलीप सिंह को चुनावी राजनीति में आने का सुझाव दिया और मोकामा से चुनाव लड़वा दिया। चुनाव लड़ने से पहले दिलीप सिंह कांग्रेस नेता धीरज सिंह के लिए काम किया करते थे। दिलीप सिंह ने मोकामा से 1990 में चुनाव लड़ा और अनंत सिंह के रूतबे के सहारे विधानसभा पहुंचे। 1995 में भी दिलीप सिंह विधायक बने। लेकिन, 2000 में दिलीप सिंह को अपना चेला सुरजा यानी सूरजभान सिंह (पूर्व सांसद वर्तमान में लोजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) के हाथों हार का सामना करना पड़ा।
अनंत सिंह के जेल में रहते हुए 2004 में बिहार पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स ने अनंत सिंह के घर छापेमारी की थी। लेकिन, घर में मौजूद उनके समर्थकों ने एसटीएफ पर ही धावा बोल दिया। दोनों ओर से घंटों गोलियां चली थीं, जिसमें 8 लोग मारे गये। मारे जाने वालों में एसटीएफ का एक जवान भी शामिल था।
नीतीश को पड़ी अनंत की जरूरत
उसके बाद 2005 में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चुनाव लड़ने के दौरान नीतीश कुमार ने बिहार को अपराधियों से मुक्त करने का वादा तो किया लेकिन अंततः पहुंचे बाहुबली के शरण में और चुनाव जीतने के लिए अनंत का ही सहारा लिया। अनंत सिंह 2005 में सक्रिय राजनीति में शामिल हुए और मोकामा से जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर विधानसभा पहुंचे। अनंत सिंह को इलाके के लोग छोटे सरकार भी कहते हैं।
मुख्यमंत्री को धमकी
लदवां के इस बाहुबली की सरकार अलग ही चलती है। क्योंकि जनता दरबार अनंत के आवास पर लगती ( वैसे मामले को लेकर जिसका समाधान पुलिस नहीं कर पाती थी ) है। अनंत सिंह पर बिहार में करीब 35 गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, लेकिन राजनीतिक रसूख के चलते पीड़ित अभी तक न्याय के इंतज़ार में है। अनंत सिंह के आतंक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को देश की राजधानी दिल्ली में धमकी दे दी ।
सत्ता के लिए लालू ने भिजवाया जेल
लेकिन, 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले अनंत सिंह का नाता जदयू से टूट गया। दरअसल बाढ में यादव जाति के युवक की हत्या में अनंत सिंह का नाम आया। राजद इसको लेकर काफी गंभीर हो गया, हो भी क्यों नहीं 2005 में राजद से बगावत, चुनाव के समय यादवों की ह्त्या अगर राजद अड़ियल रवैया नहीं अपनाती तो वोट बैंक खोने का डर था। जदयू को सत्ता चाहिए था और लालू को बिहार की राजनीति में वापसी। लिहाजा अनंत सिंह को जदयू से बाहर का रास्ता दिखाया गया। लेकिन, अनंत का वर्चस्व ऐसा था कि जेल में रहकर भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से जीत लिया।
लेकिन, अब कहानी एक बार फिर बदल गई, जिस बाहुबली को जेल भेजकर लालू सत्ता पर काबिज हुए उसी बाहुबली के सहारे एक बार फिर लालू परिवार सत्ता पाना चाहता है।
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