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के.के. पाठक की मुश्किलें बढ़ीं, जज पर अंगुली उठाना पड़ा महंगा

पटना : सीनियर आईएएस अधिकारी के.के. पाठक की मुश्किलें घटने के बजाए बढ़ते ही जा रही हैं। एक बार फिर पटना उच्च न्यायालय ने केके पाठक की अर्जी को ख़ारिज करते हुए उनके खिलाफ कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि बिना किसी ठोस आधार के किसी जज पर अंगुली उठाना सरासर गलत है। न्यायपालिका के स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करना कोर्ट का अवमानना है। कोर्ट इस प्रकार की कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं कर सकता।
न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की एकलपीठ ने के के पाठक की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई के बाद उनके अर्जी को ख़ारिज दिया।

पटना हाई कोर्ट के महानिबंधक ने हाई कोर्ट के आदेश के अलोक में क्या कार्रवाई की जा रही है उसकी जानकारी राज्य के मुख्य सचिव से मांगी थी जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।

मामला उस समय का है जब पाठक निबंधन, उत्पाद एवं निषेध विभाग के प्रधान सचिव थे। उन्होंने स्टाम्प ड्यूटी का पैसा समय पर जमा नहीं किये जाने को लेकर बैंक अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था, जिसके बाद बैंक के अधिकारियो के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। स्टेट बैंक आफ इंडिया के सात शाखा प्रबंधकों ने हाई कोर्ट में प्राथमिकी को चुनौती दी थी। मामले पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने दर्ज प्राथमिकी को निरस्त करते हुए सभी आवेदकों को बेवजह परेशान किया जाने पर 25-25 हज़ार रुपया देने का आदेश राज्य सरकार को दिया था। साथ ही इस राशि की वसूली तत्कालीन प्रधान सचिव से करने को भी कहा था। उस समय प्रधान सचिव के पद पर केके पाठक ही थे। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि आरबीआई के निर्देश का पालन क्यों नहीं किया गया। इस आदेश को केके पाठक ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने पाठक के अर्जी को ख़ारिज कर दिया। इस आदेश के बाद श्री पाठक ने महानिबंधक के चिट्टी को लेकर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आरोप लगाया गया कि आदेश जारी करने वाले जज जब वकील थे, तभी से वे इनसे खफा रहते थे और जज बनने के बाद इनके खिलाफ आदेश पारित किया है।