पटना : जदयू की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में जदयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफे की पेशकश की इसके बाद जदयू के नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उमेश कुशवाहा को नियुक्त किया गया।
इस बीच जदयू के नए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उमेश कुशवाहा की नियुक्ति के बाद तरह-तरह के कयास लगने शुरू हो गए हैं। कुछ लोगों ने इसे एक विशेष पार्टी या दल कह कर संबोधित करना शुरू कर दिया है।
नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के सामने महनार के पूर्व विधायक उमेश कुशवाहा की ताजपोशी हुई। इसके पहले श्री सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। इसके बाद लोगों द्वारा यह कहा जा रहा है कि जदयू कुर्मी – कोयरी की पार्टी बन कर रह गई है।
लव- कुश समीकरण की घेरेबंदी
वहीं राजनीतिक जानकारों कि मानें तो नीतीश कुमार और जदयू अध्यक्ष आरसीपी सिंह ने यह फैसला लव- कुश समीकरण की घेरेबंदी को लेकर लिया है। किन्तु जदयू की इस संकुचित चाल से नीतीश की उदार छवि प्रभावित होगी। जिस तरह राजद से एक खास वर्ग का छाप नहीं हट सका उसी तरह जदयू पर भी कुर्मी-कुशवाहा का गहरा छाप पड़ गया है।
जदयू पर जातिवाद का लांछन
जदयू में कई ऐसे काबिल नेता हैं जिन पर जदयू प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर भरोसा कर सकती थी। जैसे कि बिजेंद्र यादव, ललन सिंह, राजकुमार सिंह, संजय झा समेत अन्य कई पारखी नेता मौजूद हैं। लेकिन, इसके इन सबों पर भरोसा न कर,उमेश कुशवाहा पर भरोसा यह बतलाता है कि विधानसभा चुनाव में जदयू के कम सीट आने के पीछे कहीं न कहीं कुशवाहा वोटरों का इधर से उधर जाना भी है। जदयू ने वर्तमान में जो कदम उठाया है, उससे जदयू पर जातिवाद का लांछन लग सकता है।
वहीं जदयू से जो सवर्ण समुदाय के नेता जुड़े हुए हैं, ऐसे में उनका झुकाव भाजपा की ओर बढ़ सकता है।
उपेंद्र कुशवाहा से बढ़ा ली दूरी
वहीं दूसरी तरफ जदयू ने उमेश कुशवाहा को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उपेंद्र कुशवाहा से अपने दूरी बढ़ा ली है। जानकारों की मानें तो उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो सकते थे क्योंकि उनके पास अपना एक खास वोट बैंक है। ऐसे में जदयू यहां अपने फैसले को लेकर गच्चा खाती हुई नज़र आती है। हालांकि कुछ जानकारों की माने तो उपेंद्र कुशवाहा को जदयू में शामिल ना करने का फैसला भी पार्टी के बड़े नेताओं के साथ हुई बैठक के बाद ही लिया गया है, हो सकता है कि जदयू नई रणनीति के तहत जाल फेंक रहा हो।
उधर जदयू के इस फैसले को लेकर राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। तेजस्वी ने नीतीश को जमकर कोसा है। तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को सबसे बड़ा बार्गेनेर करार दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि नीतीश ने उन्हें भी धोखा दिया है। इससे जाहिर है नीतीश इसबार जदयू के साथ नहीं जाएंगे। लेकिन, यह भी ध्यान देने की बात है कि नीतीश कुमार जो राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं और विषम परिस्थितियों में भी विजेता बनने की कुव्वत रखते हैं। यहीं देखना है कि अपनी पार्टी पर लगने वाले दाग को किस प्रकार साफ करते हैं।