कैसे राजद के लिए ‘सिरदर्द’ बनते जा रहे हैं तेजप्रताप यादव?

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पटना : तेजप्रताप की राजनीतिक सक्रियता राजद के लिए परेशानी का सबब बन गई है। एक तरफ वे हर दिन उल-जुलूल बयान देकर मीडिया की सुर्खियां बटोर रहे हैं और इस चक्कर में जहां विरोधी भाजपा और जदयू जमकर मजे ले रहे हैं, वहीं राजद कार्यकर्ताओं के बीच कन्फ्यूजन का माहौल कायम होता जा रहा है कि आखिर पार्टी को कौन चला रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजप्रताप राजद में सत्ता के केंद्र में आना चाहते हैं। मगर पार्टी में उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता। ऐसे में राजनीतिक हलकों में यह संदेश जा रहा है कि लालू परिवार के सदस्यों के बीच ‘ऑल इज नॉट वेल’। आइए देखते हैं कि कैसे राजद के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं तेजप्रताप?

पहले नो इंट्री, अब चाचा के लिए खुल गए दरवाजे

दरअसल, वृंदावन प्रवास के बाद बिहार लौटे तेजप्रताप के कार्यकलाप पर बारीक नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी आलाकमान के रुख से तेजप्रताप कुछ मामलों पर न केवल अलग स्टैंड ले रहे हैं, बल्कि उसे खुलकर मीडिया में व्यक्त भी कर रहे हैं। उन्होंने ‘चाचा’ नीतीश के लिए अपनी पार्टी के स्टैंड से इतर यहां तक कह दिया कि महागठबंधन के दरवाजे उनके लिए अभी भी खुले हैं। मालूम हो कि पिछले साल जब महागठबंधन में नीतीश के पुन: शामिल होने की अफवाह उड़ी तो तेजप्रताप ने मीडिया के सामने उनके लिए ‘नो इंट्री’ की तख्ती दिखाई थी।
अब जब चाचा ने उनकी सरकारी बंगले की मांग पूरी कर दी तो तेजस्वी से अलग तेजप्रताप चाचा नीतीश का गुणगान करने लगे।

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परिवार से दूरी लेकिन मामा साधु का साथ

हाल में फुलवारी थाने पर हुए हंगामे के दौरान तेजप्रताप के साथ उनके छोटे मामा साधु यादव दिखे थे। ये वही साधु यादव हैं जो कभी लालू—राबड़ी के आंख के तारे थे। लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि साधु और सुभाष, लालू के दोनों साले परिवार से बिल्कुल ही अछूत हो गए। सुभाष तो ज्यादा नहीं, लेकिन साधु यादव लालू के विरोधियों तक से खुलेआम हाथ मिलाने लगे। यहां तक कि वे 2014 में हवा के रुख को देखकर गुजरात जाकर भाजपा के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी से भी मिल आए थे। यानी साधु—सुभाष की तरफ आंख उठाकर देखना भी लालू परिवार की तरफ से बंद हो गया। अब तेजप्रताप की ताजा राजनीतिक सक्रियता के दौरान एक बार फिर साधु यादव मंच पर प्रकट हो गए। वह भी लालू कुनबे के मात्र एक सदस्य—तेजप्रताप के साथ। साफ है कि तेजप्रताप वह सबकुछ करने में भी नहीं हिचक रहे, जो पार्टी और परिवार के आधिकारिक स्टैंड से अलग हो।

राममंदिर पर आरएसएस से मिलता—जुलता नजरिया

सब जानते हैं कि तेजप्रताप धार्मिक प्रवृति के हैं। हाल ही में उन्होंने अयोध्या में राममंदिर पर आरएसएस से मिलता—जुलता नजरिया पेश करते हुए कहा कि सरकार को इसपर अध्यादेश लाना चाहिए। लेकिन अदालत के निर्णय तथा सभी पक्षों की सहमति से। लेकिन अयोध्या में राम मंदिर तो बनना ही चाहिए। अब उनका यह स्टैंड राजद के अल्पसंख्यकों को लुभाने वाले रुख से विपरित नहीं तो उससे अलग तो है हीं। जहां, राजद खुलकर अल्पसंख्यकों के हित में बयान देता है, वहीं तेजप्रताप ने राममंदिर पर सकारात्मक बयान देकर पार्टी के लिए मुश्किल तो खड़ी कर ही दी है। अब देखना है कि तेजस्वी, लालू और राबड़ी अपने कुनबे के इस अहम सदस्य को किस तरह समझा पाते हैं।

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