प्रो. धन प्रसाद पंडित
प्राध्यापक
त्रिभुवन विश्वविद्यालय, काठमांडू
भारतवर्ष और नेपाल देश का संबंध ऐतिहासिक है। यह भूभाग के निर्माण में एक ही हलचल से बना है। समान प्राकृतिक छटा, भौगोलिक बनावट के आधार पर नेपाल और भारत दोनों हिमालय की गोद में बसे हुए हिंदू बहुल राष्ट्र हैं। प्राचीनतम सभ्यता, देवनागरी लिपि, संस्कृत, संस्कृति, धर्म, एक सी मान्यता, एक समान समझदान, धर्म की भावना, परोपकार पुण्य या पाप, परपीड़ा की भावना हमारे आदर्श रहे हैं। घनिष्टतम पड़ोसी, पड़ोसी तो बहुत हो सकते हैं। उनकि परिभाषा भी अनेक प्रकार से की जाती है। किसके साथ हमारा क्या लेना और देने का संबंध है, इसके आधार पर पड़ोसी की नजदिकी और दूरी की व्याख्या की जाती है। अभी नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष संघीय गणतंत्रात्मक राज्य है। इससे पहले हिंदू राजतंत्रात्मक अधिराज्य हुआ करता था। भारतवर्ष की आबादी का 79.8 प्रतिशत हिंदू धर्म मानने वाले हैं, वहीं नेपाल में बसे 82 प्रतिशत हिंदू धर्मावलंबी हैं। इस विश्व में करीब 57 इस्लामिक देश हैं, इससे अधिक क्रिश्चियन देश हैं। धर्मनिरपेक्ष राज्य भी वैसै ही नंबर पर होंगे। परंतु, हिंदू जनता विश्व भर में कुछ न कुछ संख्या में फैले हैं, पर भारत और नेपाल के सिवाय हिंदूओं को निर्बाध धार्मिक कृत्य करना बेझिझक किसी भी अन्य देश में संभव नहीं हैं।
नेपाल के प्रधानमंत्री का भारत दौरा पहली बार नहीं है। सबसे पहले पं. नेहरु का नेपाल का राजकीय भ्रमण हुआ था। उसके बाद का सिलसिला लगातार कायम रहा। मोदीजी अपने प्रधानमंत्रीत्वकाल में तीन बार नेपाल का भ्रमण कर चुके हैं। मुक्तिनाथ, जानकी मंदिर और बुद्ध जन्मस्थल लुंबिनी दर्शन कर भारतीय प्रधानमंत्री मोदीजी ने नेपाल-भारत संबंध का मूल आधार हिंदू, बौद्ध धर्म से संबंध रखने वाले विषय हैं, यह अपने भ्रमणके माध्यम से बता दिया है।
नेपाल के लोग अटलजीको बहुत याद करते हैं। जनता पार्टी सरकार के समय जब अटलजी विदेश मंत्री थे, तब नेपाल और भारत के बीच व्यापार और पारवहन, दो संधियां की गईं। उन्होंने कहा था कि भूपरिवेष्ठित देश होने के नाते पारवहन की सुविधा नेपाल का अधिकार है। व्यापार दोनों देशों के आवश्यकता से निर्धारित हो सकता है। प्रधानमंत्री के रुप में 2019 में के.पी. शर्मा ओली के भ्रमण के बाद नेपाल के नक्शे में परिवर्तन कर लिम्पिया धुरा, लिपुलेक नेपाल में रखकर नया नक्शा पास करके संविधान संशोधन द्वारा उसको नेपाल का हिस्सा दिखाने के बाद नेपाल-भारत संबंध में कुछ अनमन हो गई थी, जिसके बाद प्रधानमंत्री देउवा का त्रिदिवसीय भारत भ्रमण हुआ था।
२२ सीमानों का बाॅर्डर इन्ट्रि प्वाइन्ट का खुला वास्तविक फिगर निकालना असंभव है। नेपाल से भारत में बहुत अधिक रेमिटयान्स जाता है। कलकत्ता, हल्दिया और विशाखापट्टनम से नेपाल पारवहन मार्ग प्रयोग कर रहा है। भारत और नेपाल की बहुत सी गुत्थियाँ हैं, जैसे बाॅर्डर की समस्याएँ एवं महाकाली नदी का उद्गम स्थल दार्चुला एवं घारचुलाके बिचका कालापानी आदि।
कई सालों से समझौता होने के बाद भी आजतक काम आगे नहीं बढ़ा। पँचेश्वर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट, दोनों राष्ट्र की सहमति बनाया गया। पहले बनाया, क्यों बनाया, रिपोर्ट को दोनों तरफ के प्रधानमंत्री को स्वीकार करना चाहिए था। उसके बाद उसको कार्यान्वयन करना व पुराने ही तरीखे से संबंध को आगे बढाना दोनों तरफ की एक आपसि समझ से हो सकता है।
लिपुलेक, लिम्पियाधुरा, कालापानी सुस्ता अच्छा संबंध होने पर किसी भी मसले का आसानी से हल निकाला जा सकते हैं। अविश्वास होने पर एक-दूसरे पर शक करना बड़ी बात नहीं है। नेपाल में उत्पादित पनविबजली के लिए बाजार और तीसरे देश में भेजने के लिए रास्ता भी भारत को ही देना पड़ेगा। उत्तर की तरफ उही और ४० डिग्रीवाले हिमालयके रास्ते विद्युत ग्रिड बनाना इतना आसान नहीं है। भारत का सबसे करीबी और पूरब-पश्चिम और दक्षिण तीनों दिशाओं से भारत से घिरा हुआ नेपाल १७०० किलोमीटर खुली सीमाएं, समान भाषा, भेष, रहन-सहन, शादी-ब्याह, संकट और अवसर दोनों का सामना एक साथ करना भारत और नेपाल के लिए साझा मुद्दे हैं। आंतरिक सुरक्षा, बाह्य सुरक्षा व हर दिन बढ़ रहा धर्मान्तरण दोनांे राष्ट्रों के लिए चुनौती है। वर्तमान भारतीय सत्ता पक्ष नेपाल को एक हिंदू राष्ट्र देखना चाहता है। नेपाल के नेता, कम्यूनिस्ट, कांग्रेस, जैसे बड़ी पार्टियों से लेकर छोटे राजनीतिक दल भी भारत की हाँ में हाँ मिलाते हैं और नेपाल लौटने पर यूरोप और अमेरिकी प्रेशर के नीचे दब जाते हैं, जिन्होंने नेपाल को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए वर्षो से एन.जी.अी. आए, एन.जी.ओ. के साथ साथ अनुदान देते वक्त भी कहीं ना कहीं क्रिश्चियानिटि को बढावा देने मंे मिशनरी के रुप में काम किए हैं ।
भारत में केंद्र में मजबूत भाजपा सरकार है। मोदी जी आठ साल से भारत को नेतृत्व देते हुए विश्व की पांचवीं आर्थिक ताकत बनाने में लगे हुए हैं। नेपाल में किसी भी दल को बहुमत नहीं है। संसद की तीसरी शक्ति के रुप में रहे प्रचंड (पुष्पकमल दहल) प्रधानमंत्री के तौर पर हैं, जबकि सरकार संचालन में उनकी भूमिका भी नगण्य है। ऐसे समय मंे द्विपक्षीय संबंध को आगे बढाना इतना आसान नहीं रहेगा।
मोदी की सफलता के पीछे उनका करिश्मा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संगठनात्मक मजबूती भी कारण है। त्याग, स्वयं भ्रष्टाचार से परे, पारिवारिक विरासत की भनक भी ना होने के कारण भारतवासी मोदी पर विश्वास करते हैं। मोदी और योगी आदित्यनाथ दोनों ही योगी हैं। इसलिए भ्रष्टाचार के मामले में नेपाल के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व पर जो प्रश्न खड़े हैं, उनसे भी हमारे राजनेता क्या आँख में आँख मिला पाएंगे या कि आँख झुकाकर वार्ता के टेबल पर बैठेंगे, यह कुटनीतिक मामले में बहुत मायने रखता है। कुछ भी हो, सबसे नजदीकी पड़ोसी को बदला नहीं जाता और बदल भी नही सकते हैं, इसलिए मुल मुद्दे पर बेझिझक नेपाल अपना पक्ष रखे और दोनो देशोंके हितके लिए प्रधानमंत्री का भारत दौरा कारगर रहे, यही कामना की जा सकती है। बाकि ईश्वर कि इच्छा, “त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये।”
अपनी लड़की को पीटकर अपनी ही बहु को डर दिखाना कहते हैं। “नेपाली में एक मुहावरा है- ’’छोरी पिटेर बुहारी तर्साउने,” इसी तरह भारत नेपाल के साथ कुछ खेल खेल रहा है। प्रधानमंत्री के भारत भ्रमण को पीछे धकेलते हुए, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से दस दिवसीय भ्रमण का न्यौता दिया गया। यह भाजपा नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार को मालूम भी ना हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। अतः मकसद साफ है कि भारतीय पक्ष नेपाल में क्या चाहता है।
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